Book Title: Adhyatma Amrut
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 48
________________ [अध्यात्म अमृत आध्यात्मिक भजन] भजन-२७ निजको ही देखना और जानना बस काम है। पर को मत देखो यह सब कुछ बेकाम है ॥ १. पर को ही देखते, अनादि काल बीत गया । पर को ही जानने में, पुद्गल यह जीत गया । निज को कब देखोगे, इसका कुछ ध्यान है..... २. अपने में दृढता धरो, हिम्मत से काम लो । मोह राग छोड़कर, भेदज्ञान थाम लो ॥ अपना क्या जग में है, यह तो मरी चाम है..... ३. बहुत गई थोड़ी रही, थोड़ी भी अब जात है। स्व पर का ज्ञान करो, संयम की बात है ॥ धर्म का बहुमान करो, धन का क्या काम है..... ४. अपनी ही सुरत रखो, समता से काम लो। अपनी ही अपनी देखो, पर का मत नाम लो॥ ज्ञानानंद जल्दी करो, थोड़ा ही मुकाम है..... भजन-२९ गुरू तारण तरण आये तेरी शरण । हम डूब रहे मंझधार, नैया पार करो॥ १. काल अनादि से डूब रहे हैं । चारों गति में घूम रहे हैं ॥ भोगे हैं दु:ख अपार, नैया पार करो...गुरू... २. अपने स्वरूप को जाना नहीं है । तन धन को पर माना नहीं है ॥ करते हैं हा हा कार, नैया पार करो...गुरू... ३. हमको आतम ज्ञान करा दो । सच्चे सुख का मार्ग बता दो ॥ मोही करता पुकार, नैया पार करो...गुरू... भजन-२८ हो जा हो जा रे निर्मोही आतमराम, मोह में मत भटके। १. धन शरीर परिवार से अपना, तोड़ दे नाता सारा । काल अनादि से इनके पीछे, फिर रहा मारा मारा॥ खोजा खो जा रे अपने में आतमराम...मोह... २. मात पिता और भाई बहिन यह, नहीं जीव के होते। धन शरीर और मोह में फंसकर, अज्ञानी जन रोते॥ सो जा सो जा रे समता में आतमराम...मोह... ३. तू तो अरूपी निराकार है, अजर अमर अविनाशी। पर से तेरा क्या मतलब है, ज्ञानानंद सुख राशि ॥ बोजा बो जा रे हृदय में सम्यक्ज्ञान...मोह... भजन-३० धन के चक्कर में भुलाने सब लोग, धर्म हे कोई नहीं जाने ॥ धर्म के नाम पर ढोंग कर रहे, माया के हैं दास । पूजा पाठ में लगे हैं निशदिन, नहीं आतम के पास ॥ मन के चक्कर में लुभाने सब लोग.... २. मंदिर तीर्थ बनवा रहे हैं, तिलक यज्ञ हैं कर रहे। पर के नाम को घोंट रहे हैं, धन के पीछे मर रहे ॥ तन के चक्कर में रूलाने सब लोग.... ३. धन वैभव ही जोड़ रहे हैं, धर्म के नाम पर धंधा। पर को मारग बता रहे हैं, खुद हो रहे हैं अंधा ॥ कन के चक्कर में सुलाने सब लोग ..... ४. जीव अजीव का भेदज्ञान कर, अपनी ओर तो देखो। ज्ञानानंद तब धर्म होयगा, पर को पर जब लेखो। वन में चल करके धरो तुम जोग .....

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