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[अध्यात्म अमृत
आध्यात्मिक भजन
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भजन-१३
मत करो रे सोच विचार, अगर सुख से रहने है॥ १. क्या होता है क्या नहीं होता, करो न कोई विचार । जो होना है वह ही होता, अपनी रखो संभार ॥
मत बनो रे जुम्मेदार ..अगर.... २. क्या हो गया और क्या होवेगा, छोड़ो विकल्प सारे। शांत रहो समता से देखो, रहो सदा ही न्यारे ॥
मत बनो रे ठेकेदार ..अगर.... ३. सोच करे से कछु नहीं होता, होना है वह होता। ज्ञानी इसमें समता रखता, मूरख इसमें रोता ॥
रहो रहो रे सदा हुश्यार ..अगर.... ४. पाप पुण्य का खेल तमाशा, सारे जग में होता । तेरे करे से कुछ नहीं होता, तू काहे को रोता ॥
छोड़ो छोड़ो रे कषायें चार..अगर.... जीव अकेला ध्रुव अविनाशी, परम ब्रह्म और ज्ञानी। पुद्गल है यह जड़ और अचेतन,मच रही खींचातानी॥
करो करो रे तत्व विचार..अगर.... मोह राग में स्वयं फंसे हो, दुर्गति हो रही इससे । दृढ श्रद्धान करो ज्ञानानंद, कहते हो अब किससे ।।
अपनी अपनी ही रखो संभार ..अगर....
भजन - १५ ले जायेंगे ले जायेंगे, सब तुझको बांधकर ले जायेंगे। रह जायेंगे रह जायेंगे, घर वाले देखते रह जायेंगे । १. तेरे साथ में कुछ नहीं जावे, खाना तलाशी लेवेंगे।
लकड़ी का फिर बना चौतरा, तुझे आग में देवेंगे।
बांस मारकर सर को फोड़कर, अपने अपने घर जायेंगे..... २. तीन दिना में करे तीसरा, सबको चिट्ठी देवेंगे।
तेरह दिन में करके रसोई, अपनी छुट्टी लेवेंगे ।
लगकर फिर अपने कामों में, तेरी सुध बुध विसरायेंगे.... ३. जिनके लिये मरा तू जाता, तेरे संग में नहीं जाएंगे।
धन वैभव और कुटुम्ब कबीला,सभी यहीं पर रह जायेंगे।
अब तो कर श्रद्धान तू सच्चा, सारे दुःख तेरे मिट जायेंगे... ४. स्वारथ का संसार है सारा, स्वारथ की सब प्रीत है।
जैसा करेगा वैसा भरेगा, नहीं तेरा कोई मीत है। काहे को तू पाप कमाता, नरक निगोद में खुद जायेंगे .... देख तमासा इस दुनियां का, सबके संग यह होता है। मोह में फंसकर मूरख मोही, अब काहे को रोता है। आयु का नहीं कुछ भी भरोसा, भजन करो तो तर जायेंगे....
भजन-१४ मैं तारण तरण, तुम तारण तरण ।
सब तारण तरण, बोलो तारण तरण॥ पाया मानुष जनम, करलो आतम रमण । छोड़ो भाव रमण, मेटो भव दु:ख मरण ॥ होओ सुख में मगन, करलो मुक्ति वरण । ले लो अपनी शरण, बनो तारण तरण ॥
भजन-१६ देखो रे भैया, जा है जग की रीत ॥ १. जब तक स्वारथ सधता अपना, तब तक करते प्रीत।
जग के यह झूठे सब नाते, कोई न किसी का मीत ॥ २. बखत पड़े कोई काम न आवे, बन जाते सब ढीट।
माता पिता भगिनी सुत नारी, मोह राग की भीत ॥ ३. नाते रिश्ते सब झूठे हैं, करलो दृढ प्रतीत ।
ज्ञानानंद अब भी तुम चेतो, छोड़ दो मिथ्या गृहीत ॥