Book Title: Adhyatma Amrut
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 42
________________ ७१] १. २. ३. ४. ५. १. २. भजन - ५ निज हेर देखो नहीं तो रार करो रे । आतम का अपनी उद्धार करो रे । [ अध्यात्म अमृत मानुष गति और कुल उच्च पाया । वीतराग वाणी और बल बुद्धि पाया ॥ शुद्धातम का अपनी श्रद्धान करो रे..... क्या होगा अपना कहां जाना होगा । अपने ही कर्मों का फल पाना होगा ॥ अपना ही अब तो विचार करो रे..... अरे साथ अपने यह कुछ भी न जावे । इन सबके कारण ही तू दुःख पावे ॥ अपनी ही अब तो संभार करो रे...... पड़ा है तू झंझट में इन सबके द्वारा | फिर रहा अनादि से तू मारा-मारा ॥ भ्रमना को छोड़ अब सुधार करो रे...... यहाँ कौन तेरा है तू तो अरूपी । सबसे ही भिन्न है तू शुद्ध स्वरूपी ॥ अपना ही मोही अब ध्यान धरो रे...... भजन - ६ बोलो तारण तरण, बोलो तारण तरण । कर लो आतम रमण, करलो आतम रमण ॥ क्या लाया है संग में, क्या ले जायेगा । करके खोटे करम, खुद ही दुःख पायेगा || छोड़कर झंझटें, कर प्रभु का भजन.. बोलो... पाया नरभव अब इसमें तू कर ले धर्म । त्याग तप दान संयम, और अच्छे कर्म ॥ बसंत मिट जायेगा, तेरा जन्म मरण.. बोलो... आध्यात्मिक भजन ] १. २. ३. ४. भजन चल छोड़ दे रे चेतन, कि अब यह देह हुआ बेगाना ॥ १. इसकी खातिर चेतन तूने, पाप अनेक कमाये । विषय भोग में लिप्त रहा तू, आत्म तत्व न भाये ॥ अब कर ले रे छेदन, कि तुम पर अब न हंसे जमाना......... इसको तूने अपना माना, बड़े प्यार से पाला । इसकी हालत देखो, इसने कैसा चक्कर डाला ॥ अब तो हो रही रे खेंचन, कि बनता अब न आना जाना.... आखों से अब कम दिखता है, अंग सब पड़ गये ढीले । काम धाम कुछ नहीं बनता है, सबमें हो गये ठीले ॥ अब कोई नहीं रे पूछत, कि तुमने खाया भी कुछ खाना...... ऐसा साथी कौन काम का, जो दुर्गति ले जावे । इससे अपना नाता तोड़ दे, तारण गुरू समझावें ॥ अब तो करले रे वंदन, कि मैं हूं आतम सिद्ध समाना....... २. ३. ४. - ७ - भजन उद्धार तेरा होगा तब ही, शुद्धात्म की इतनी लगन लगे । पुद्गल की कभी न याद आये, मुक्ति की इतनी चाह जगे ॥ ८ [७२ सोते में दिखे जगते में दिखे, खाते में दिखे पीते में दिखे। हर क्षण में वही शुद्धात्म दिखे, विषयों की न कोई चाह जगे...... चलते में दिखे फिरते में दिखे, करते में दिखे मरते में दिखे। हर तन में वही शुद्धात्म दिखे, दूसरा न कोई भाव जगे.... ज्ञानानंद अब क्या सोच रहे, अपनी ही गलती है सारी । अब लीन होओ शुद्धातम में, सबरे ही तेरे कर्म भगे...... क्या होता है क्या नहीं होता, इससे तुमको मतलब क्या है। जो होना है वह हो ही रहा, इतनी दृढ़ता अपने में जो.......

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