Book Title: Adhyatma Amrut
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 28
________________ ४३] ७. ८. [ अध्यात्म अमृत ध्रुव धाम की धूम मचाते, निज में आन समाये हैं । कुन्द कुन्द के समयसार पर, अमृत कलश चढ़ाये हैं । आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं, अज्ञान अज्ञान से आया है। पर का कर्ता भोक्ता बनकर, अज्ञानी कहलाया है ॥ निज स्वरूप का बोध जगाकर, सब भ्रम भेद मिटाये हैं। के समयसार पर, अमृत कलश चढ़ाये हैं । कुन्दकुन्द नय पक्षों में फंसा अज्ञानी, संकल्प विकल्प ही करता है। ज्ञानानंद स्वभावी चेतन, मुफत में सुख दुःख भरता है ॥ चित्स्वरूप के अनुभव द्वारा, नय विकल्प सुलझाये हैं । कुन्द कुन्द के समयसार पर, अमृत कलश चढ़ाये हैं । ९. भेद विज्ञानतः सिद्धा, सिद्ध परम पद पाये हैं । कोत्कीर्ण स्व रस पा करके, जिन भगवान कहाये हैं । शुद्ध चिन्मात्रमहोतिरिक्ता, जय जयकार मचाये हैं । कुन्द कुन्द के समयसार पर, अमृत कलश चढ़ाये हैं । १०. सिद्धांतोऽयमुदात्तचित्तचरिते, यदि मोक्ष को पाना है । परम ज्योति चिन्मात्र शुद्ध हूँ, दृढ़ निश्चय कर माना है । सर्व विशुद्ध ज्ञान के द्वारा, सर्वार्थ सिद्ध पद पाये हैं । कुन्दकुन्द के समयसार पर, अमृत कलश चढ़ाये हैं | दोहा निज सत्ता स्वरूप का, जिन्हें हुआ है ज्ञान । ज्ञानानंद में लीन हो, बन गये वे भगवान ॥ अमृत चंद्र आचार्य का, सब जग को संदेश | छोड़ो सब भ्रम भांति को, बन जाओ परमेश ॥ जयमाल ] १. २. निज स्वरूप का अनुभव ही तो, सम्यक्दर्शन कहलाता । स्व पर का यथार्थ स्वरूप ही, सम्यक्ज्ञान में झलकाता ॥ निज स्वभाव में रत हो जाना, सम्यक्चारित्र अन्त है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है । ३. ४. २१. श्री तारण पंथ जयमाल " मन शरीर से भिन्न सदा जो एक अखंड निराला है। ध्रुव तत्व शुद्धातम कहते, चेतन लक्षण वाला है । ऐसे निज स्वरूप को जाने, वही कहाता संत है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है । ६. निज स्वरूप को भूला चेतन, काल अनादि भटक रहा । चारों गति के चक्कर खाता, मोह राग में लटक रहा । सद्गुरू तारण स्वामी जग को, दिया यही महामंत्र है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है । सम्यक् दर्शन ज्ञान चरण ही, मोक्षमार्ग कहलाता है । जीवमात्र का धर्म यही है, जैनागम बतलाता है ॥ धर्म साधना आतम हित में हर व्यक्ति स्वतंत्र है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है । 1 ५. जाति पांति व क्रिया कांड सब, सम्प्रदाय बतलाते हैं। अज्ञानी जीवों को इनमें धर्म के नाम फंसाते हैं । बाह्य प्रपंच परोन्मुख दृष्टि करती यह परतंत्र है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है । " सभी जीव भगवान आत्मा, सब स्वतंत्र सत्ताधारी । पर्यायी परिणमन क्रमबद्ध, सबकी अपनी है न्यारी ॥ [ ४४

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