Book Title: Adhyatma Amrut
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 35
________________ [अध्यात्म अमृत जयमाल [५८ ६. जग का ही अस्तित्व मिटाता, सब माया भ्रमजाल है। सत्ता एक शून्य विन्द का, रखता सदा ख्याल है । तन-धन-जन से काम रहा नहीं, मन का भी विश्राम है। शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है ॥ ज्ञेय भाव सब ही भ्रांति है, भावक भाव भ्रमजाल है। त्रिगुणात्मक माया का, फैला सब जंजाल है । निज स्वरूप सत्य शाश्वत है, सहजानंद सुखधाम है। शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है। अब जग से कोई काम नहीं है, सिद्ध मुक्त ही होना है। निज सत्ता शक्ति प्रगटा कर, पर्यायी भय खोना है। अब संसार में नहीं रहना है, दृढ़ संकल्प महान है। शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है । क्या होता आता जाता है, इसकी ओर न दृष्टि है। कर्मोदय परिणमन है सारा, सिमट गई सब सृष्टि है । ध्रुव तत्व की धूम मचाता, रहा दाम न नाम है । शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है ॥ १०. वस्तु स्वरूप सामने रखता, परमातम पद धारी है। ब्रह्मानंद की साधना करता, ज्ञानानंद निर्विकारी है । निस्पृह आकिंचन होकर के, बैठा निज धुवधाम है। शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है ॥ २९. मोक्षमार्ग १. भेदज्ञान तत्वनिर्णय द्वारा, शुद्धातम को पहिचाना । स्व-पर का यथार्थ निर्णय कर, वस्तु स्वरूप को है जाना ॥ ध्यान समाधि लगाओ अपनी, छोड़ो दुनियांदारी है। दृढता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं । २. द्रव्य दृष्टि से जीव-अजीव का, निश्चय सत्श्रद्धान किया। धुव तत्व शुद्धातम हूँ मैं, निज स्वरूप पहिचान लिया । सम्यग्दर्शन ज्ञान हो गया, मच रही जय जयकारी है। दृढता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं । त्रिकालवर्ती परिणमन सारा, क्रमबद्ध और निश्चित है। भ्रम भ्रांति अशुद्ध पर्याय यह, अपना कुछ न किन्चित है । शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, यही एक हुश्यारी है। दृढता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं। ४. मुक्ति मार्ग के पथिक बने हो, सिद्ध मुक्त ही होना है। अब संसार में नहीं रहना है, व्यर्थ समय नहीं खोना है। सत्पुरूषार्थ जगाओ अपना, अब क्यों हिम्मत हारी है। दृढता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं। करना धरना कुछ भी नहीं है, जो होना वह हो ही रहा। किसी से अपना कोई न मतलब, कर्मोदय सब खो ही रहा । सब जीवों की सब द्रव्यों की, स्वतंत्र सत्ता न्यारी है। दृढता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं । स्वयं धुव तत्व शुद्धातम, अरहन्त सिद्ध केवलज्ञानी । टंकोत्कीर्ण अप्पा ममल स्वभावी, जगा रही है जिनवाणी ॥ रत्नत्रयमयी स्वस्वरूप ही, अनन्त चतुष्टय धारी है। दृढता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं । सत्ता एक शून्य विन्द है, एकोहं द्वितियो नास्ति । निज अज्ञान भ्रम के कारण, पर की है सत्ता भासती ॥ ज्ञान बलेन इष्ट संजोओ, कैसी मति यह मारी है। दृढ़ता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं। अभय स्वस्थ मस्त होकर के, ध्रुवधाम में डटे रहो। कमल ममल अनुभव में आ गये, निजानंद से कर्म दहो । ७.

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