Book Title: Adhyatma Amrut
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 29
________________ ४५] [अध्यात्म अमृत जयमाल कोई किसी का कुछ नहीं करता, कहते यह अरिहंत हैं। आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ॥ २२. श्री छहढाला जयमाल ७. भेदज्ञान तत्व निर्णय करना, तारण पंथ आधार है। मुक्ति सुख को देने वाला, समयसार का सार है । वस्तु स्वरूप जान कर ज्ञानी, बनता खुद भगवंत है। आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ॥ १. वीतराग विज्ञान सार है, शिव सुख को देने वाला । निज शुद्धात्म स्वरूप को देखो, चेतन रत्नत्रय माला || निज स्वरूप की विस्मृति से, हुआ यह सब गड़बड़ झाला। संसार मोक्ष का भेद समझ लो, सामने रक्खो छहढाला ॥ द्रव्य दृष्टि के हो जाने पर, द्रव्य स्वभाव दिखाता है। पुद्गल द्रव्य शुद्ध परमाणु, भ्रम में न भरमाता है । ध्रुव तत्व दृष्टि में रहता, बनता वह निर्ग्रन्थ है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है । निज अज्ञान मोह के कारण, काल अनादि भटक रहे । नरक निगोद के बहु दुःख भोगे, चारों गति में लटक रहे । सद्गुरू करूणा करके जगा रहे, अब भी चेत जाओ लाला। संसार मोक्ष का भेद समझ लो, सामने रक्खो छहढाला ॥ ३. पराधीन पर के आश्रय से, मुक्ति नहीं मिलने वाली। पर की पूजा क्रिया कांड सब, मन समझाना है खाली ॥ निज चैतन्य देव को पूजो, बन जाओ अरिहंत है। आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ॥ पहली ढाल में चारों गति के, दु:खों का ही वर्णन है। पर पर्याय के आश्रय चेतन, कैसा करता क्रंदन है । देख लो अपने सामने सब है, छोड़ो सब जग जंजाला। संसार मोक्ष का भेद समझ लो, सामने रक्खो छहढाला ।। १०. जन जन का अध्यात्म धर्म है, निज स्वरूप को पहिचानो। बाह्य परिणमन कर्माधीन है, इसको अपना मत मानो । ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम, देखो खिला बसंत है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ॥ ४. दूसरी ढाल में मिथ्यादर्शन, गृहीत अगृहीत बताया है। मैं सुखी दुखी मैं रंक राव, इस मान्यता ने भरमाया है। आतम अनात्म के ज्ञानहीन, सारी करनी है विकराला । संसार मोक्ष का भेद समझ लो, सामने रक्खो छहढाला ॥ (दोहा) सोलहवीं सदी में हुए, सदगुरू तारण संत । शुद्ध अध्यात्म की देशना, चला यह तारण पंथ॥ जाति पांति का भेद तज, किया धर्म प्रचार । ज्ञानानंद स्वभाव से, मच रही जय जयकार || सम्यक् दर्शन ज्ञान चरण ही, मोक्षमार्ग कहलाता है। निज स्वरूप का अनुभव ही तो, परमानंद का दाता है | सप्त तत्व की श्रद्धा होना, अष्ट अंग की है माला । संसार मोक्ष का भेद समझ लो, सामने रक्खो छहढाला ॥ ६. सम्यकदर्शन की यह महिमा, आत्म कमल अविकार है। मुक्ति श्री का दर्शन होता, मचती जय जयकार है ॥

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