Book Title: Adhyatma Amrut
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 30
________________ ४७] ७. ८. ९. दौल समझ सुन चेत सयाने, खड़ा सामने है काला । संसार मोक्ष का भेद समझ लो, सामने रक्खो छहढाला ॥ , चौथी ढाल में सम्यक्ज्ञान की महिमा बड़ी विशाल है। सम्यक् ज्ञानी चारित्र धारें, श्रावक एक मिशाल है । ज्ञान समान न आन जगत में जीवन का है प्रतिपाला । संसार मोक्ष का भेद समझ लो, सामने रक्खो छहढाला ॥ साधु पद धारण करके जो , [ अध्यात्म अमृत आतम ध्यान लगाता है। वीतराग बन जाता है ॥ बारह भावना के चिंतन से , स्वरूपाचरण में लीन जो होता, खाज खुजाते मृग छाला । संसार मोक्ष का भेद समझ लो, सामने रक्खो छहढाला ॥ साधु चर्या कैसी होती, छठी ढ़ाल में आया है । द्वादस तप तपने का सच्चा, विधि विधान बताया है ॥ बिना ज्ञान के थोथी क्रिया, जन्म-मरण का जंजाला । संसार मोक्ष का भेद समझ लो, सामने रक्खो छहढाला ॥ १०. इमि जानि आलस हानि, साहस ठानि यह सिख आदरो । जब लों न रोग जरा गहे, तबलों झटिति निज हित करो | ज्ञानानंद स्वभाव साधना सिद्धि को देने वाला । संसार मोक्ष का भेद समझ लो, सामने रक्खो छहढाला ॥ , दोहा क्षत्रिय वीर के हाथ में, रहती है तलवार । एक हाथ में ढाल रख करता शत्रु की मार ॥ कर्म शत्रु को जीतने, रखो ज्ञान की ढ़ाल । ज्ञानानंद में सदा रहो, पढ़ लो यह जयमाल ॥ जयमाल ] १. २. ३. ४. ५. ६. २३. ज्ञानी ज्ञायक ध्रुव तत्व शुद्धातम हूं, परमातम सिद्ध समान हूं । निरावरण चैतन्य ज्योति मैं ज्ञायक ज्ञान महान हूं ॥ वस्तु स्वरूप को जाना जिसने, ध्रुव ध्रुव ही कहता है । ज्ञानानंद निजानंद रत हो, ज्ञानी ज्ञायक रहता है । , कर्म उदय पर्याय से उसका कोई न संबंध है । पर की तरफ न दृष्टि देता, स्वयं पूर्ण निर्बन्ध है ॥ पूर्व कर्म बन्धोदय जैसा, समता से सब सहता है । ज्ञानानंद निजानंद रत हो, ज्ञानी ज्ञायक रहता है । खाना पीना सोना चलना, सब पुद्गल पर्याय है । अच्छा बुरा न पुण्य-पाप है, सुख दुःख न हर्षाय है ॥ अभय अडोल अकंप निरन्तर, मन के साथ न बहता है। ज्ञानानंद निजानंद रत हो, ज्ञानी ज्ञायक रहता है | करना - धरना छूट गया सब जो होना वह होता है। , किसी की कोई परवाह नहीं, क्या आता जाता खोता है ॥ अड़ीधक्क अपने में रहता, सब कर्मों को हरता है। ज्ञानानंद निजानंद रत हो, ज्ञानी ज्ञायक रहता है | - किसी दशा में किसी हाल में, कहीं रहे कैसा होवे । इससे उसे कोई न मतलब अपने ध्रुव धाम सोवे ॥ सत्य धर्म की बात बताता, अहं ब्रह्मास्मि कहता है। ज्ञानानंद निजानंद रत हो, ज्ञानी ज्ञायक रहता है । कर्मोदय पर्याय अव्रती, व्रती हो महाव्रती हो । जग में जय जयकार मचे या, सारी साख ही गिरती हो ॥ निर्भय मस्त रहे अपने में, जग अस्तित्व को ढहता है । ज्ञानानंद निजानंद रत हो, ज्ञानी ज्ञायक रहता है । [४८

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