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जयमाल]
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[अध्यात्म अमृत निज घर रहो निजानन्द पाओ, पर घर में बदनाम है।
धुवधाम में डटे रहो बस, इतना ही अब काम है ॥ १०. शून्य समाधि लगाओ अपनी, निर्विकल्प निर्बंद रहो ।
अपनी ही बस देखो जानो, और किसी से कुछ न कहो ॥ ज्ञानानंद सौभाग्य जगा है, जग से मिला विराम है । धुवधाम में डटे रहो बस, इतना ही अब काम है ।
२५. ममल स्वभाव
१. सिद्ध स्वरूपी शुद्धातम है, पूर्ण शुद्ध निष्काम है।
ध्रुव त त्व टंकोत्कीर्ण अप्पा, ज्ञायक आतम राम है ॥ वस्तु स्वरूप सामने देखो, मिला यह अच्छा दांव है। पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ॥ ममल स्वभाव में रहने से ही, परमानन्द बरसता है। कर्मों का क्षय होता जाता, सहजानंद हरषता है । ज्ञान विराग की शक्ति अपनी, जितना उमंग उछाव है। पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ।। भेदज्ञान तत्व निर्णय द्वारा, वस्तु स्वरूप को जाना है। ध्रुव तत्व शुद्धातम हूँ मैं, निज स्वरूप पहिचाना है । दृढता धर पुरूषार्थ करो नर, देखें कितना चाव है।
पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ।। ४. शरीरादि सब ही भ्रांति है, मन माया भ्रम जाल है।
इनके चक्र में उलझा प्राणी, रहे सदा बेहाल है ॥ अनुभव प्रमाण सब जान लिया है, ये तो सभी विभाव हैं। पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ॥ व्यवहारिक सत्ता को छोड़ो, धर्म का अब बहुमान करो। वीतराग निस्पृह होकर के, साधु पद महाव्रत धरो ।।
ध्रुव तत्व की धूम मचाओ, बैठो आतम नांव है ।
पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ॥ ६. कर्मोदय सत्ता मत देखो, न संसार की बात करो।
धर्म कर्म का सब निर्णय है, चित्त में इतनी दृढ़ता धरो ॥ ढील-ढाल प्रमाद में रहना, ये ही जग भटकाव है।
पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ॥ ७. निज शुद्धात्म स्वरूप को देखो, ज्ञानानंद में मगन रहो।
निजानंद की धूम मचाओ, तारण तरण की शरण गहो । एक अखंड सदा अविनाशी, परम पारिणामिक भाव है। पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ॥ ममल स्वभाव में रहने लगना, मोक्षमार्ग पर चलना है। जीवन में सुख शांति आती, सब कर्मों का दलना है । पर का लक्ष्य -पक्ष न रहता, मिटता भेदभाव है। पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ॥ संसारी व्यवहार का जब तक, मूल्य महत्व अधिकार है। निज सत्ता स्वरूप को भूले, चलता मायाचार है । अपनी सुरत नहीं रहती है, शुद्ध दृष्टि अभाव है।
पर पर्याय पर दृष्टि न देना,ये ही ममल स्वभाव है ॥ १०. रूचि अनुगामी पुरूषार्थ होता, सब सिद्धांत का सार है।
रूचि कहां की और कैसी है, इसका करो विचार है ॥ दृष्टि पलटते सृष्टि पलटे, फिर न कोई लगाव है। पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ॥
जो अनन्त सिद्ध परमात्मा मुक्ति को प्राप्त हुए हैं, उनने शुद्ध स्वरूपी ज्ञान गुणमाला शुद्धात्म तत्व की अनुभूति को ग्रहण किया। जो कोई भी भव्यात्मा सम्यक्त्व से शुद्ध होंगे, वे भी मुक्ति को प्राप्त करेंगे यह श्री जिनेन्द्र भगवान ने कहा है।
श्री मालारोहण - गाथा ३२