Book Title: Adhyatma Amrut
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ [२९] ७. ८. ९. ताले सात तोड़कर अन्तर, रत्नत्रय निधि पानी है । सद्गुरू की छद्मस्थ वाणी, जिनवर की जिनवाणी है | [ अध्यात्म अमृत अंचित चिंतामणि अनन्त प्रवेश में, तिलक महोत्सव होते हैं। चिदानंद त्रिलोकीनाथ तब, शून्य समाधि में खोते हैं ॥ संसार तो आता जाता है, हम संसार छुड़ानी है । सद्गुरू की छद्मस्थ वाणी, जिनवर की जिनवाणी है | सुभाव सुभाव मुक्ति विलसाई, सोहं की ध्वनि होती है। निज हेर बैठो रार करो नहीं, सब दुनियांदारी खोती है ॥ अस्थाप छत्र तिलक प्रसाद हो, दयाल प्रसाद बखानी है। सद्गुरू की छद्मस्थ वाणी, जिनवर की जिनवाणी है ॥ जय साह जय साह सुल्प सुन्न हो, दुंदुहि शब्द निकलते हैं। अनन्तानन्त उत्पन्न प्रवेश हो, ज्ञानानंद मचलते हैं । मुक्ति विलास पात्र वह होता, तीर्थंकर अगवानी है। सद्गुरू की छद्मस्थ वाणी, जिनवर की जिनवाणी है | १०. अगहन सुदी सातें पुष्पावती, पंद्रह सौ पाँच में जन्म हुआ । संवत् पंद्रह सौ बहत्तर, जेठ वदी छठ तिलक हुआ । सर्वार्थसिद्धि में प्रयाण कर, छोड़ी अकथ कहानी है । सद्गुरू की छद्मस्थ वाणी, जिनवर की जिनवाणी है | जिन स्वभाव को जानकर, जो बन गये भगवान । छद्मस्थ वाणी में कहा, तारण तरण महान || मैं भी ध्रुव शुद्ध सिद्ध हूं, खुद आतम भगवान | ऐसी दृढ़ श्रद्धा करो, जो चाहो कल्याण ॥ जयमाल ] १. ॐ नमः सिद्धं की धुन ही, ध्रुव पद प्राप्त कराती है। आतम शुद्धातम परमातम, सिद्ध परम पद पाती है । महावीर की दिव्य देशना प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र है । अन्मोय कलन जिन श्रेणी, यह नाम माला का मंत्र है ॥ २. ३. ४. ५. १४. श्री नाम माला जयमाल ६. सभी जीव सम्यग्दृष्टि हो, आतम का कल्याण करें । मोह अज्ञान - मिथ्यात्व को छोड़ें, संयम तप महाव्रत धरें ॥ नरभव सब शुभयोग मिले हैं, तारण स्वामी से संत हैं। अन्मोय कलन जिन श्रेणी, यह नाम माला का मंत्र है ॥ वीतराग की ध्यान समाधि, जिन श्रेणी कहलाती है । मुक्ति गामिनो मार्ग यही है, केवल ज्ञान प्रगटाती है ॥ जिसकी होवे अन्तर साधना, वह बनता अरिहन्त है । अन्मोय कलन जिन श्रेणी, यह नाम माला का मंत्र है ॥ नाम ठाम अर्क छत्तीस को, नाम माला की कहानी है । महा उत्पन्न कलिकमल न्यानश्री, छत्तीस अर्जिका बखानी हैं । सात मुनि भी संघ में जिनके, दिया सबको महामंत्र है । अन्मोय कलन जिन श्रेणी, यह नाम माला का मंत्र है | कमल श्री चरन श्री अर्जिका, दिप्ति श्री आनन्द श्री । अलषश्री सर्वार्थ श्री थी, विंदश्री और समय श्री ॥ दौ सौ इकतीस ब्रह्मचारी बहिनें, सुवनी सब स्वतंत्र हैं । अन्मोय कलन जिन श्रेणी, यह नाम माला का मंत्र है ॥ " साठ ब्रह्मचारी थे संघ में शुद्ध अध्यात्म जगाया था । ॐच नीच का भेदभाव सब, धर्म से मार भगाया था । [३०

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53