Book Title: Adhyatma Amrut
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 14
________________ १५] [अध्यात्म अमृत जयमाल ध्रुव तत्व की धूम मचाना, करना जय जयकार है। सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है ॥ ७. श्री त्रिभंगीसार जयमाल ७. द्रव्य भाव नो कर्मों से यह, चेतन सदा न्यारा है। टंकोत्कीर्ण अप्पा ममल स्वभावी, परमब्रम्ह प्रभु प्यारा है। एक अखंड अभेद आत्मा, निज सत्ता स्वीकार है। सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है ॥ आसव बंध तत्व का होना, अपना स्वयं विभाव है। संवर-निर्जर तत्व का होना, अपना शुद्ध स्वभाव है। सम्यग्दर्शन ज्ञान चरण ही, तीन लोक में सार है। पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगी सार है । निज को जान लिया अब हमने, पर का भ्रम सब टूट गया। धर्म कर्म में कोई न साथी, मोह-राग सब छूट गया । ज्ञानानंद निजानंद रहना, सहजानंद सुखसार है । सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है । आसव बंध का रुकना ही तो, मोक्षमार्ग कहलाता है । सम्यग्दर्शन होने पर ही, निज स्वभाव दिखलाता है । ज्ञानी सम्यग्दृष्टि को ही, सब संसार असार है । पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगी सार है ।। जिनवाणी मां जगा रही है, अब तो हम भी जाग गये । निज सत्ता स्वरूप पहिचाना, भ्रम अज्ञान भी भाग गये । दृढ निश्चय श्रद्धान यही है, अब न मायाचार है। सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है ॥ मोह अज्ञान के कारण प्राणी, काल अनादि भटक रहा। भाव शुभाशुभ कर करके ही, चारों गति में लटक रहा ॥ अपना शुद्ध स्वभाव न जाना, भटक रहा संसार है। पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगी सार है । १०. वीतराग साधु बन करके, आतम ध्यान लगायेंगे । चिदानंद चैतन्य प्रभु की, जय जयकार मचायेंगे ।। मुक्ति श्री का वरण करेंगे, कहते यह शतबार है । सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है । ४. शुभ भावों से पुण्य बन्ध हो, अशुभ भाव से पाप हो। भाव कर्म से द्रव्य कर्म हो, द्रव्य कर्म से भाव हो । इसमें ही तो फंसा अज्ञानी, करता हा-हाकार है। पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगी सार है । (दोहा) जन्म मरण से छूटना, उपदेश शुद्ध का सार । जिनवर की यह देशना, करो इसे स्वीकार ।। छोडो भ्रम-अज्ञान को, दृढ़ता से लो काम | आतम ही परमात्मा, बैठो निज ध्रुवधाम || ५. भेदज्ञान तत्वनिर्णय द्वारा, जिसने निज को जान लिया। भाव शुभाशुभ छोड़कर उसने, शुद्धभाव रस पान किया । निज सत्ता शक्ति को देखा, मचती जय जयकार है। पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगी सार है । ६. एक सौ आठ भाव आश्रव जो, कर्मबंध के कारण हैं। इनसे ही बच करके रहना, समझाते गुरु तारण हैं |

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