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[अध्यात्म अमृत
जयमाल]
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सहजानंद में रत रहता है, शुद्ध आचार-विचार हैं । सावधान अपने में रहना, यही श्रावकाचार है |
५. श्री ज्ञान समुच्चय सार
जयमाल
७. ज्ञानानंद स्वभाव का रुचिया, अब व्रत प्रतिमा धरता है।
पंच अणुव्रत ग्यारह प्रतिमा, निजहित पालन करता है । ख्याति लाभ पूजादि चाह का, जहाँ न अंश विकार है। सावधान अपने में रहना, यही श्रावकाचार है ॥
शक्ति अनुसार मार्ग पर चलता, निस्पृह जगत उदासी है। अपने में आनन्दित रहता, वह शिवपुर का वासी है । ब्रह्मचर्य रत रहता हरदम, सम्यक् ही व्यवहार है । सावधान अपने में रहना, यही श्रावकाचार है ॥
१. द्रव्य भाव नो कर्मों से, यह न्यारा आतमराम है ।
धु वतत्व है सिद्ध स्वरूपी, पूर्ण शुद्ध निष्काम है ।। अपने भ्रम अज्ञान के कारण, भटक रहा संसार है। भेदज्ञान तत्वनिर्णय करना, ज्ञान समुच्चय सार है । जिनवर की वाणी में आया, आतम ही परमातम है। सद्गुरूओं ने यही बताया, आतम ही शुद्धातम है | जिनवाणी मां बता रही है, सब संसार असार है । भेदज्ञान तत्वनिर्णय करना, ज्ञान समुच्चय सार है ।
निश्चय व व्यवहार शाश्वत, दोनों का ही ज्ञाता है । त्रेपन क्रियाओं का पालक, आचार्य पदवी पाता है | निश्चय धर्म शुद्ध आतम ही, जिसका एक आधार है। सावधान अपने में रहना, यही श्रावकाचार है |
३. द्वादशांग का सार यही है, निज स्वरूप स्वीकार करो।
मोह -राग अज्ञान को छोड़ो, संयम - तप व्रतादि धरो । व्यर्थ समय अब नहीं गंवाओ, अब भ्रमना बेकार है। भेदज्ञान तत्वनिर्णय करना, ज्ञान समुच्चय सार है |
१०. धर्म ध्यान में रत रहता है, अनुमति उद्दिष्ट का त्यागी है।
निश्चय नय की साधना करता, शुद्धातम अनुरागी है ॥ साधू पद धारण करने को, अन्तर में तैयार है । सावधान अपने में रहना, यही श्रावकाचार है ॥
४. भेद ज्ञान तत्व निर्णय करना, बुद्धि का यह काम है।
जीवन में सुख शान्ति आती, मिलता पूर्ण विराम है ॥ बिना ज्ञान के इस जग में तो, जीना भी दुश्वार है। भेदज्ञान तत्वनिर्णय करना, ज्ञान समुच्चय सार है ॥
(दोहा) सम्यग्दृष्टि ज्ञानी का, सम्यक् हो व्यवहार । कथनी करनी एक सी, जिनवाणी अनुसार ।। तारण स्वामी रचित यह, ग्रन्थ श्रावकाचार। सही सही पालन करो, हो जाओ भव पार ॥
भेद ज्ञान से सम्यग्दर्शन, तत्व निर्णय से ज्ञान हो । ज्ञानी सम्यग्दृष्टि का फिर, जीवन सदा महान हो ।। कर्मबन्ध होना मिट जाते, पाता सुख अपार है । भेदज्ञान तत्वनिर्णय करना, ज्ञान समुच्चय सार है |
६.
आत्मध्यान करने से होता, कर्मों का विध्वंस है। सारे कर्म विला जाते हैं, शेष न रहता अंश है ॥