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[अध्यात्म अमृत
जयमाल]
जड़ अदेव की पूजा करना, यही महा अज्ञान है । पूज्य समान आचरण ही, पूजा का सही विधान है।
३. श्री कमल बत्तीसी
जयमाल
७. लोक मूढता, देवमूढता, यह संसार का कारण है।
इनसे कभी भला न होता, बतलाते गुरू तारण हैं । क्रिया कांड को छोड़ा जिसने, पाता पद निर्वाण है। पूज्य समान आचरण ही, पूजा का सही विधान है।
१. परमदेव परमात्म तत्व का, निज में दर्शन करता है।
पंचज्ञान परमेष्ठी पद की, जो श्रद्धा उर धरता है ।। सरल शान्त निर्विकल्प हो गया, वह ज्ञानी गुणवान है। कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है॥
जो चेतन भगवान पूजता, ज्ञानानंद में रहता है । स्वयं सिद्ध परमातम बनता, यह जिन आगम कहता है । जिनवाणी का सार यही है, बनना खुद भगवान है। पूज्य समान आचरण ही, पूजा का सही विधान है ।
सभी जीव परमात्म तत्व हैं, अनन्त चतुष्टय धारी हैं। जड शरीर कर्मादि पुद्गल, इनकी सत्ता न्यारी है । निमित्त नैमित्तिक संबंध पर्यायी, इसका जिसको ज्ञान है। कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है ॥
ज्ञान मार्ग ही मुक्ति देता, भव से पार लगाता है । निज अज्ञान के कारण प्राणी, जग में चक्कर खाता है । तारण पंथ का पालन करता, बनता वीर महान है । पूज्य समान आचरण ही, पूजा का सही विधान है ।
कर्मों का नश्वर स्वभाव है, अपने आप सब झड़ते हैं। जीव शुभाशुभ भाव के द्वारा, पुण्य-पाप से बंधते हैं। शुद्ध स्वभाव में लीन जीव के, कर्मों का श्मशान है। कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है ।
१०. निश्चय दृष्टि निज में रहती, व्यवहार में व्यवहार है।
पर पर्याय का लक्ष्य न रहता, वह तो सब संसार है ॥ पंडित की यह पूजा सच्ची, करती निज कल्याण है। पूज्य समान आचरण ही, पूजा का सही विधान है।
४. स्व सत्ता पर के स्वरूप का, जिसको सम्यग्ज्ञान जगा ।
मिथ्यात्व शल्य आदि का, भ्रम-भय सब अज्ञान भगा । सारे कर्म विला जाते हैं, धरता आतम ध्यान है । कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है ॥
(दोहा) सम्यग्ज्ञान स्व-पर निर्णय, शान्ति का दातार। ज्ञानानंद स्वभाव से, मचती जय जयकार ।। पंडित पूजा से बने, खुद आतम भगवान । स्वयं-स्वयं में लीन हो, पाता पद निर्वाण ॥
मन मनुष्य की जाग्रत शक्ति, बंध मोक्ष का कारण है। इसके भेद को जानने वाला, कहलाता गुरू तारण है। आतम शक्ति जाग्रत होती, मन होता अवसान है । कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है ॥
जनरंजन मनरंजन गारव, कलरंजन भी दोष है । आतम के यह महाशत्रु हैं, यही तो राग और रोष हैं।