Book Title: Adhyatma Amrut Author(s): Gyanand Swami Publisher: Bramhanand Ashram View full book textPage 3
________________ प्रकाशकीय अध्यात्म अमृत जयमाल का दूसरी बार प्रकाशन करते हुये हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। यह अमूल्य निधि, जिसका लाभ सभी अध्यात्म प्रेमी भव्य जीव ले सकेंगे। यह पूज्य श्री स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज की आत्म साधना की विशेष उपलब्धि है, जो सहज में लिखने में आ गई है। इतनी सरल सहज सुबोध अपनी भाषा में अध्यात्म के गूढतम रहस्यों को इस प्रकार छंदबद्ध करना बहुत ही गहन साधना का परिणाम है। इसमें श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज के चौदह ग्रंथों की जयमाल, आचार्य कुन्द कुन्द देव के पांच ग्रंथों की जयमाल, अमृत कलश, छहढाला आदि तथा अन्य स्वतंत्र मौलिक जयमाल, वैराग्य वर्धक भजन संग्रहीत किये गये हैं। वैसे तो पूज्य श्री द्वारा लिखित कई ग्रंथों की टीकाएं हैं, तारण की जीवन ज्योति और अन्य रचनाएँ हैं जो सब प्रकाशित होना है। जिनसे अध्यात्म प्रेमी भव्य जीवों को बहुत लाभ होगा। यह अध्यात्म अमृत जयमाल तो सहज में ही उपलब्ध हो गई जिसे दूसरी बार प्रकाशित करने का हमें सौभाग्य मिला है। इसका स्वाध्याय चिंतन मनन कर आप भी अपने जीवन में अध्यात्म अमृत को उपलब्ध होवें तभी इसकी सार्थकता है। भविष्य में और कई प्रकाशन करने की योजना है, आपका सहयोग मार्गदर्शन हमें आत्मबल प्रदान करेगा। श्रीगुरू महाराज की वाणी के प्रचार-प्रसार हेतु "ब्रह्मानंद आश्रम"पिपरिया सदैव कटिबद्ध है । इसी कटिबद्धता अनुसार सभी साधकजन गांव-गांव, शहर-शहर में अध्यात्म की गंगा प्रवाहित कर रहे हैं। सन् १९९० में पिपरिया समाज को आत्मनिष्ठ साधक पूज्यश्री स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज के "वर्षावास" का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। तभी से समाज में धार्मिक चेतना की विशेष किरणें प्रस्फुटित हुई। पूज्य श्री के मंगलमय सानिध्य में ही ब्रह्मानंद आश्रम के तीन पुष्प -१. अध्यात्म उद्यान की सुरभित कलियां, २. तारण गुरू की वाणी अमोलक (विमल श्री भजन संग्रह) एवं ३. जीवन जीने के सूत्र, प्रकाशित हो चुके थे तथा विगत सन् १९९६ में अध्यात्म रत्न श्रद्धेय बा. ब्र. श्री वसंतजी महाराज द्वारा अथक परिश्रम से तैयार किया गया पाठशालाओं हेतु पाठ्यक्रम "ज्ञान दीपिका" भाग-१,२,३ का सुंदर प्रकाशन चतुर्थ पुष्प के रूप में हुआ जिससे समाज की बहुत बड़ी कमी दूर हुई। इसके पश्चात् अध्यात्म अमृत का पांचवें पुष्प के रूप में प्रथम बार प्रकाशन हुआ। अध्यात्म प्रकाश (संस्कार शिविर स्मारिका) छठवां पुष्प, पूज्य श्री द्वारा की गई श्री मालारोहण जी ग्रंथ की अध्यात्म दर्शन टीका - सातवां पुष्प और अध्यात्म अमृत का दूसरी बार प्रकाशन कर आठवें पुष्प के रूप में यह कृति आपके कर कमलों में समर्पित कर रहे हैं। पज्य श्री स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज द्वारा लिखे गए आध्यात्मिक टीका ग्रंथ श्री मालारोहण,पंडित पूजा और अध्यात्म किरण (प्रश्नोत्तर) का प्रकाशन हो चुका है। श्री कमल बत्तीसी (अध्यात्म कमल टीका) के प्रकाशन का कार्य भी चल रहा है। पूज्य श्री ने इन कृतियों में अध्यात्म और आगम के परिप्रेक्ष्य में ग्रंथों के हार्द को व्यक्त किया है। पूज्य श्री द्वारा की गई श्री श्रावकाचार, उपदेश शुद्ध सार, त्रिभंगी सार जी की अनुपम टीकायें शीघ्र ही आपको उपलब्ध कराने का प्रयास है, साथ ही पूज्य श्री की एक बड़ी अद्भुत मौलिक रचना है "तारण की जीवन ज्योति" उसके भी प्रकाशन की चर्चा है जो समय पर उपलब्ध हो सकेगी। इसके साथ ही पूज्य ब. श्री बसंत जी महाराज के मधुर कैसेट तथा अन्य तारण साहित्य का प्रकाशन कर धर्म प्रभावना करना हमारा प्रमुख उद्देश्य है। यह हमारा सौभाग्य है कि ब्रह्मानंद आश्रम पिपरिया को श्री गुरूवाणी के प्रचार-प्रसार करने का सौभाग्य मिला है। ब्रह्मानंद आश्रम से संचालित होने वाली गतिविधियों को मूर्त रूप देने वाले हमारे दानी महानुभावों के नाम इस प्रकार हैं- १. पूज्य ब्र.श्री सुशीला बहिन जी बीना, २. श्रीमती प्रभा देवी जैन कलकत्ता, ३.श्री रमेशचन्द जी जैन, सरधना, ४.समाज श्री गुलाबचंद जी प्रेमी पिपरिया,५.श्री कन्हैयालाल जी हितैषी पिपरिया, ६. श्री अशोक कुमार जी नागपुर, ७. श्री सियाबाई, जयंतीबाई शाहनगर, इन सभी महानुभावों के हम आभारी हैं, जिन्होंने हमें धर्म प्रभावना के कार्य हेतु उत्साहित किया है। आशा है निश्चित ही यह अनमोल निधि पाकर आपका जीवन भी अध्यात्म से सराबोर होगा। इस आठवें पुष्प के प्रकाशन में यदि कोई त्रुटि, कमी रह गई हो तो विद्वत्जन हमारी अल्पज्ञता को क्षमा करते हुए हमें मार्गदर्शन प्रदान करने की कृपा करेंगे तथा श्री जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में सदैव सहयोग देते रहेंगे। इसी भावना सहित प्रस्तुत अध्यात्म अमृत जयमाल, आठवौं पुष्प आपके कर कमलों में भेंट करते हुये..... (विनीत कन्हैया लाल हितैषी विजय मोही अध्यक्ष मंत्री ब्रह्मानंद आश्रम, पिपरिया ब्रह्मानंद आश्रम, पिपरिया दिनांक- १२ मई १९९९Page Navigation
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