Book Title: Adhyatma Amrut Author(s): Gyanand Swami Publisher: Bramhanand Ashram View full book textPage 7
________________ जयमाल * तत्व मंगल * देव को नमस्कार तत्वं च नंद आनंद मउ, चेयननंद सहाउ । परम तत्व पद विंद पउ, नमियो सिद्ध सुभाउ ॥ गुरू को नमस्कार गुरू उवएसिउ गुपित रूइ. गुपित न्यान सहकार । तारण तरण समर्थ मुनि, गुरू संसार निवार । धर्म को नमस्कार धम्मु जु उत्तउ जिनवरहिं, अर्थति अर्थह जोउ। भय विनास भवु जु मुनहु, ममल न्यान परलोउ ॥ देव को, गुरू को, धर्म को नमस्कार हो। त्रिलोकं भुवनार्थं ज्योति:, उवंकारं च विन्दते॥ अज्ञान तिमिरान्धानां, ज्ञानांजन श्लाकया। चक्षुरून्मीलितं येन, तस्मै श्री गुरवे नमः।। श्री परम गुरवे नमः, परम्पराचार्येभ्यो नमः।। भगवान महावीर स्वामी की जय ॥ जिनवाणी मातेश्वरी की जय ॥ श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य महाराज की जय ॥ * मंगलाचरण * मैं ध्रुवतत्व शुद्धातम हूँ, मैं ध्रुवतत्व शुद्धातम हूँ ॥ मैं अशरीरी अविकारी हूँ, मैं अनन्त चतुष्टयधारी हूँ। मैं सहजानंद बिहारी हूँ, मैं शिवसत्ता अधिकारी हूँ ॥ मैं परम ब्रह्म परमातम हूँ, मैं धुवतत्व शुद्धातम हूँ ... मैं ज्ञेय मात्र से भिन्न सदा, मैं ज्ञायक ज्ञान स्वभावी हूँ। मैं अलख निरंजन परम तत्व,मैं ममलह ममल स्वभावी हूँ। मैं परम तत्व परमातम हूँ, मैं धुवतत्व शुद्धातम हूँ.... मैं निरावरण चैतन्य ज्योति, मैं शाश्वत सिद्ध स्वरूपी हैं। मैं एक अखंड अभेद शुद्ध, मैं केवलज्ञान अरूपी हूँ ॥ मैं ज्ञानानंद सिद्धातम हूँ, मैं धुवतत्व शुद्धातम हूँ.... ॐ नमः सिद्धं...ॐ नम: सिद्धं... ॐ नमः सिद्धं.... देव देवं नमस्कृतं, लोकालोक प्रकाशकं । * गुरू - भक्ति * आओ हम सब मिलकर गायें, गुरूवाणी की गाथायें। है अनन्त उपकार गुरू का, किस विधि उसे चुका पायें । वन्दे तारणम् जय जय वन्दे तारणम्॥ चौदह ग्रंथ महासागर हैं, स्वानुभूति से भरे हुए। उन्हें समझना लक्ष्य हमारा, हम भक्ति से भरे हुए ॥ गुरू वाणी का आश्रय लेकर, हम शुद्धातम को ध्यायें, है अनन्त ........ कैसा विषम समय आया था,जब गुरूवर ने जन्म लिया। आडम्बर के तूफानों ने, सत्य धर्म को भुला दिया । तब गुरुवर ने दीप जलाया, जिससे जीव संभल जायें, है अनन्त........ अमृतमय गुरू की वाणी है, हम सब अमृत पान करें। जन्म जरा भव रोग निवारें, सदा धर्म का ध्यान धरें। हम अरिहंत सिद्ध बन जायें, यही भावना नित भायें, है अनन्त........ शुद्ध स्वभाव धर्म है अपना, पहले यही समझना है। क्रियाकाण्ड में धर्म नहीं है, ब्रह्मानंद में रहना है। जागो जागो हे जग जीवो, सत्य सभी को बतलायें, है अनन्त........Page Navigation
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