Book Title: Aavashyak Sutram Purv Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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कषायनिक्षेपाः
WaHASHASSA
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नमस्कार.131 मग्गणा-णेगमो सब्वेवि इच्छति, संगहववहारा आदेसं उप्पत्तिं च णेच्छंति, उज्जुसुतो आदेसं समुप्पत्तिं च ठवणं च णेच्छति,
| तिण्हं सद्दणयाण णामकसायो भावकसायो एते वत्थू , सेसा अवत्। णामट्ठवणाओ गताओ, दन्वकसायो दुविहो-कम्मदव्बकसाओ ॥५१८॥
| णोकम्मदव्बकसायो य, कम्मदव्बकसायो कसायवेदणिज्जं बद्धअणुदिण्णं, णोकम्मदव्वकसायो सज्जकसायो लिंबकसायो य एव| मादी, समुप्पत्ती जण्णिमित्तं कसाओ उप्पज्जति, जथा-कहे अप्फिडितो कट्ठो कसायो, एवं जत्थ जत्थ,-किं एत्तो कद्रुतरं जम्मू
ढो खाणुयंमि आवडितो। खाणुस्स तस्स रूसति ण अप्पणो दुप्पमादस्स ॥१॥ पच्चयकसायो णाम जदि पुव्वबद्धो पच्चया ण | होज्जा ता ते णोदेज्जा, यथा- इह इंधने असति अग्नेः प्रज्वलनाभावः, आदेसकसाया णाम जथा केतवेण संदघोहभिउडी क| सायमंतरेणावि तथा आदिश्यते एवंविध इति, रसकसायो कविट्ठादी, भावकसाया चत्तारिवि उदिण्णा कोधादी, तस्स कोधस्स णिक्खेवो चउव्विधो, दोण्णिवि गता, णोकम्मदब्बकोधो चम्मारकोधादी, कम्मदव्वकोधो चउब्बिहो- अणुदिण्णो उवसंतो बज्झ| माणो उदीरिज्जमाणो, अणुदिण्णो जो ण वेदिज्जति, उवसंतो जो य उवसामिओ, बज्झमाणो तप्पढमताए, उदीरिज्जमाणो उदारणावलियापविट्ठो ण ताव वेदिज्जति, भावकोहो उदिण्णो, तस्स चत्तारि विभागा-उदगरातिसमाणो वालुय० पुढविरातिसमाणो पव्वयरायसमाणो, उदगे कड्डिता अनंतरं, वालुयाए दिवसेहिं केहिवि, पुढवी केहि छहिं मासेहि, पव्वतो जावज्जीवाए, जो ताए बेलाए उवसमति सो उदगरातिसमाणो, पक्खिए वालुया, चाउम्मासियाए पुढवी, संवत्सरिए वोलीणे जो ण उवसमति सो पव्वतराति, देवगतिमणुयतिरियनरएसु गच्छति यथासंख्यं कोवोदएणं, कोवेति तत्थ उदाहरण
वसंतपुरे उच्छिण्णवंसो एगो दारओ देसंतरं संकममाणो सत्थेणं उज्झितो तावसपल्लि गतो, तस्स णामं आग्गियओत्ति, ताव
SIGNALISASI
॥५१८॥
ॐ
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