Book Title: Aavashyak Sutram Purv Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 537
________________ नमस्कार | णियाए गतो सुविसत्थो बहुमज्जं पाएत्ता गंगाए पक्खित्तो, सावि यदव्वं खातितूणं वहति गायति य घरे २, पुच्छिता भणति- स्पर्शनेव्याख्यायां अम्मापितीहिं एरिसो दिण्णो, किं करेमि, सोवि राया एगस्थ णगरे उच्छलिओ, रुक्खच्छायाए सुचो, ण परावत्तति छाता, राया कान्द्रियं परि तत्थ मयओ अपुत्तो, आसो अहिवासितो तत्थ गतो, जयजयसदेण पडिबोहिओ, राया जातो, ताणि तत्थ गताणि, रनो कहियं.. पहाप॥५३५॥ | आणाविताणि, पुच्छिया साहति-अम्मापितीहिं दिनो, राया भणति-बाहुभ्यां शोणितं पीतं, ऊरुमांसं च भक्षितम् । गंगायां वाहितो है सगोश्व भर्ता, साधु साधु पतिव्रते ! ॥१॥ णिव्विसियाणि आणताणि, एवं दोण्हवि से सओ सुकुमालियाए दुक्खाय फासेंदियं, जेहिं एते 8 दुज्जता दुरंता संसारवद्धणा इंदिया जिता णामिता ते अरिहा नमोक्कारस्स। इदाणि परिसहा, परिस्समंता 'सह मर्पणे मागोच्यवननिजेरार्थ च परिपोढव्याः परीसहाः, मार्गाच्यवनार्थ दर्शनपरीसह पण्णापरीसहो य, 'णस्थि Yणं परलोगे.' सेसा निजेरार्थ, एते बावीस प० तंजथा-दिगिंछापरीसहे १ पिवासापरीसहे २ सीत०३ उण्ह०४ दसमसग० ५अचेल०६अरति० इत्थी० ८चरिया०९णिसीहिया०१० सेज्जा०११ अक्कोस०१२वह०१३ जायण १४ लाभ०१५ रोग० १६ तृणस्पर्श०१७ मल०१८ सक्कारपुरस्कार. १९प्रज्ञा० २०अण्णाण०२१दसणपरी सहे२२ । दव्वपरी सहा इहलोगनिमित्तं जो सहति परव्वसो वा वहबंधणादीणि, तत्थ उदाहरणं, जहा-चक्के सामाइए इंददत्तपुत्ता, भावपरीसहा जो & संसारवोच्छेदनिमित्तं अणाइलो सहइति, तेण चेव उवणतो पसत्थो, जहा वा उत्तरजायणे सुतघोसणयं सोदाहरणं विभासिज्जा।& ॥५३५॥ इदार्णि उवसग्गा, उप सामीप्ये 'सृज विसर्गे' उपसरतीति उवसग्गा, उवसृजति वा अनेन उवसाः , तेवि परीसहेहिं चेन , इसमोतरंति अक्कोसादी, णवरं किंचि बिसेसा उवसग्गति भणति, ते चतुर्विधा- दिव्वा माणुसा तिरिया आत्मसंवेदनीया, दिव्वा RSHASREPRESE BASSASAR %

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