Book Title: Aavashyak Sutram Purv Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 564
________________ परिणामि की बुद्धिः नमस्कार कमेत्ता तं वंदति, खमएण णिग्गच्छंती हत्थे गहिया, भणिया य- कडपूयणे! एयं तिकालभोई वंदसि. इमे महातवस्सी ण वंदसिी, व्याख्यायां सा भणति- अहं भावखमयं वंदामि, ण दधखमएत्ति, गता, पभाते दोसीणस्स गतो, णिमंतेति, एगेण पायं गहाय खेलो छूढो, सो ॥५६२॥ भणति मिच्छामि दुक्कड, जं मए खेलमल्लयं तुम्भ णोवणीय, एवं सेसेहिवि, सो जिमेतुमारद्धो, तेहिं वारितो, णिवेगमावण्णो । पंचवि सिद्धा । विभासा ॥ अमच्चपुत्तो वरधणुओ, तस्स तेसु २ प्रयोजनेषु पारिणामिया, जथा माता मोताविता, सो पलाविओ, एयमादी सव्यं विभासियव्यं । अण्ण भणंति- एगो मंतिपुत्तो कप्पडियरायकुमारणं समं हिंडति, अण्णदाणेमित्तिओ घडितो, रचि देसकुडिठियाणं सिवा रडति, कुमारण णेमितिओ पुच्छितो-किं सा भणतित्ति ?, तेग भाणित- इमं भणति-इमंमि णदितित्थमि | पूराणीयं कलेवरं चिट्ठतित्ति, एयरस कडीए सयं पायंकाणं, कुमार ! तुम गेण्हाहि, तुज्झ पायंका मम य कलेवरंति, मुद्दियं पुण ण सक्कुणोमित्ति, कुमारस्स कोडं जातं, ते य वंचिय एगागी गतो, तहेव जातं, पायंके घेत्तूण पच्चागतो, पुगो रडति, पुणोवि पुच्छितो, सो भणति- चप्फिलगाइयं कहति, एस भणति- कुमार ! तुज्झवि पायंका संजाता मज्झवि कलेवरंति, कुमारो तुसिगीओ जाओ, अमच्चपुत्तण चिंतिय-पेच्छामु से सत्तं, किं किविणतणेग गतो आउ सोंडीरताए ?, जदि किविणतणेण कतं ण तस्स | रज्जति णियत्तामि, पच्चूसे भणति-बच्चह तुब्भे, मम पुग मूलं रुजति, ण सक्कुणोमि गंतु, कुमारेण भाणयं- ण जुत्तं तुम | मोत्तूण गंतु, किं तु मा एगत्थ कोइ जाणिहित्ति तेण वच्चामो, पच्छा कुलपुत्तघरं णीतो, समप्पिओ, तं च सव्वं पेज्जामुल्लं दिण्णं, मंतिपुत्तस्स अवगतं जथा सोंडीरताएत्ति, भणित चणेण- अस्थि मे विसेसो अतो गच्छामि, पच्छा गतो, कुमारेण रज्ज | पत्तं, भोगावि से दिण्णा । एतस्स पारिणामिगी। AASARASHRSSASARAN ॥५६२॥

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