Book Title: Aavashyak Sutram Purv Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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नमस्कार णिमित्ते अत्य० ॥२-५८ ॥ ९४४ ॥ णिमित्त, एगस्स सिद्धपुत्तस्स दो सीसगा णिमित्तं सिक्खंति,अण्णदा तणकट्ठस्स| वैनयिकी व्याख्यायां वच्चंति, तेहिं हत्थियपदा दिवा, एगो भणति- हत्थिणियाए पादा, कह?, कायएण, सा हथिणी काणी, कहं १, एगपासेण का बुद्धिः
तणाई खइताई, तेण काइएण णातं जथा- इत्थी पुरिसो य विलग्गाणि, सोवि णातो, सो य जुम्वाणत्ति णातो, हत्थाणिं रुभित्ता 11५५३॥
उद्विता, दारओ से भविस्सति जेण दक्षिणपादो गुरु, पोतरत्ता दसि रुक्खे लग्गा। णदीतीरे एगए थेरीए पुत्तो पवसितओ, तस्स आगमणं पुच्छिया, तत्थ घडओ भिण्णो, तत्थ य एगो भणति- तज्जातेण य तज्जातं, तण्णिभेण य तण्णिभं । तारूवेण य तारूवं, सरिस सरिसेण णिदिसे ॥१॥ मतओत्ति परिणामेति, बितिओ भणति-जाहि वुड्डे ! सो घरं आगतेल्लओ, सा गता, | दिहो, तुट्ठा, तओ सा जुवलग रूवए य गहाय आगता, सक्कारिओ, वितिओ भणति-मम सम्भावं ण कथेति, तेणं पुच्छियं, | तेहिं जथाभूतं कहितं, एगो भणति-भूमिजो भूमि चव मिलितो, एवं सोवि दारतो, भणितं च तज्जाएण य तज्जातं०' सिलोगो।
. अत्थसत्थे कप्पओ दधिकुंडगउच्छुकलावग एवमादि । लेहे जथा अट्ठारसलिविजाणओ । एवं गणिएवि । अण्ण भणंति | वहि रमतेण अक्खराणि सिक्खावियाणि गणियाइ य । कूवे खायजाणएणं पमाणं भाणतं, जथा एदूरे पाणियंति, तेहिवि खतं, तो द्र वोलीण, तस्स कहिय, पासे आणहहत्ति भाणता,धव्वसगसद्देण जलमुट्ठाहियं । आसे, आसवाणियगा बारवतिं गया, सव्वे कुमारा ४
थुल्ला बडे य गेण्हंति, वासुदेवेण जो दुब्बलङ्गो लक्खणजुत्तो सो गहितो । गद्दभे राया तरुणप्पितो, अण्णत्थ उद्धाइता सिणपल्लिते ॥५५३॥ जारिसे, तिसाए पीडिया, थेरं पुच्छंति, घोसावितं, एगेण पियपुत्तेण आणितओ, तेण कहियं, थेरो भणति-मुयह गद्दभे, जत्थ गद्दमा उस्सिंघेति जहिं लुठिंति य तत्थ पाणितं, खयं,पीता य । अण्णे भणंति-उसिंघणाए चेव जलासतं गता॥ लक्खणे पारसविसए
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