Book Title: Aavashyak Niryukti
Author(s): Fulchand Jain, Anekant Jain
Publisher: Jin Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ २२. तप- पूर्वक उत्तम सामायिक का कथन २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. ३१. ३२. ३५. सामायिक का पात्र समत्वभाव ही सामायिक है विकारों का अभाव एवं कषाय ( ४ ) विजयपूर्वक सामायिक का कथन कामेन्द्रिय-विषय एवं दुर्ध्यान- वर्जन पूर्वक सामायिक का कथन शुभध्यान द्वारा सामायिक- स्थान का कथन सावद्ययोग का त्याग ही सामायिक सामायिक करते समय श्रावक भी श्रमण के समान है। सामायिक के माहात्म्य हेतु दृष्टान्त तीर्थंकरों के काल में सामायिक उपदेश की भिन्नता प्रथम एवं अंतिम तीर्थंकर द्वारा छेदोपस्थापन- सामायिक के उप देश का कारण ३३. सामायिक करने की विधि एवं क्रम ३४. सामायिक नियुक्ति का उपसंहार एवं २ - चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक निर्युक्तिकथन की प्रतिज्ञा निक्षेप - विधि से चतुर्विंशतिस्तव के छह भेद ३६. लोगुज्जोए धम्मतित्थय..... इस गाथा द्वारा नामस्तव से प्रयोजन है या भावस्तव अथवा सभी स्तवों से ? इसका उत्तर ३७. लोक शब्द की निरुक्ति ३८. ३९. ४०. ४१. नौ निक्षेप द्वारा लोक का स्वरूप नाम - निक्षेप द्वारा लोक का स्वरूप स्थापना- निक्षेप द्वारा लोक का स्वरूप द्रव्य - निक्षेप द्वारा लोक का स्वरूप Jain Education International २३ २४ २५ २६ For Personal & Private Use Only २७ २८ ↓ & २९ ३० ३१ ३२ ३३-३४ ३५ ૩૬ ३७ ३८ ३९ ४० ४१ ४२ ४३-४४ २० २० २१ २१ २२-२३ २४ २४ x २५ .२६ २६ 2 20 २७ २८ २९ २९-३१ ३१ ३२ ३३ ३४ ३४ ३५-३८ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 284