Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (४०)
"आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2
काव्युत्सर्गः
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा बलयानि न खलखलात, सा भणति-अवणीताणि, सो तेण दुक्खेण अभाहतो परलोकाभिमुद्दो चिंतेति-बहुकाणं सो, एक्कस्स ण, | ध्ययने तएवं बहुयाण जाब विहरति । ॥२०८॥
इतो य गंधारविसएसु पुरिसपुर नगर, तत्थ नग्गई राया, सो अण्णदा अणुज णिग्गतो, पच्छति चूतं कुसुमित, तेणं एगा मंजरी गहिता, एवं खंधावारेण लएन्तेणं कट्ठापसेसो कतो, पडिएतो पुच्छति-कहिं सो चूतरुक्खे, अमच्चेण अक्खातो, पस्सति, | तो किह कहाणि कतो?, भणति-तुम्भेहिं एगा मंजरी गहिता, पच्छा अण्णोण जणेण गहिता, सो चिंतेति-एवं रज्जसिरिति जाच रिद्धी ताव सो भणति-अलाहि, जो धूतरुवयं ७।१७-४६ । २१६ भा० । सोवि विहरति । चत्तारिवि विहरमाणा खितिप| तिढे णगरे चाउब्बारं देवकुलं, पुथ्वेण करकंडू पविट्ठो, दुम्मुखो दक्षिणेण, किह माधुस्स अण्णतोमुहो अच्छामित्ति तेण वाणमतरेण दक्षिणपासवि मुह कत, नमी अपरणं, ततोपि मुहं कतं, गंधारो उत्तरेण, तओषि मुह फर्य । तस्स किर करकंटकस्स आबालतणाउ सा कंडू अस्थि चव, तण कंडकणं गहाय मसिणमसिणं कण्णो केइतो, तं तेण एगस्थ संगोवितं, तं दुमुहो पेच्छति । सो भणति-जदा रज्जं०।१७-४-७ उ० २७६।। जाव करकंडू पडिबयणं न देनि ताव नमी वयणसमकं इमं भणति जदा ते पितिय रज्जे ॥ उ० २७७।। कि तुम एतस्स आउनगोत्ति भणति, ताहे गंधारो भणति-सव्वं परिचज्जः । उ०२७८॥ ताहे करकंड भणति-मोक्खमग्गपवण्णाणं (गं पवनसु)।१७प्र० उ०२७९ ।। कस्सऊ वा परो मा वा०।१७-4श जधा जलंताणि । १७-५२।१४०९. सुचिरंपि बं०।१५-५३।१४१ । ताण सव्वाणंपि दबबिउम्सम्गो जं रज्जाणिल उज्झिताणि, भावविउसग्गो कोहादीणं २५ ॥
ॐॐ0146
दीप अनुक्रम [११-३६]
२०८॥
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