Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 287
________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति: [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 प्रत्या ख्यान- चूर्णिा ॥२८शा +- % दारिया दिडा, चोरिति गहिता परिणीता य । अण्णदा वाहिंगइयाहिं रमति, रायणियाए पोत बाहेति, इतरी पोत्तं दिती य सम्यच्चाविलग्गा, रण्या सारियं, मुका पव्वतिया । एवंविहं दुगुंछाफलं ॥ तिचाराः परपासंडपससाए-पाटलिपुत्ते चाणको, चंदोत्तेण भिच्छुयाण वित्ती हरिता, ते तस्स धम्म कहेंति, राया तूसदि, | चाणकं पलोएति, ण पसंसतित्ति ण देति. तेहिं चाणकमज्जा ओलग्गति, तीए सो करण कारितो, तेहिं कहिते भणति-सुभासितंति, रण्णा तंच अण्णं च दिण्णं, वितियदिवस चाणको रायाणं भणति-कीस दिणं , भणति-तुम्भीहं पसंसित, सो भणति-मए पसंसितं अहो सब्यारंभपवना किह लोगवत्तियावणगाणि करतित्ति, पच्छा ठितो, कतो एरिसगा?, तम्हा ण कातव्वा।। संथवे सो चेव सोरटुओ सड्डो। एवं पंचातियारविसुद्धं संमतं मूलं गुणसताण, मज्जादातिकम पुण पकरेंतो अतिसंकिलिट्ठपरिणामेण सम्पत्थ परिचयति धम्ममिति । दारं मूलं परिहाणं, आहारो भायण णिही । तुछ यस्सस्स धम्मस्स, सम्मत्तं परिकत्तियं ॥१॥ एवमिदाणि सुद्ध संगने बतावि गेण्हेतव्या, तत्थ विसयसुहपिवासाए अहवा बंधचजणाणुराएण अचर्यतो चावीस परिसहे दुस्सहे सहिउँ जदिन करेति विसुद्धं सम्म अतिदुकरं तबच्चरण तो कुज्जा गिहिधम्म, ण य चंझो होति धम्मस्स ।। तस्थ पढमं धूलगपाणातिवातं समणोपासओ पच्चक्खाति (सू०) इत्यादि, धूलगपाणा-बेदियादी, तेसि मज्जा- २८॥ यातिक्कमेण पातो धूलगपाणातिवातो, से य पाणतिवाते दुबिहे-संकप्पओ य आरंभओ य, संकप्पओ पच्चक्खाति, णो आर-2 भतो , अभिसंचिन्त णिवराही ण मारेतीत्यर्थः, सबराहिपि जहसत्तिसारंमतात्तिकात, सारमे वावती णियमा तेण ण पच्चक्खा दीप अनुक्रम [६३-१२] सूत्र (287)

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