Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 328
________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति: [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 प्रत मत्राक प्रत्या- 18 समुट्ठि, एवंविधं गुरुहि अणुण्णायं संदिसावेतु आवलियाए कप्पति भोत्तु, बीयभंगे तदेव विधिगहितं, भुत्तं पुण काकसी-13ापपेनेदार ख्यान दायालादिदोसदईएरिसं ण कप्पति तातिए अविहिगहितं वीसं २ उक्कोसगाणि गहियाणि, एवं से फायति, अहवा कारणे असं- चूर्णिः धरणादिसु गहिये, पच्छा मंडली रातिणिएण विधीए भुतं,एत्थवि आवलिया ण कप्पति,चउत्थेण कप्पतित्ति | भावपञ्चक्खार्ण गर्त, । ॥३२२॥ पञ्चक्खाणंति पदं समतं । पच्चक्रवाणेण ॥ १७०९ ॥ तेण पच्चक्खाणेण परचक्खातो पच्चक्खाषितती परतिया भवति.. तस्थ पच्चखातओ आयरितो पच्चक्खातिओ सीसो, तत्थ भंगा-जाणतो जाणयस्स पच्चक्खानि सुद्ध पच्चक्खाणं, जाणतो अजाणयस्स जाणावतुं पच्चक्खाति सुद्ध, अजाणता जाणयस्स पच्चक्खाति ण सुद्ध, पभुसंदिहादिसु विभासा, अयाणगा अयाण-17 | गस्स पच्चक्खाति असुद्धमेव । एत्थ गावीतो सीवीणियवीसमणत्थाणेसु ओलोएन्तो जाणति गोवालो सामी घरे,ताता महराक्ष| ज्जति, वितिय गोवालो ण याणति कह रक्खतु, ततिए सामी पहितणट्ठातोचि जाणति, चउत्थे सामीण जाणति जा गोवालोचि | पण जाणतित्ति उपसंहारो कायथ्यो,जाणतो जाणएणं पच्चक्खादिति सुद्ध१ जाणतो अजाणएणं पचक्खायेति, केणति कारणेण पञ्च-12 ४ खावंततो तो सुद्ध, अणिमित्तं ण सुज्झति २ अयाणतो जाणएणं पच्चक्खावेति सुद्धं ३ अयाणन्ते अयाणएणं ण सुद्धति ४॥ पच्चक्खायव्वयं पुण दुविह-दब्बंमि असणादी भावम्मि अण्णाणादिति । इयाणि परिसा, सा पुच्वं भाणिया जहा हेट्ठा। |सामातियणिज्जुत्तीए सेलघणकुडगचालणि ।। १३९ ॥ पुव्वभाणिया गाथा, इह पुण सेसो भण्णति, सा परिसा दुबिहा-उव-.. ठविया अणुबठविया य, उवडिताए कद्देयम्ब, इयराए पवि, उवाहिता दुविहा-संमोवहिता मिच्छोवाहिता य, मिच्छोवाडिया जहा ॥३२२॥ गोविंदा, संमोवडियाणं कहेयन्वं, णेतराणं, संमोवाडिया दुविहा- विणतोवहिता अविणतोवाहिता य, अविणतोवाहियाए ण SACSCA5 दीप अनुक्रम [६३-१२] % % % (328)

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