Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 295
________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति: [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 प्रत S मत्राक प्रत्यासूत्र इदार्णि चउत्थं, तत्थ समणोवासओ परदारगमणं पच्चक्खाति सदारसंतोसं वा उवसंपज्जति, स्वदार-स्वकलत्रं परदारं-परकलत्रं लातुर्य स्थूलख्यान- चसे य परदारे दुविहे-ओरालिए बेउब्बिए य,ओरालिए दुविन्तेरिको माणुसे य,विउम्विए देवाण वा माणुसाण वा,एतप्पसंगो पुण-संदचूर्णि सणेण पीती पीतीओ रईईओ वीसंभो । वीसंभातो पेम्मं पंचविहं वड्डए पेम्मं ॥१॥ ति । सदारणिरतेण य होया। ॥२८॥ | अविरयस्स दोसा-मातरं वा धूर्त वा भगिणिं वा गच्छेज्जा, तत्थ उदाहरणं-गिरिणगरे तिष्णि पावासियादो, तातो उज्जेतगतिया-MI तो वाणिगिणीओ चोरेहिं गीताओ, पारसकूले विक्कीताओ, तासि पुत्ता डहरका उज्झितका घरे, तहेव मित्ता जाता, वाणिज्जाए गया पारसकूलं, तातो य गणिताओ कयातो, सदेसकाओति तासिं भाडि देति, तेवि संपत्तीए सयाहि सिज्जाहिं गता, एक्को य | सावओ, तेहिं ताओ अणिच्छितो गच्छंति महिला अणिछि णातुं तुहिक्का अच्छति, सो भणति-कओ तुम्भ आणीयाओ?, ताए | कहियं, पाते परिहरिया, तेण सावएण तसिं कहियं-दुरात्मा! तुम्भे सयाहि मायाहि समं वोच्छा, मोइतातो, अद्धितीए अप्पाणं |मारेतुमारद्धा, धम्मो कहिओ, पम्वतिया य१॥ रितिय-धूयाए समं वसेज्जा, जहा गुश्विणीए भज्जाए वाणियतो दिसाजत्तं गतो, | धूया य जाया, सा य दिण्णा अन्नत्थ णगरे, सो पडिएन्ता तमि पगरे वासारते ठिओ, धृयाए समं घडिओ, यत्ते वासारते गतो ४ा सभवणं, धृयाकहण, दारियाए पिता आगतोनि दारिया आणिज्जतु जाच पितरं पेच्छतित्ति आणीया, तं दळू विकता णिवत्ता, दतीए अप्पा मारितो, इयरो पव्वतितो २॥ ततियं-एगा गोट्ठी, एत्थ एगस्स गोहिल्लयस्स माया उन्मामति, तो सा रति उष्मा-॥२८९।। 2मतिलस्स पास जाति, याताए गोडीए दिहा, तहिं रत्रिंण संम पाता, तहिं प्राप्ता अणियश्छिल्लयं पुत्तस्स परिवाडी जाया,पाविओ विस्तामणतेणं तस्स च्चयाणि पोवाणि, विभाए भज्जाए से पोत्ता दिडा, पुट्ठो कतो एते', कातु तो किरिया ?, विलक्खो जातो, दीप अनुक्रम [६३-९२] (295)

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