Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 302
________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति: [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 समय मागाप **SCASARE दीप अनुक्रम [६३-९२] प्रत्या- ताहे तुच्छाओ ओसहीतो परिहरति, जहा मुग्गसिंगातो पणगादिसिंगातो इच्चादि,तत्थ दोसे सिंगरखातो उदाहरणं, खेत्तरक्ख- ख्यान: तो मुग्गसिंगाओ खाति, राया णिग्गतो, खायंत पेच्छति, ततो पडिनियत्तो तहवि खायति, वलयाणं कूडं कर्य, रमा पो→ फला-11 चूर्णिः वियं कत्तियातो खत्तियातो होज्जा,णवरि फेणो,किंचिविणत्थि,अहवा केसिंचि केति अतियारा जहासंभवं जोज्जा, अभिग्गहबिससेण मोगमानं. ॥२९६॥18|वा होज्जा । इमं च अन-भोयणतो असणे अणंतकायं अल्गादि मंसादि,पाणमि रसगवसमज्जादि,खादिमे उदुम्बरवडापिप्परिपिलक्सु-15 द मादामु महुमादिसु सादिमे सत्तितो चर्य,जो पुण अभिग्गहबिसेसेणं उवभोगपरिभोगविहिपारमाणं करेति सो उम्बलणियावणविहि परिमाणं करेति,एवं दंतवणविहे य फलविहे य अभंगणतल्लविहे य,उबलणविहे य एसि मज्जणजलवत्थवि० विलेवणविही आभरण-12 विहे पुप्फबिहे धूवविहे,भोयणविहिपरिमाणं करेमाणो भिज्जाविहि परिहीखज्जगविही सूयविही चोप्पडविही माहुरगविही परिजेमणग-1 सूत्र |विही पाणियविही सागविही एवमादिविहि महुमांसविहीपरिमाणं करंति, अबसेसे पच्चक्खामित्ति । कम्मे अकम्मो ण तरवि | राजीविउं ताहे सावज्जाणि परिहरउ बहुसावज्जाणि वा, तत्थ पन्नरस कम्मा ण सगातरियव्या, इंगाले दाहिऊण विक्किणति, तत्प|2 | छक्कायाण वधो, तत्र वद्दति, अहवा लोहकारादि १ वणकम्मं जो वर्ण किणति, पच्छा रुक्खे छिदिऊण जीवति तेण मुल्लेणं, एवं प(ख)डिगादीवि पडिसिद्धा भवंति २ सागडिगुनेणं जीवति तत्थ एवं वहादी दोसा ३ भाडगकर्म एस णं मंडीबक्सरेण भाडएणं बहति परायं, अमाण वा भाडएणं सगडबलरवमादि ४ फोडितो उक्खणणं, हलेणवि भूमी फोडिज्जति ५ दंतवाणिज्जे पुलिदाणं मोल्लं देति पुत्वं चेव दन्ते देहित्ति,पच्छा ते मारेंति अचिरत्ति सो वाणियतो एहितित्ति, एवं मग्गे रण्णे संखाणं जीवति,एवं १५॥ चमरादीण,ण बद्दति,पुष्याणीतं किणंतिविलक्खावाणिज्जेवि एस चेव गमगो,तत्थ किर किमिगा हाँति,किमिया किरणोरुधिरस्स वा । (302)

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