Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 274
________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति: [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 प्रत सुत्राक [सू.] ||गाथा|| कायोत्सगोठावितव्वं , तत्थ कायोत्सर्ग ध्ययन चउरंगुलमुह ॥ १६४२ ॥ चउरंगुलं पदांतरं कातन्वं, उज्जुगहत्थे मुहपोती रब्बए रजोहरणं, दोहिवि पासेहिं दोवि दोषाः ॥२६८॥ हत्था लंबिज्जंति, घणं चोलप अवलंबित्ता दिडी जुगतरे, अण्णे भणति जथा पदे पेच्छति, सञ्चगतेहि मुफेहि जहा काउस्सग्गे 18 ठाति, वीसहूँ जं कंड्यणादिपडिकमणं ते ण करेति, वियत्तो सुढे वा दुहे वा सो चियत्तदेहो करेज्जा। दोसत्ति काउस्सग्गं च है करेंतो इमे दोसे परिहरेज्जा घोडग लता य०॥ १६४३ ।। सीसोकंपिय० ॥ १६४४ ॥ घोडओ जहा विसमेण पादेण ठाति आउंटावेत्ता १ लता जहा कंपति २ खंभे वा कुडे वा अवत्थंभेचा माले वा सीस अवत्थंभेता ठाति ३ र.वरी जहा सागारीयमग्गं अच्छाएति ४ । बहू जहा ओमत्था ठाति, हेटाहुतं मुहं करोतीत्यर्थ: ५ णियलियओ जथा पादे मेलेता ठाति, अतिविसाले वा करेति ६ लात्तरं से जण्णुगाणि पावेति चोलपहगं, उवरि वा णामि चोलं दिति ७५णत्ति थणए अच्छाएति चोलपट्टेणं जहा इत्थी सीतादीहिं2 अच्छति ८ असंतुत इति वा उड्डिाच बाहिरओद्धी पण्हिताओ मेलेचा अम्गपादे चाहिराहुत्ते करेति अम्भितरउड्डी अग्गपादे मेलेसाहू पण्हिताओ वित्थारेति ९ संजती पाउएर्ण ठाति १० रयहरणं जथा खलितं तधा धरेति १० वायसो जथा दिदि भमाडेति ११ छप्पतियाहिं खज्जामित्ति चौलपत्यं जहा कविट्ठ तहा सागारियठाणे करेउं ठाति, अण्णे भणंति-कविद्वं जथा गेण्हित्ता ठाति १२ ॥२६८॥ सास ओकपेति १३ मूओ जहा हुएति अच्चतं एसो एवं गुणुगुणेतो अणुप्पेहिति १४ छिज्जते अंगुलि चालेइ १५ आलावए वा गणेइ संठावेद वा १५ ममुहा बा चालेइ काउस्सम्गे ठिो छिज्जते वा भमुहाओ चालेइ १७ वाणरो जहा ओढे लंबापेइ एवं Aॐॐ दीप अनुक्रम [३७-६२] ... अत्र कायोत्सर्गस्य दोषा: वर्णयते (274)

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