Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
"आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति: [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2
प्रत
चाणः
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6
दीप अनुक्रम [६३-९२]
प्रत्या- बंदणगाणि विधीए कातुं पच्चखाणस्स उवट्ठाइज्जति, नं कतिविहं करिस वा पच्चक्खाणंति, भण्णति, अण्णे भणति--जो पुवि/पत्याख्याख्यान
४वणदिटुंतो कतो सो इहपि कातव्यो, जो परिमद्दणादाहिं ण मुज्झति सो उववासादीहिं अपत्थपरिवज्जणादीहिं सोधिज्जति, एवं ट्रानस्य भदाः
| इहपि जो अतियारो आलोयणपडिकमणकाउस्सग्गेहिं ण सुज्झति सो तवेण पच्चक्खाणण य विसोधिज्जति, एतेणामिसंबंधेणाग॥२७२॥
मानस्स चत्तारि उ णियोगद्दाराणि उवकमादी जहा हेवा वण्णतब्वाणि, तस्थाधिगारो गुणधारणाए, गुणा णाम मूलगुणे, उचरगुणा ला उवरि भपिणहितित्ति । णामणिप्फणे पच्चक्खाणंति, तत्थ इमाणि दाराणि
पच्चक्खाणं पच्चक्रवाओ०॥ १६५२ ।। पच्चक्खाणं पच्चक्खाओ पचखेयं परिसा कहणविधी फलंति एते छब्भेदा, 12 अहवा पच्चक्खाणंति आदिपदस्स इमे छम्भेदा-णामपञ्चक्खाणं ठवणापच्च० दलप०अदिच्छप०पडिसेहप०भावपच्चक्खाणन्ति, राणामठवणाओ गताओ, दब्बपच्चक्खाणं दव्वणिमित्तं दब्बे वा, दव्येण वा जथा रयहरणेणं, दब्बेहि वा दबस्स वा दब्वाण वा दव्वरूपो वा जं पच्चक्खाति एवमादि दवपच्चक्खाणं । तत्थ रायसुता उदाहरणं
एनस्स रण्णो धूता अण्णस्स रण्णो दिण्णा, सो य मतो, ताहे पितुणा आणीता, धम्मं करहित्ति भणिता पासंडीणं दाणं देति, | अण्णदा कत्तिको धम्ममासोत्ति मंसें ण खामित्ति पच्चक्खातं, पारणए दंडिएहिं अणेगाणि सत्तसहस्साणि मंसत्थाए उवणीताणि, ताहे भत्तं दिज्जति, सा मुंजति, णाणाविहाणि मंसाणि दिज्जति, तत्थ साधू अरेण वोलेन्ता णिमंतिता, भत्तं गहितं, मंस ण इच्छंति, सा भणति--कि तुम कत्तिओ ण पूरितो?, तेण भण्णंति जावज्जीवं अम्हं कत्तिओ, किंवा कई बा, ताहे वेहि धम्मोला | कहिओ मंसदोसा य, पच्छा संयुद्धा पम्वइया । एवं तए पुव्वं दन्यपच्चक्खाणं, पच्छा भावपच्चक्खाणं जातंति ।
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