Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (४०)
"आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2
प्रत
सूत्रांक
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+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा दा रेहविरहिता वा उज्जोतं करेति जा पडति सावि उक्का, जूवगोत्ति संझप्पभा चंदप्पभा य जेण जुगवं भवति तेण जूवगो, सादिव्याध्ययने
सा य संझप्पमा चंदप्पभावरिता फिडंति न नज्जति, सुक्कपक्खपाडिवगादिसु तिसु दिणेसु. संझच्छेदे य अणज्जमाणे कालवेली स्वाध्या॥२२१॥ न मुणंति अतो तिष्णि दिणे पादोसियं कालं न गेहति, तेसु तिसु दिणेसु पादासियं सुत्तपोरिसिं न करेंति । केसिंच०॥१४३शा
यिक जगस्स सुभासुभमत्थनिमित्तुप्पाओ अवितच्चो आदिच्चकिरणविकारजणिओ आदिच्चेसु वत्थामय आयंचो किण्हसामो वा सगडद्धिसंठितो डंडो अमोहत्ति, एस जूवगो, सेस कंठ्यं । किं चान्यत- चंदि० ॥१४३४ ॥ चंदसूरुवरागो गहणं भणति एयं वक्खमाणं, साभ्रे निरभ्रे वा व्यंतरकृतो महागर्जितध्वनिर्निर्धातः,तस्यैव विकारो गुंजमानो महावनिर्गुजित,सामण्णतो तेसु चतुसुवि अहोर सझाओ न कीरति, निग्घातगुंजितेसु बिसेसो-वितियदिणे जाव सा वेलत्ति णो अहोरत्तच्छेदेण छिज्जति, जथा अण्णेसु असल्झातिएसु, संझाचतुत्ति-अणुदिते सुरिए मज्मण्हे अस्थमणे अद्धरत्ते य, एतासु चतुसु सज्झायं न करेंति पुष्वत, पाडिवएत्ति चउण्हं महामहाणं चतुसु पाडिवएसु सज्झायं न करेंति, एवं अण्णपि जति मह जाणेज्जा जहिन्ति गामनगरादिसु तंपि तत्थ बज्जेज्जा,सो गिम्हगो पुण सव्वत्थ नियमा भवति, एत्थऽणागाढजोगा नियता निक्खिवंति, आगाढ न निक्खिवंति, पढ़ति, के व पुणो वेते महामहाः, उच्चंति-आसाढी०।१४३५ ।। आसाढी-आसाढपुष्णिमा इह, लाडाण पुण सावण्णपुष्णिमाए भवति, इंदमहो आसोयपुष्णिमाए भवति, कत्तियात्ति कत्तियपुष्णिमा चेव सुगेम्हओ चेनपुणिमा, एते अंतदिवसा गहिता ॥२२॥
आदितो पुण्णिमा, जत्थ जत्थ विसए जतो दिवसातो महामहा पवति ततो दिवसातो आरम्भ जाय अंतदिवसो ताव समाओ पून कातब्बो, एतेसिं चेव पुण्णिमाणं अर्णतरं जे बहुलपाडिबगा ते चतुरोवि बज्जेतवति । तत्थ को दोसो'-अण्णतरय० ॥१४३८॥
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दीप अनुक्रम [११-३६]
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