Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 368
________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रतस्कन्धः [१] . -- अध्ययनं [१३], ................ मूलं [९५] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [९५] ज्ञाताधर्मकथाङ्गम्. | १३दर्दुरज्ञातानन्दस्य रो ॥१८॥ गोत्पादमू गाथा स्वदेवत्वा दिसू.९५ अभिग्गहं अभिगिण्हति-कप्पड़ मे जावजीवं छटुंछट्टेणं अणि. अप्पाणं भावमाणस्स विहरित्तए, छट्ठस्सविष णं पारणगंसि कप्पड़ मे गंदाए पोक्खरणीए परिपेरंतेसु फासुएणं पहाणोदएणं उम्महणोलोलियाहि य वित्तिं कप्पेमाणस्स विहरित्तए, इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हति, जावज्जीवाए छटुंछट्टेणं जाव विहरति तेणं कालेणं २ अहंगो ! गुणसिलए समोसढे परिसा निग्गया, तए णं नंदाए पुक्खरिणीए बहुजणो पहाय०३ अन्नमन्त्रं जाव समणे ३ इहेव गुणसिलएक, तं गच्छामो णं देवाण. समणं भगवं.चंदामो जाव पज्जुवासामो एयं मे इह भवे परभवे पहियाए जाव अणुगामियत्ताए भविस्सइ, तए णं तस्स (रस्स बहुजणस्स अंतिए एयममु सोचा निसम्म० अपमेयारूवे अन्भत्थिए ५ समुप्पज्जित्था-एवं खलु संमणेतं गच्छामि णं वंदामि० एवं संपेहेति २णंदाओ पुक्खरणीओसणियं. उत्तरह जेणेव रायमग्गे तेणेव उवा०२ ताए उक्किट्ठाए ५ ददुरगईए वीतिवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेथ गमणाए, इमं च णं सेणिए राया भंभसारे पहाए कपकोउप जाव सबालंकारविभूसिए हस्थिखंघबरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं० सेयवरचामरा० हयगयरह० महया भडचडगर०चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे मम पायवंदते हवमागच्छति, तते णं से दूहुरे सेणियस्स रन्नो एगेणं आसकिसोरएणं वामपाएणं अकंते समणे अंतनिग्धातिए कते यावि होत्या, तते णं से दहुरे अस्थामे अबले अवीरिए अपुरिसकारपरकमे अधारणिज्जमितिकटु एगंतमवक्कमति करयलपरिग्गहियं नमोऽत्यु दीप अनुक्रम [१४६-१४७] ॥१८॥ SAREmiratomimona नन्द-मणिकारस्य दर्दुरक-जन्मस्य घटना ( नन्द मणिकार का दर्दुरकरूपे जन्म और वो दर्दुरक के व्रत-ग्रहण कि अभूतपूर्व घटना ) ~367~

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