Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 502
________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [२], ---------- वर्ग: [१], ---------- अध्ययनं [१-५], ---------- मूलं [१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गम्. धाश्रत स्कन्धः ॥२४॥ पुरिसादाणीए तेणेव उवा०२ पासं अरहं तिक्खुसो वंदति २एवं व-आलित्ते गं भंते ! लोए एवं जहा देवार्णदा जाव सयमेव पधाविउं, तते णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालिं सयमेव पुष्फलाए अज्जाए सिस्सिणियत्साए दलयति, तते णं सा पुष्फचूला अज्जा कार्लि कुमारि सयमेव पवावेति, जाव उवसंपज्जित्ताणं विहरति, तते णं सा काली अजा जाया ईरियासमिया जाव गुत्सर्वभयारिणी, तते णं सा काली अज्जा पुष्फलाअजाए अंतिए सामाइयमाझ्याति एक्कारस अंगाई अहिजइ बहूर्हि चउत्थ जाव विहरति, तते णं सा काली अजा अन्नया कयाति सरीरवाउसिया जाया पावि होत्या, अभिक्खणं २ हत्थे धोवइ पाए धोवइ सीसं धोबह मुहंधोवइ थर्णतराई धोवह कक्खंतराणि धोवति गुज्तराई धोवइ जत्थ २विय णं ठाणं वा सेज वा णिसीहियं वा चेतेइतं पुषामेव अभुक्खेत्ता ततो पच्छा आसयति वा सयइ वा, तते गं सा पुष्फबूला अज्जा कालिं अजं एवं प०-नो खलु कप्पति देवा! समणीणं णिग्गंधीणं सरीरबाउसियाण होत्तए तुमं च णं देवाणुप्पिया ! सरीरबाउसिया जाया अभिक्खणं २ हस्थे धोवसि जाव आसयाहि वा सयाहि वा तं तुम देवाणुप्पिए। एयरस ठाणस्स आलोएहि जाव पापछि पडिवजाहि,तते णं सा काली अज्जा पुष्फलाए अजाए एयमझु नो आढाति जाव तुसिणीया संचिट्ठप्ति, तते णं ताओ पुप्फचूलाओ अजाओ कालिं अजं अमिक्खणं २हीलेंति जिंदति सिंति गरिहंति अवमपणति अभिक्खणं २ एपम8 निवारेति, सते णं तीसे कालीए अज्जाए समणीहिं गिग्गं ceserveseencaes Sesesese ॥२४॥ ~501~

Loading...

Page Navigation
1 ... 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512