Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 418
________________ आगम (०६) श्रुतस्कन्धः [१] अध्ययनं [ १६ ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०६], अंग सूत्र [०६] ज्ञाताधर्म कथाङ्गम्. ॥२०७॥ “ ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र - ६ ( मूलं + वृत्ति:) Ja Education International दुखिया वा भविजासि, तते णं ममं जावजीवाए हिययडाहे भविस्सर, तं णं अहं तव पुत्ता ! अन्नया सयंवरं विरयामि, अज्जयाए णं तुमं दिवणं सयंवरा जेणं तुमं सयमेव रायं वा जुबरायं वा बरेहिसि सेणं, तब भत्तारे भविस्सइत्तिकट्टु ताहिं इट्ठाहिं जाव आसासेह २ पडिविसज्जेह । (सूत्रं ११६) तते णं से दुबए राया दूयं सहावेति २ एवं व०-गच्छह णं तुमं देवा० ! बारवई नगरिं तत्थणं तुमं कहं वसुदेवं समुदविजयपामोक्खे दस दसारे बलदेवपामुषखे पंच महावीरे उग्गसेणपामोक्त्रे सोलस रायसहस्से पज्जुण्णपामुक्खाओ अट्ठाओ कुमारकोडीओ संवपामोक्खाओ सद्वि दुदंतसाहसीओ वीरसेापामुक्खाओ इक्वीसं वीरपुरिससाहस्सीओ महसेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहसीओ अने य बहवे राईसरतलवरमाडंबियकोडुंबियइन्भसिहिसेणावहसत्थवाहपभिइओ कलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावन्तं अंजलि मत्थए कट्टु जएणं विजएणं वजावेहि२ एवं वयाहि एवं खलु देवाणforant कंपिल्लपुरे नरे बस्स रण्णो घूयाए चुलणीए देवीए अत्तपाए धट्टज्जुणकुमारस्स भगिणीए दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ तं णं तुम्भे देवा! दुवयं रार्य अणुगिरहेमाणा अकालपरिहीणं वेव कंपिल्लपुरे मयरे समोसरह, तए णं से दृए करयल जाब कट्टु दुवयस्स रण्णो एयम पडिसुर्णेति २ जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ २ कोबियपुरिसे सहावेह २ एवं व०-लिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! बाउri आसरहं जुत्तामेव उषट्टवेह जाय उबवेंति, सप णं से दूए पहले जाव अलंकार• सरीरे बाउट For Park Lise Only मूलं [११६-११९] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः ~ 417 ~ estnesত १६ अपरकङ्काज्ञाता. द्रौपद्याः स्वयंवराज्ञा सू. ११६ स्वयंवरे नृपागमः सू. ११७ ॥२०७॥

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