Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०६)
“ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१८], ----------------- मूलं [१३९-१४०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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रगुत्तिएहिं हयमहिय जाव भीते तत्थे सुसुमं दारियं गहाय एगं महं अगामियं दीहमद्धं अडविं अणुपविटे, तते णं धण्णे सत्यवाहे सुंसुमं दारियं चिलाएणं अडवीमुहिं अवहीरमाणिं पासित्ताणं पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछट्टे सन्नद्धबद्धचिलायस्स पदभग्गविहिं अभिगच्छति,अणुगज्जेमाणे हकारेमाणे पुक्कारेमाणे अभिनजेमाणे अमितासेमाणे पिट्टओ अणुगच्छति, तते णं से चिलाए तं धपणं सत्यवाह पंचहि पुत्तेहिं अप्पछ8 सन्नद्धबद्धं समणुगच्छमाणे पासति २ अत्यामे ४ जाहे णो संचाएति भुसुमं दारयं णिवाहित्तए ताहे संते तंते परिसंते नीलुप्पलं असि परामुसति २ सुंसुमाए दारियाए उत्तमंगं छिदति २तं गहाय तं अगामियं अडविं अणुपविटे, तते णं चिलाए तीसे अगामियाए अडवीए तण्हाते अभिभूते समाणे पम्छुट्टदिसाभाए सीहगुहं चोरपल्लिं असंपत्ते अंतरा चेव कालगए। एवामेव समणाउसो! जाव पवतिए समाणे इमस्स ओरालियसरीरस्सवंतासवस्स जाव विद्धंसणधम्मस्स वपणहेउं जाव आहारं आहारेति से णं इहलोए चेव बहणं समणाणंहीलणिजे जाव अणुपरियहिस्सति जहा व से चिलाएतकरे। तते णं से धणे सत्यवाहे पंचहि पुत्तेहिं अप्पछडे चिलायं परिधाडेमाणे २ तण्हाए छुहाए य संते तंते परितंते नो संचाइए चिलातं चोरसेणावर्ति साहथि गिण्हित्तए, से णं तओ पडिनियत्ता २ जेणेव सा सुंसुमा दारिया चिलाएणं जीवियाओ ववरोविल्लिया तेणंतेणेव उवागच्छतिर सुसुमं दारियं चिला. एणं जीवियाओ ववरोवियं पासइ २ परसुनियंतेव चंपगपायवे, तते णं से धणे सत्यवाहे अप्पछडे
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