Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 421
________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [११६-११९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: देवं जरासिंधुसुयं करयल जाव समोसरह । अट्टमं दूयं कोडिण्णं नयरं तत्थ णं तुम रूपि भेसगसुयं करयल तहेव जाव समोसरह । नवमं यं विराडनयरं तत्थ णं तुमं कियगं भाउसयसमग्गं करयल जाय समोसरह । दसमं दूर्य अवसेसेसुथ गामागरनगरेसु अणेगाई रायसहस्साई जाव समोसरह, तएणं से दूए. तहेव निग्गच्छइ जेणेव गामागर जाव समोसरह । तएणंताई अणेगाई रायसहस्साई तस्स यस्स अंतिए एयमढे सोचा निसम्म हहतंदूयं सकारति२ सम्माणतिरपडिविसर्जिति, तए णं ते वासुदेवपामुक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तेयंर ण्हाया सन्नद्धहत्थिखंधवरगया हयगयरहरूमहया भडचडगररहपहकर०सएहि २ नगरेहितो अभिनिग्गच्छति २ जेणेव पंचालेजणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए।(सूत्रं ११७)तए णं से दुवए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ एवं व०-गच्छह णं तुमं देवाणु० ! कंपिल्लपुरे नयरे बहिया गंगाए महानदीए अदूरसामंते एगं महं सयंवरमंडवं करेह अणेगखंभसयसन्निविट्ठ लीलद्वियसालभंजिआगं जाव पञ्चप्पिणति, तए णं से दुवए राया को९वियपुरिसे सद्दावेइ २ एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! वासुदेवपामुक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आवासे करेह तेवि करेत्ता पञ्चप्पिणंति, तए णं दुवए चासुदेवपामुक्खाणं बहूर्ण रायसहस्साणं आगमं जाणेत्ता पत्तेयं २ हत्थिखंधजावपरिबुडे अग्धं च पजं च गहाय सपिडिए कंपिल्लपुराओ निग्गच्छइ २ जेणेव ते वासुदेवपामुक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छह २ताई वासुदेवपामुक्खाई अग्घेण य पजेण य सकारेति सम्माणेइ २ तेसि वासुदेव ~420~

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