Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०६)
“ज्ञाताधर्मकथा" - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१७], ----------------- मूलं [१३५] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
एकटहर
गणं प्राप्तः । दवा धर्मपरिभ्रष्टाः अधर्मप्राप्ता इह जीवाः ॥ ५॥ प्राप्नुवन्ति कर्मनरपतिवशगताः संसारवाशाली अश्वप्रमर्दकैI रिख नैरयिकादिभिर्दुःखानि ॥ ६ ॥] इति सप्तदर्श ज्ञातं विवरणतः समाप्तम् ॥ १७ ॥
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अथ अष्टादशज्ञाताध्ययनम् ॥ अथाष्टादशमारभ्यते, अस्स चाय पूर्वेण सहायमभिसम्बन्धः-पूर्वमिनिन्द्रियवशवर्तिनामितरेषां चानघुतरावुक्ताविह तु लोभवशवर्तिनामितरेषां च तावेवोच्यते इत्येवंसम्बद्धमिदम्
जतिणं भंते! समणेणं सत्तरसमस्स अयमढे पपणत्ते अट्ठारसमस्स के अढे पन्नसे?,एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं श्रायगिहे णाम भयरे होत्था, वण्णओ,तस्थ कधण्णे सत्यवाहे भहा भारिया,तस्मण धण्णस्स सत्यवाहस्स पुत्ता भदाए अत्तया पंच सत्यवाहदारगा होत्था,तं०-धणे धणपाले धणदेवेधणगोवेधणरक्खिए, तस्स ण धणस्स सत्यवाहस्स धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजातीया सुंसुमाणामंदारिया होत्था सूमालपाणिपाया, सस्स गंधण्णस्स सत्यवाहस्स चिलाए नामंदासचेडे होस्था अहीणपंचिंदियसरीरे मंसोबचिए बालकीलावणकुसले यावि होत्या, तते णं से दासचेडे सुंसुमाए दारियाए बालग्गाहे जाए यावि होत्था, सुंसुमं दारियं कडीए गिण्हति २ बरहिं दारएहि य दारियाहि य भिएहि यरिंभियाहिप कुमारएदि
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अत्र अध्ययनं-१७ परिसमाप्तम् अथ अध्ययन- १८ "सुसुमा" आरभ्यते
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