Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 476
________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१८], ----------------- मूलं [१३६-१३८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ज्ञाताधर्म-18 कधानम्. १८सुंसु ॥२३६॥ माज्ञाता. चिलाते राधिपत्यं सू. १३७ एहि य जूहकरेहि य परब्भवमाणे २रायगिहाओ नगरीओ णिग्गच्छति २ जेणेव सीहगुफा चोरपल्ली तेणेव उवा०२ विजयं चोरसेणावती उवसंपज्जित्ताणं विहरति, तते णं से चिलाए दासचेडे विजयस्स चोरसेणावइस्स अग्गे असिलट्ठग्गाहे जाए यावि होत्था, जाहेविय णं से विजए चोरसेणावती गामघायं वा जाव पंधकोहि वा काउं वच्चति ताहेविय णं से चिलाए दासचेडे सुबटुंपि हु कूवियबलं हयविमहिय जाव पडिसेहिति, पुणरवि लवे कयकज्जे अणहसमग्गे सीहगुहं चोरपल्लिं हवमागच्छति, तते णं से विजए चोरसेणावती चिलायं तकरं वहइओ चोरविजाओ य चोरमंते य चोरमायाओ चोरनिगडीओ य सिक्खावेइ, तते णं से विजए चोरसेणावई अन्नया कपाई कालधम्मुणा संजुसे यावि होत्था, तते ण ताई पंचचोरसयार्ति विजयस्स चोरसेणावइस्स महया २ इहीसकारसमुदएणं णीहरण करेंति २ बरई लोइयार्ति मयकिचाई करेइ २ जाब विगयसोया जाया याचि होस्था, तते णं ताई पंच चोरसपाति अन्नमन्नं सदातिर एवं व०-एवं खल अम्हं देवा! विजए चोरसेणावई कालधम्मुणा संजुत्ते अयं च णं चिलाए तफरे विजएणं चोरसेणावइणा बहुइओ चोरविजाओ य जाब सिक्खाबिए तं सेयं खल्लु अम्हं देवाणुप्पिया! चिलायं तकरं सीहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावहत्ताए अभिर्सिचित्तएत्तिका अन्नमन्नस्स एयमहूँ पडिसुणेति २चिलायं तीए सीहगुहाए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचंति, तते णं से चिलाए चोरसेणावती जाए अहम्मिए जाव विहरति, तए णं से चिलाए चोरसेणावती चोरणापगे जाव 11२३६॥ ~ 475~

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