Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 436
________________ आगम (०६) श्रुतस्कन्धः [१] अध्ययनं [ १६ ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०६], अंग सूत्र [०६] ज्ञाताधर्मकथाङ्गम्. ॥२१६ ॥ “ ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र - ६ ( मूलं + वृत्ति:) Education International aff पथि सकारेति सम्माणेति जाव पडिविसज्जेति तते णं सा कोंती देवी कण्हेणं वासुदेवेणं पडिविसज्जिया समाणी जामेव दिसिं पाउ० तामेव दिसिं पडि० । तते णं से कण्हे वासुदेवे कोचियपुरिसे सहा० २ एवं वनाच्छ्ह णं तुग्भे देवा० ! बारवर्ति एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेति जाव पञ्चप्पिति, पंडुस्स जहा, तते णं से कण्हे वासुदेवे अन्नया अंतो अंतेउरगए ओरोहे जाव विहरति, इमं चणं कच्छुल्लए जाव समोवइए जाव णिसीइत्ता कन्हं वासुदेवं कुसलोदंतं पुच्छर, तते णं से कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लं एवं ब० तुमं णं देवा० ! बहणि गामा जाव अणुपविससि, तं अस्थि याई ते कहिवि दोषतीए देवीए सुती वा जाव उचलद्धा , तते णं से कच्छुल्ले कण्डं वासुदेवं एवं व० एवं खलु देवा ! अन्नया घायतीसंडे दीवे पुरत्थिमद्धं दाहिणभरहवासं अवरकंकारायहाणिं गए, तत्थ णं मए पउमनाभस्स रन्नो भवणंसि दोवती देवी जारिसिया दिट्टपुवा यावि होत्था, तते पणं कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लं एवं व०-तुभं चेव णं देवाणु ! एवं पुचकम्मं, तते णं से कच्छुल्लनारए कण्हेणं वासुदेवेणं एवं बुत्ते समाणे उप्पयणि विज्जं आवाहेति २ जामेव दिसिं पाउदभूए तामेव दिसिं पडिगए, तते णं से कण्हे वासुदेवे दूयं सद्दावेइ २ एवं व० गच्छहणं तुमं देवा० ! हत्थिणाउरं पंडुस्स रनो एवम निवेदेहि-एवं खलु देषाणु० ! धायइसंडे दीवे पुरच्छिम अवरकंकाए रायहाणीए पमणाभभवणंसि दोवती देवीए पती उबलद्धा, तं गच्छंतु पंच पंडवा चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिबुडा पुरस्थि For Parts Only मूलं [१२०-१२४] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः ~ 435~ १६ अमर कङ्काज्ञा० द्रौपदीगवेषणत्यानयनं सू. १२४ ॥२१६ ॥

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