Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०६)
“ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [१२५-१३१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
१६ अमर
ज्ञाताधर्म-10 कधानम्
॥२२॥
| ता. द्रौप
दीदीक्षा पाण्डवमो
क्षश्च सू. ४१२९-१३०
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नेमि जाव गमित्तए, अहासुहं देवा०1, तते णं ते जुहिडिल्लपामोक्खा पंच अणगारा धेरेहिं अम्भणुन्नाया समाणा थेरे भगवंते बंदति णमंसति २राणं अंतियाओ पडिणिक्खमंति मासंमासेणं अणिक्खितेणं तवोकम्मेणं गामाणुगाम दुईज्जमाणा जाव जेणेव हत्थकप्पे नयरे तेणेव उवा हत्थकप्पस्स बहिया सहसंबवणे उजाणे जाव विहरंति, तते णं ते जुहिडिल्लवजा चत्तारि अणगारा मासखमणपारणए पढमाए पोरसीए सज्झायं करेंति बीयाए एवं जहा गोयमसामी णवरं जुहिडिल्लं आपुच्छंति जाव अडमाणा बहुजणसई णिसामेंति, एवं खलु देवा! अरहा अरिहनेमी उर्जितसेलसिहरे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं पंचहिं छत्तीसेहिं अणगारसएहिं सद्धिं कालगए जाव पहीणे, तते णं ते जुहिडिल्लवजा चसारि अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयम8 सोचा हत्थकप्पाओ पडिणिक्खमंति २ जेणेय सहसंबवणे उज्जाणे जेणेव जुहिडिल्ले अणगारे तेणेव उवा०२ भत्तपाणं पचुवेक्खंति २ गमणागमणस्स पडिकमंति २ एसणमणेसणं आलोएंति २ भत्तपाणं पडिदंसेंति २एवं व०-एवं खलु देवाणुप्पिया! जाव कालगए तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! इमं पुत्वगहियं भत्तपाणं परिद्ववेत्ता सेत्तुझं पञ्चयं सणियं सणियं दुरूहित्तए संलेहणाए झूसणा सियाणं कालं अणवखमाणाणं विह रित्तएत्तिकट्ठ अण्णमणस्स एयमढे पडिसुणेति २तं पुबगहियं भत्तपाणं एगंते परिट्ठवेंति २ जेणेच सेत्तुले पचए तेणेव उवागचछ। २त्ता सेत्तुञ्ज पवयं दुरुहंति २ जाव कालं अणवखमाणा विहरति । तते णं ते अहिडिल्लपामोक्खा
॥२२॥
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