Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 459
________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१७], ----------------- मूलं [१३२-१३४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: कप्पे जाव झियापति, तते गं ते यहचे कुच्छिधारा य कपणधारा य गम्भिलगा य संजत्ताणावावाणियगा य जेणेव से णिज्जामए तेणेव उवा०२ एवं व०-किन्नं तुम देवा०1 ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह ?, तते णं से णिज्जामए ते वहवे कुच्छिधारा य४एवं वक-एवं खलु देवाणहमतीते जाव अवहिएत्तिक? ततो ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि, तते ण ते कण्णधारा तस्स णिज्जामयस्स अंतिए एयमह सोचा णिसम्म भीया ५ ण्हाया कयवलिकम्मा करयल थहणं इंदाण य खंधाण य जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा २चिट्ठति, तते णं से णिज्जामए ततो मुहुर्ततरस्स लद्धमतीते ३ अमूढदिसाभाए जाए यावि होत्या, तते णं से णिज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य एवं व०-एवं खलु अहं देवालद्धमतीए जाव अमूढदिसाभाए जाए, अम्हे णं देवा! कालियदीवंतेणं संबूढा, एस णं कालियदीवे आलोकति, तते णं ते कुच्छिधारा य ४ तस्स णिजागमस्स अंतिए सोचा हट्टतुट्टा पयक्खिणाणुकूलेणं वारण जेणेव कालीयदीवे तेणेव उवागच्छंति २ पोयवहणं लंति २ एगडियाहिं कालियदीवं उत्तरंति, तस्थ णं बहवे हिरपणागरे य सुवपणागरे य रयणागरे य पइरागरे य बहवे तत्थ आसे पासंति, किं ते?, हरिरेणुसोणिमुत्तगा आईणवेढो, तते णं ते आसा ते वाणियए पासंति तेसिं गं, अग्यायंति २भीया तत्था उधिग्गा उधिग्गमणा ततो अणेगाई जोइणाति उम्भमंति, ते गं तत्थ पउरगोयरा पउरतणपाणिया निन्भया निरुबिग्गा सुहंसुहेणं विहरंति, तए णं संजुत्तानावावाणियगा अण्णमण्णं एवं ब०-किण्हं अम्हे Rodreese688@@usesesese ~ 458~

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