Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०६)
“ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१७], ----------------- मूलं [१३५] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
सट्टा ॥९॥ फासिदियदुईतत्तणस्स अह एत्तिओ हवह दोसो। जं खणइ मत्थयं कुंजरस्स लोहंकुसो तिक्खो ॥१०॥ कलरिभियमहुरतंतीतलतालवंसकउहाभिरामेसु । सद्देसु जे न गिद्धा वसहमरणं न ते मरए ॥११॥ थणजहणवयणकरचरणनयणगवियविलासियगतीसु । रूवेसु जे न रत्ता बसहमरणं न ते मरए ॥ १२॥ अगरुवरपवरधूवणउउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु जे न गिद्धा वसहमरणं न ते मरए ॥१३॥ तित्तकडुयं कसायं व महुरं बहुखजपेजलेज्झेसु । आसाये जे न गिद्धा वसहमरणं न ते मरए ॥ १४ ॥ उउभयमाणसुहेसु य सविभवहिययमणणिबुइकरेसु । फासेसु जे न गिद्धा वसहमरणं न ते मरए ॥ १५ ॥ सहेसु य भयपावएसु सोयविसयं उवगए । तुट्टेण व रुडेण व समणेण सया ण होय ॥ १६ ॥ रूवेसु य भद्दगपावएस चक्खुविसयं उवगएसु । तुडेण व रुद्वेण व समणेण सया ण होय ॥ १७॥ गंधेसु य भयपावरसु घाणबिसयं उवगएसु । तुट्टेण व रुडेण व समणेण सया ण होयत्वं
॥ १८॥ रसेसु य भयपावएसु जिन्भविसयं उवगएसु । तुटेण व रुद्वेण व समणेण सया ण होयचं •॥१९॥ फासेसु य भइयपावएमु कायविसयं उवगएसु । तुट्टेण व रुढेण व समणेण सया ण होयचं
॥२०॥ एवं खस्तु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तरसमस्स णायजायणस्स अयMRI मढे पन्नत्तेत्तिवेमि ( सूत्रं १३५) सत्तरसमं नायज्झयणं समत्तं ॥ १७ ॥
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