Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 455
________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ---------- अध्ययनं [१६], -------------- मूलं [१२५-१३१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: देवी अन्नया कयाई पंहुसेणं रायाणं आपुच्छति, सते णं से पंडुसेणे राया कोटुंबियपुरिसे सहावेति २ एवं वयासी-खिप्पामेव भो! देवाणु ! निक्षमणाभिसेयं जाव उवहवेह पुरिससहस्सपाहणीजो सिवियाओ उवट्ठवेह जाव पचोरुहंति जेणेव थेरा तेणेष. आलित्ते णं जाप समणा जाया चोइस्स पुवाई अहिज्जति २ बाहणि वासाणि छट्ठट्ठमदसमखुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावमाणा विहरति (सूत्रं १२८) तते णं सा दोवती देवी सीयातो पचोरूहति जाव पञ्चतिया सुचयाए अज्याए सिस्सिणीयताए दलयति, इक्कारस अंगाई अहिजइ बहूणि वासाणि छट्ठमदसमदुवालसेहिं जाव विहरति(सूत्रं१२९) तते ण थेरा भगवंतो अन्नया कयाई पंहुमहरातो णयरीतो सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमंति २ बहिया जणवयविहारं विहरंति, तेणं कालेणं २ अरिहा अरिहनेमी जेणेव सुरहाजणवए तेणेव उवा०२ सुरद्वाजणवयंसि संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तते णं बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमातिक्खइ०-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरिहा अरिहनेमी सुरद्वाजणवए जाब वि०, तते णं से जुहिडिल्लपामोक्खा पंच अणगारा बहुजणस्स अंतिए एपमढे सोचा अन्नमन्नं सद्दाति २ एवं व०-एवं खल देवाणु ! अरहा अरिहनेमी पुवाणु० जाव विहरह, तं सेयं खलु अम्हंधेरा आपुच्छिता अरहं अरिहुनेमि चंदणाए गमित्तए, अन्नमन्नस्स एयमह पडिसुणेति २ जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव जवा०२ थेरे भगवते वदंति णमसंति २त्ता एवं व०-इच्छामो णं तुम्भेहिं अभणुनाया समाणा अरहं अरिह ~454~

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