Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०६)
“ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [१२०-१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
णं पउमनाभस्स रण्णो सुनाभे नाम पुत्ते जुवरायायावि होत्या, तते गं से पउमणाभे राया अंतो अंतेउरंसि ओरोहसंपरिखुढे सिंहासणवरगए विहरति, तए णं से कच्छुल्लणारए जेणेच अमरकंका रायहाणी जेणेच पउमनाहस्स भवणे तेणेव उवागच्छति २ पउमनाभस्स रन्नो भवणंसि झत्ति बेगेणं समोवइए, तते णं से पउमनाभे राया कच्छुल्लं नारयं एजमाणं पासति २ आसगातो अम्भुटेति २ अग्घेणं जाव आसणेणं उवणिमंतेति, तए णं से कच्छुल्लनारए उदयपरिफोसियाए दम्भोवरिपत्थुयाते भिसियाए निसीयइ जाव कुसलोदंतं आपुच्छइ, तते णं से पउमनाभे राया णियगओरोहे जायविम्हए कच्छुल्लणारयं एवं २०-तुभं देवाणुप्पिया! बहणि गामाणि जाव गेहाति अणुपविससि, तं अस्थि याई ते कहिंचि देवाणुप्पिया! एरिसए ओरोहे दिपुवे जारिसए णं मम ओरोहे ?, ततेणं से कच्छुल्लनारए पउमनाभेणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे ईसिं विहसियं करेइर एवं व-सरिसे णं तुमं पउमणामा! तस्स अगडद(रस्स, के णं देवाणुप्पिया! से अगडदहुरे ?, एवं जहा मल्लिणाए एवं खलु देवा! जंबूद्दीवे २ भारहे वासे हस्थिणाउरे दुपयस्स रणो धूया चूलणीए देवीए अत्तया पंडस्स सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवती देवी स्वेण य जाव उकिट्ठसरीरा दोवईए ण देवीए छिन्नस्सवि पायंगुट्ठयस्स अयं तव ओरोहे सतिमपि कलं ण अग्धतित्तिकठ, पउमणाभं आपुच्छति २ जाव पडिगए २, तते णं से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयस्स अंतिए एयमढे सोचा णिसम्म दोवतीए
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