Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 397
________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [१०६-१०८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१०६-१०८] दीप अनुक्रम [१५८ तए णं तेसि धम्मघोसाणं घेराणं अंतेवासी धम्मरुई नाम अणगारे ओराले जाव तेउलेस्से मासं मासेणं खममाणे विहरति, तते गं से धम्मई अणगारे मासखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झार्य करेइ २ बीयाए पोरसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव उग्गाहेतिर तहेव धम्मघोसं धेरं आपुच्छह जाव चंपाए नयरीए उच्चनीयमज्झिमकुलाई जाव अडमाणे जेणेच नागसिरीए माहणीए गिहे तेणेव अणुपविठे,ततेणंसा नागसिरी माहणी धम्मरुई एज्जमाणं पासतिरत्ता तस्स सालइयस्स तित्तकडुयस्स बहु०णेहा०नि सिरण?याए हहतहा उट्टेति २ जेणेव भत्तघरे तेणेव उवा०२तं सालतियं तित्तकडुयं च बहुनेहं धम्मरुइस्स अणगारस्स पडिग्गहंसि सबमेव निसिरह, तते णं से धम्मरुई अणगारे अहापज्जत्तमितिकटु णागसिरीए माहणीए गिहातो पडिनिक्खमति २पाए नगरीए मझमझेणं पडिनिक्खमति २ जेणेव सुभूमिभागे उजाणे तेणेव उवागच्छति २धम्मघोसस्स अदूरसामंते अन्नपाणं पडिदंसेइ २ अन्नपाणं करयलसि पडिदंसेति, तते णं ते धम्मघोसा घेरा तस्स सालइतस्स नेहावगाढस्स गंधेणं अभिभूया समाणा ततो सालइयातो नेहावगाढाओ एग बिंदुर्ग गहाय करयलंसि आसादेति तित्तगं खारं कडयं अखजं अभोज्ज विसभ्यं जाणित्ता धम्मरुई अणगारं एवं वदासी-जति णं तुम देवाणु एयं सालइयं जाव नेहावगाढं आहारेसि तो गं तुम अकाले चेव जीवितातो ववरोविज्जसि, तं मा णं तुम देवाणु ! इमं सालतियं जाव आहारेसि, मा णं तुम अकाले चेव जीविताओ ववरोविजसि, तं गच्छ णं तुम देवाणु ! इर्म -१६०] द्रौपदी-कथा, द्रौपद्या: पूर्वभवस्य वृतान्तं-नागश्री कथा, धर्मरुचि अनगारस्य कथा ~396~

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