Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०६)
“ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [१०९-११३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
साताधर्म
कथानम्.
६अपरकरज्ञा
द्रमककृतस्त्यागः सू. ११२
॥२०॥
जाव झियाहिसि?, तते णं सा सूमालिया दारिया तं दासचेडीयं एवं व०-एवं खलु देवा सागरए दारए मम मुहपसुत्तं जाणित्ता मम पासाओ उद्देति २ वासघरदुवारं अवगुण्डति जाव पडिगए, तते णं ततो अहं मुहुत्तंतरस्स जाव विहाडियं पासामि, गए णं से सागरएत्तिक? ओहयमण जाव झियायामि, तते णं सा दासचेडी सूमालियाए दारि० एयमटुं सोचा जेणेव सागरदत्ते तेणेव उवागच्छद २त्ता सागरदत्तस्स एपमडं निवेएइ, तते णं से सागरदत्ते दासचेडीए अंतिए एपमहूं सोचा निसम्म आसुरुत्ते जेणेव जिणदत्तसत्थवाहगिहे तेणेव उवा०२ जिणद एवं ब-किणं देवाणुप्पिया! एवं जुत्तं वा पत्तं वा कुलाणुरूवं वा कुलसरिसंवा जन्नं सागरदारए समालियं दारियं अदिट्टदोसं पइवयं विप्पजहाय इहमागओ बहूहिं खिज्जणियाहि य रुंदणियाहि य उवालभति, तए णं जिणदत्ते सागरदतस्स एयमहूं सोचा जेणेव सागरए दारए तेणेव उवा०२ सागरयं दारयं एवं व०-दुवर्ण पुत्ता! तुमे कयं सागरदत्तस्स गिहाओ इहं हवमागते, तेणं तं गच्छह णं तुम पुत्सा। एवमपि गते सागरदत्तस्स गिहे. तते णं से सागरए जिणदत्तं एवं व०-अवि याति अहंताओ! गिरिपडणं वा तरूपडणं वा मरुप्पचायं वा जलप्पवेसं वा विसभक्खणं वा वेहाणसं वा सत्थोवाइणं वा गिद्धापिटुं वा पवजं वा विदेसगमणं वा अग्भुवगच्छिज्जामि नो खलु अहं सागरदत्तस्स गिहं गच्छिज्जा, तते णं से सागरदत्ते सत्यवाहे कुडूंतरिए सागरस्स एयमह निसामेतिर लजिए विलीए विड़े जिणदत्तस्स गिहातो पडिनिक्खमह
S२०या
~ 407~

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