Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 386
________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१४], ----------------- मूलं [१०२-१०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ज्ञाताधर्मकथानम्. प्रत सूत्रांक [१०२-१०४] ॥१९॥ णं अहंताओ देवलोयाओ आउक्खएणं इहेच तेयलिपुरे तेयलिस्स अमचरस भक्षर भास्यिाएवारमत्तार पचापाते,तं सेयं खलु मम पुषविटाईमहत्वयाई सयमेव उपसंपत्तिाणं विहरितए, एवं संपेहेतिरसयमेव महवयाई आकहेति २ जेणेव पमयषणे उजाणे तेणेव उवा०२ असोगवरपायचस्स अहे पुढविसिलापट्टयंसि सुहनिसन्नस्स अणुर्चितेमाणस्स पुवाहीयाति सामाश्यमातियाई चोदसपुवाई सयमेच अभिसमन्नामबाई, तते णं तस्स पलिपुत्सस्स अपगारस्स सुमेणं परिणामेणं जाक तयावाणिजाणं कम्मरणं स्वओक्समे कम्मरयविकरणकर अपुष्करगं पविठ्ठरस केषलवरणाणदंसने समुम्पन्ने (सूकं१०३) तए णं तेवलिपुरे नपरे अहासन्निहिएहिं वाणमलारेहिं देहि देवीहि व देवदुंदुभीओ समाहयाओ दसवने कुसुमे निवाइए, क्वेि गीयगंधदमिनाए कए याषि होत्था, तक्ते णं से कणगझल सया इमीसे कहाष लट्ठे एवं ब०-एक स्खलु तेतर्लि मए अवाले मुंडे भविता पञ्चलिकेतंकममितेय लिपुतं अणणारं वदामि नमसामि २ एयमई विणए मुजो खानेमिः; एवं संपेलेति २ बहाक चाललंगिणीए- सेणाम जेणेच पायो उज्जाणे जेणेक तेतलिपुले अणगारे तेनेक उचागच्छति २ तेतालिपुरतं अश्वगावं वेदक नमसक्ति २ एक महं च विणएणं भुजोरखामेइ बचासने जाच पज्जुषालाइ, बो से लेकतिपुत्ते अग्गगारे कपा जायस्सरसो तीसे य महा धर्म परिकहेइ, तते से कागजाक सपा लिपुकास केवलिस्क अंतिए धम्म सोचा णिसम्म पंचाशुवइषं सत्ससिक्खावइयं सावधम्म पत्रिका २ समणोचासए जाने १४तेतलिज्ञाता०तेतलेजोतिस्मृतेःसर्व पूर्वज्ञानं 18सू. १०३ | सकेवलो मोक्षः सू. १०४ पन कुसुम निवाइए, वेि दीप अनुक्रम [१५४-१५६] D ॥१९॥ पोट्टीलदेवै: तेतलिपुत्रं प्रतिबोध:, तेतलिपुत्रस्य मोक्ष: ~385~

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