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पाना मंटारो अने खावास करीने तेमा
था प्राचीन
रहेढं अपभ्रंश त
गूजराती स.
साहित्य
अनु० नं० 3292 गुन
1
एम. ए.) पंचम गूजराती साहित्य परिषद् वास्ते तैयार करेला
निबंध.
चीमनलाल डाह्याभाइ दलाल एम. ए.
'कवाड सर
पटणना
लाइब्रेरी मिसेलेनी माटे प्रसिद्ध करनार वेहेराम मेहेरवानजी दादाचानजी बी. ए.
मांडवीरोड-वडोदरा.
वडोदरा.
पुरारोड उपर धी विद्याविलास प्रेसमां" शा. मोहनलाल विठ्ठलदासे प्रसिद्ध माटे छाप्यु अने तेमणे उपले ठेकाणेथी प्रसिद्ध कयु. ता. २८-५-१५.
नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका
उपयोग कर सकें.
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* पाटणना भंडारो अने खास करीने तेमां रहेलुं अपभ्रंश तथा प्राचीन
गूजराती साहित्य.
( चीमनलाल डाह्याभाई दलाल, एम. ए. ) पाटणना भंडारो कर्नल टोडना वखतथी आ देशना तथा विदेशी प्राचीन शोधखोळ रसिक विद्वदव मां प्रसिद्ध थयेला . कर्नल टोडे राजस्थानना इतिहाप्तमां तेमांना पुस्तकानो उपयोग कर्यो हतो; सर अलेक्षान्डर किन्लोक फोर्बसे रातमाळा वास्ते गुजरातना प्राचीन इतिहासनां साधनो अहीथी मेळव्यां हता. तदनंतर मुंबइ सरकार तरफयी जुना हस्तलिखित पुस्तकोनी शोधखोळ वास्ते नीमायेला अमलदारो पैकी डो. ब्युलर, किल. होर्न, भांडारकर वगेरेए आ भंडारोनो केटलोक भाग तपास्यो हतो. श्रीमंत गायकवाड सरकार तरफथी पण स्वर्गस्थ प्रो. मणीलाल पासे एक टीप करावेली हती. परंतु आ पाटणना भंडारोनुं यथार्थ रहस्य-तेमां जळवाइ रहेला अप्राप्य संस्कृत तथा प्राकृत ग्रंथो, अंधारामा रहेलुं अपभ्रंश साहित्य अने दुर्लक्ष अपायेलं प्राचीन गुजराती साहित्य-समग्र रीते अत्यार सुध। कोइना जाणव.मां न हतु. आनां मुख्य कारणो ए छे के बधाए भंडारी संपूर्ण रीते कोइने पण बताववामां आव्यां नहतां; अने में बताववामां आव्यां हतां तेनुं पूर्णविवेचक दृष्टिए अवलोकन थयुं न हतुं.
१९१४ ना सप्टेम्बर मासमां मने श्रीमंत सरकारना हुकमथी पाटणना भंडारमा केवां पुस्तको, इतिहास, भाषाशास्त्र तथा साहित्यनी दृष्टिए अगत्यनां छे ते अवलोकन कर वार्नु काम सोपवामां आव्युं हतुं. १२ अठवाडीयानी अंदर समस्त भंडारो बारीक'इथी तपास्या. तेमां रहला ६५८ ताडपत्रो तथा आशरे १२००० कागळनां पुस्तकोमाथी केटलांक पुस्तको, संस्कृत अने प्राकृतने बाजु मूकता, आपणी भाषाना तथा साहित्यना झत. हासने वास्ते घणां अगत्यनां छे.
* पंचम गूजराती साहित्य परिषद माटे तैयार करेलो निबंध,
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( २ )
पाना गूजर राज्यनी स्थापना जैनोथो थयेली हे; अने वनराजना समयथी पा टण जैनोना मध्यबिंदु तरीके प्रसिद्ध थयेल छे. जैन धर्म तथा तेना आचार्योंने मळता राज्याश्रवथी १० थी १३ मा शतक सुधीमां जैन आचार्योंए गुजरातना पाटनगरमां तथा अन्य स्थळोए रहीने घणा अगत्यना ग्रन्थो रचाने गुजरात साहित्य उत्पन्न करेलुं छे. जैन आचार्योए रचेलुं साहित्य बाद करीए तो गूजरातनुं साहित्य अत्यंत क्षुद्र देखाशे. स. - हित्यनी प्रवृत्ति पुस्तकोना संग्रहबगर अशक्य छे अने तेथी जैनोए पोताना धार्मिंक साहित्य उपरांत बौद्ध तथा ब्राह्मण ग्रंथो पाटण, खंभात वगेरेना स्थळाना भंडारोमां संग्रहेला हता; अने आ भंडारोना लीवेज बौद्धो तथा ब्राह्मगोना प्राचीन ग्रंथों से कोइ पण ठेकाणेवी मळे नहीं तेवा अहींयां उपलब्ध थयेला छे
कुमारपाले २१ भंडारो तथा वस्तुवाले १८ क्रेोडना खर्चे मोटा त्रण भंडारो स्थापला हता. परंतु अत्यंत दिलगीरीनी वात छे के आ महत्वना भंडारोनुं एक पण पुस्तक पाटणना भंडारोमा जोवामां आवतुं नथी, ते भंडारा जो अत्यारे विद्यमान होत तो तेमांथी आपणने एकला गूजरातनी नहीं पण समग्र हिंदुस्ताननी ऐतिहासिक, साहित्यविषयक, दाशनिक, धार्मिक वगेरे प्रवृत्तिओनुं वधारे ज्ञान धात. परंतु गत वस्तुनो शोच नहीं करता अत्यारे जे पुस्तको भंडारोमां विद्यमान छे तेनी अगत्यता तपासीए. अहींया अपभ्रंश अने जूना गुजरातीना पुस्तकोनुं अवलोकन वधारे वास्तविक तथा बंध बेसतुं होवाथी संस्कृ अने प्राकृत ग्रंथोनुं तो मात्र दिग्दर्शन करीश.
संस्कृत न्यायशास्त्रमां बौद्धोना केटलांक प्राचीन न्यायना पुस्तको जे हिंदुस्तानमांथी नष्ट थला परंतु तेना टीबेटन अनुवादमां जळवाइ रहेला छे ते अहिंआ मळेला छे. ब्राह्मणो तथा जैनो तर्कभाषा रचेली छे परंतु ते बने करतां अतिशय प्राचीन बौद्धोनी तर्कभाषा छे. अशरे १० मां शतक्रमां थयेला राजजगद्दलविहारीय महायति मोक्षाकर गुप्ते ( १ ) प्रत्यक्ष ( २ ) स्वार्थानुमान अने ( ३ ) पदार्थानुमान एम त्रण परिच्छेदमां आ तकभाषा रचेली छ. न्यायबिन्दुना कर्ताए हेतुबिन्दु नामनो मंय हेतुवाद उपर रचेलो छे इ. स. ७८० ना अरसामा तेना उपर विनीतदेवे टीका बनावेली ले नालन्दना विश्वविद्यालयना गुरु शांतरक्षितना तत्वसंग्रहमा विविध दर्शनोनी समीक्षा करेली छे. आना उपर नालन्दा विश्वविद्यालयना मंत्रशास्त्रना गुरु कमलशीले ( इ. स. ७५० ) तत्व संग्रह पुंजिका नामनी टीका करेली छे. आ उपरांत न्यायसार उपर, भासर्वज्ञनी स्वोपज्ञ न्यायभूषण
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टीका, जयराशिनो तत्वोपप्लव, शब्दनी नित्यता उपर भट्टवादीन्द्रनुं महाविद्याविडंबन तेना उपर भुवन मुंदरनी वृत्ति अने ते उपर टिप्पन, परम पाशुपताचार्य वामध्वजनो न्यायकुसु. मांजलि निबन्धन; शिडिल वोम्भिदेव भूपतिनो न्यायकुसुमां नलि उपर कुसुमोद्म नामनी टीका वगेरे ग्रन्थो पण जाणवा योग्य छे.
ऐतिहासिक पुस्तकोमा बिलणना विक्रमादित्य चरित्रना नायक विक्रमादित्य ( आहवमल्ल ) ने अवलंबीने अभिलषितार्थ चिंतामणिना कर्म अने चरित्र नायकना पौत्र दक्षिणना पौलुक्य वंशना राजा भूलोकमल्ल सामेश्वरे (इ. स. ११२७-११३८) विक्रमांकाभ्युदय नामर्नु रसमय चंपू काव्य रचलु छे, आ काव्य त्रुटक ताडपत्रमा मळेलु होवाथी विक्रमादित्यना यौवराज्य वर्णन लगी प्राप्त थएलुं छे.
व तुपालना समकालीन आचार्य बालचंद्रे वसंतविलास नाम, वस्तुपाल उपर म. हाकाव्य रखें छे. वस्तुपालना गुरु विजयसेनना शिष्य अने धर्माभ्युदय नामना संघाधिपति चरित्र काव्यना कर्ता उदयप्रभ आचार्ये सुकृतकोर्तिकल्लोलिनी नामनी १८० श्लोकनी वस्तुपाल उपर प्रशस्ति रचेली छे. हम्मीरमदमर्दन नाटकना कर्ता जयसिंहरिए पण ११३ श्लोकनी एक प्रशस्ति बनावेली छे. कुमारपालना संबंधमां जयसिंहसूरिना कु. मारपाल चरित्र महाकाव्य उपरांत चारित्रसुंदरनु कुमारपाल चरित्र काव्य, सोमतिलकनुं कुमारपाल चरित्र, संवत् १४७५ मां उतरायेलो कुपारपाल प्रबंध ए मुख्य पुस्तको छे.
___ काव्यमंडनादि ८ ग्रंथोना कर्ता मंडपदुर्गना पादशाहना मत्रि मंडर्नु महेश्वर काबिए रचेलु काव्य मनोहर नामर्नु ४ सर्गात्मक चरित्र छे. रंगविनयनी गूर्जर देश भूपःवलीमां औरंगमेव सुधीना गूर्नर राजाओना वशनुं आशरे २०० श्लोकोमा वर्णन छे. जयसोमनी मंत्रिकर्मचंद्रवंशावलीमां मारवाडना राजसिंहना मंत्रि अने सारवाद अकबर बाद
शाहना सामानिकाध्यक्ष कर्मचंद्रना तथा तेना पूर्व नोना सुकृतोनुं वर्णन छ. वल्लभगाणना विजयदेव माहात्म्यमां हीरसौभ ग्यनी पेठे विजयसेनसूरिना शिष्य विजयदेवसूरीश्वरनुं चरित्र छे. हेमविजयनी कीर्तिकल्लोलिनीमां विजयसेनसू र, यशोवर्णन करेलुं छे.
अलंकार शास्त्रमा बालरामायण कर्पूरमंजरी वगेरेना कर्ता यायावरीय राजशेखरनो काव्यमीमांसा एक घणो अगत्यनो लेख छे. आ ग्रंथ अढार अधिकरणमा हतो. प्रथम अधिकएणना अढार अध्याय छे. प्रथम अधिकरणन फक्त उपलब्ध थयेलो छे अने ते पण जैन
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भंडारोमाथी. हिंदुस्तानना जुदा जुदा भागोना लोकोनी भाषा विषे बोलतां लाट तथा सौराष्ट्र देशोनी भाषा वास्ते कहे छे के
पठंति लटसं लाटा: प्राकृतं संस्कृतद्विषः । जिया ललितल्लापरब्धसौंदर्यमुद्रया ॥ सुराष्ट्रप्रभवा ये च पठत्यर्पितसौष्ठवं ।
अपभ्रंश वदंशानि ते संस्कृतवचास्यपि ॥ ६ ॥ पार्श्वनाथ चरित्रादि विंशति प्रबंधना कर्ता आचार्य विनयचंद्रनो कविशिक्ष नो ताडपत्र उपर एक अपूर्ण प्रतीक छे. चोथा परिच्छेदमांची प्रतीक त्रूट छे. कवि कहे छे के बप्पहाट्ट गुरुनी वाणामां कविशिक्षा कहीश. ( काव्यशिक्षा प्रवक्ष्यामि बप्पहाट्टगुरोणिरा ) कप्पभट्ट काव्य शैक्ष कहवाता हता; अने तेमनी रचेली कविशिक्षानो कर्ताए पोताना ग्रंथमां उपयोग करेलो हशे. प्रतुत शिक्षामां ते वखतना देशोनी माहीती सारी आपेली छे.
चाशी देशोनां न म नीचे प्रमाणे गणावेला छेः चतुरशीतिर्दशा: गौडकन्यकुब्न कै लुकलिंगअंगअंगंगकुरंगभाचाल्यकामाक्षआष्ट्रपुडउडशिमालवलोहिताश्चिमकाछवालभसौ - राष्ट्रकंकणलाटश्रीमाल बुदमेदप टावरेंद्रयान गंगारिअंतर्वेदिमागबमध्यकुरुकाहलकामरूपकांचाअवंताप पांतककिरातीवार औशारवाकाणउत्तरापथगुर्जरसिंधुकेक णनेपालटक्कनुष्कत इकारव वर मर्जरकाश्मीराहिम लयलोहपुरुषार,प्टदक्षिणापथसिंघल डकौशलपांडुअंध्रविंध्यकोटद्र वि. डश्रीपर्वतविदर्भधार उरला नीतापीमहाराष्ट्रआभीरनर्मदातटदीपदेशाश्चेति '
हीरुयाणी इत्यादिषटं। पत्तनादि द्वादशकं । मातरादिश्चतुर्विंशतिः । वडू इत्यादि षष्ट्रिंशत् भालिज्माद चत्वारिंशत् । हर्षपुरादि द्विपञ्चाशत् । श्रीनारप्रवृति पटपंचाशत् । जंबूसरप्रवृति षष्ठिः । पडवाणप्रतिः षट्सप्ततिः । दर्भावर्ताप्रति चतुरशीतिः । पेटलापद्रप्रवृति चतुरुत्तरशतं षदिरालुकाप्रभृति दशोत्तरं शो । भोगपुरप्रभृति षडशोत्तर शतं । धवलक्करप्रभृति पंचशतानि माहडवासाद्यमर्धाष्टमशतं । कोकणप्रभति चतुदाधिकानि चतुर्दशशतानि । वंद्रावतीप्रभृति अष्टादशशतानि । द्वाविंशति शतानि महीतरं । नवसहस्र णि सुराष्ट्रा: । एकविंशतिः सहस्त्राणि लाटदेशः । सप्ततिसहस्राण गर्नरो देशः । पारतश्च अइडलक्षाणि ब्राह्मणपाटकं । नवलक्षाणि डाहाला अष्टादशलक्षाण द्विनव-याधिका'न मालवो देशः । षदिशल्लक्षाणि क. न्यकुब्नः । अनंतमुत्तरापथं दक्षिणापथं चेति । षट एटले छ गामोनो समुदाय इत्यादि.
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- विनयचंद्र संवत् १२८५ ना अरसामा विद्यमान हता. मलधारिनरचंद्रना शिष्य नन्द्रय वस्तुपालना आग्रहयी अलंकारमहादधि नामनो स्वोपज्ञ टीकावाळो ग्रंथ रचेलो छे हेमाचार्यना शिष्य रामचंद्रे २०० श्लोकनो नाट्यदर्पण नामनो चार विवेकमां नाट्यशास्त्रनो ग्रंथ रचेलो छे पाचचंद्र सूनु आजडनी सरस्वतकिंठाभरण उअर पदकप्रकाश नामनी अगत्यनी टीका छे. पण दुर्भाग्ये ताडपत्रनो प्रतीक अपूर्ण तथा त्रूटक छे. अपभ्रंश संबंधी टीक कारे सूत्रोना उदाहरण सहित सारं स्पष्टीकरण करेलु दे. काव्यप्रकाश उपर काव्यप्र. काश संकेत उर्फ काव्यादर्श नामनी भारद्वाज गोत्रना भट्टदेवकसूनु सामेश्वरनी टीक ना ५-६-७-८-९ (अपूर्ण) अध्यायो ताडपत्रउपर छे. प्रतीहारेदुराजना उद्भटालंकारसारसंग्रह, तोमर वंशना काश्मीरी सहदेवनी वामनीयालंकारवृत्ति, अमरचंद्रनी काव्यकल्पलता उपर विवेक नामनी टोका, भावदेवनो अलंकारसार, मलवाना महामात्य व.ग्भटन पुत्र देवेश्वरनी कविकलालता नामनी कविशिक्षा वगेरे नाणवा लायक ग्रंथो छे.
काव्योमा धर्मपाल वंश विभूषण अने विक्रमशील संभ। पालवंशना युवरान हारावर्षनी आझाथी अभिनन्द कविए रचेला अभिनन्द काव्य ( रामचरित ) ना ताडपत्र तथा कागळ उपर प्रतीको छे. छेल्ला ४ सगों ( ३७-४० ) कायस्थ भीमनी कृति छे. वालभ कायस्थ सोठ्ठलनी उदयसुंदरी नामनी चंपू कथा गनरातना संस्कृत साहित्यमां एक अगत्यनो ग्रंथ छे. बाणना नेगी कृति रचवानी उत्कट आकांक्षावाळा आ कविए हई चरिबनी माफक आठ उच्छ्व समां आ काव्य रचेलुं छे. प्रथम उच्च समां कविए पोतानी जातिनी उत्यत्तिनुं तथा स्ववंशनुं वर्णन करेलु छे. कनकायन नामना प्रधाने अधिकार रोपित स्वजातिओथी व्यभिच र देखाडवाथी वलभीना राजा शिलादित्यने प्रधान बदलवानी चिंता थइ. र त्रे लक्ष्मीए स्वप्नामां दर्शन आप्युं, अने शिलादित्यने पोताना भाइ कलादित्यने अमात्य पदे नियुक्त करवाने आदेश कों. तेणीए का के तारो काष्ठ भ्राता कलादित्य शिवना कायस्थ नामना गणनो अवतार छे. ज्यारे देवताओए समुद्रमथन कर्यु त्यारे प्रथन तो हुँ तेमना दृष्टिपथ आवी, परंतु मंदरना परिभ्रमी उत्पन्न थथेला आवर्तना सन्निवेशथी एकदम तरतन अति गंभीर पाणीमा डुबी गइ. इंद्रादि सर्व देवो ते वावते विषण्ण थइने बृहस्पतिने पुरावा लाग्या. बृहस्पतिए की) के श्रीकण्ठनी पासे कायस्थ नामनो अति प्रसिद्ध गण रहे छे. अष्टमूर्ति भगवान्नी जलमयी मूर्तिने अधिष्ठित समुद्रना आसन्न सहच. रत्वपणाथी कायने विषे रहेलोते कायस्थ एम कहेवाय छे. जलधिनो प्रेमपात्र होवाथी तेनाथी समुद्रमाथी लक्ष्मी लावी शकाशे.
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( ६ )
प्रायशो विदित एव भवतामतिप्रसिद्धः कायस्थो नाम गणः श्रीकण्ठसन्निवावास्ते स चाष्टमूर्तेर्भगवतो जलमयीं मूर्तिमधिष्ठितस्यासन्नसहचरत्वेन काये स्थितत्वात् कायस्थ इति जलैरनाहतशक्तेः प्रणयास्पदमम्बुधेरासीत् ।
आ कायस्थ गणनी मददथी देवोए मने समुद्रमांथी कहाडी. आ कायस्थ गण शिवनी आज्ञाथी पृथ्वी उपर अवतरेलो छे अने ते तमारो भाइ कलादित्य छे अने ते पोतानो वंश स्थापनापर्यंत अहीं रहेशे. शिलादित्ये आथी पोताना भाइने अमात्य पढ़े स्वाप्यो. आ कलादित्यथी वलभीथी नीकळेलो वालभ नामनो कायस्थोनो वंश उत्पन्न थयो. ( बलभी विनिर्गत इति वालभो नाम कायस्थानां वंशः )
वंशस्य सच्चरितसारवतः किमङ्ग संगीयते सुललिताकुटिलस्य तस्य । येनान्तर धृतभरेण धराधिपत्ये राज्ञां जयत्यहत विस्तरमातपत्रम् ॥ किं बहुना । तृतीयमक्षयोन्मेषं कायस्थ इति लोचनं । राजवर्गों वहन्नेष भवेदत्र महेश्वरः ॥
आ प्रमाणे कविए कायस्थोनी स्तुति करवामां बाकी राखी नथी. आ विस्तृ वंशमां लाटदेशाधिष्ठित उमेशवंशावतीर्णं चंडपतिनो पुत्र साल्लापेथ थयो; तेनो अनेोपमायुत कुलविभूषण सूर नामनो एक पुत्र हतो. तेनो पंपावतीथी प्रथम सोठ्ठल नामनो पुत्र थयो. तेना पिता बाल्यावस्थामां तने मूकीने मरण पाम्याथी लाटदेशना राजा गोगिराजना मित्र पोताना मातुल गंगाधरथी उरायो हतो. बाल्यावस्थाथीज तेनामां कवित्वनां अंकुरो स्फूर्या हतां चौलुकयकुलाभरणनायक कीर्तिराजनो पुत्र सिंहर ज तेनो सहाध्यायी हतो अने चंद्र नामनो विद्वान् तेनो गुरु हतो. लाटदेशना सिक्कुर हारीय द्विसप्तति ७२ गामनी ) तथा वाहिरिहार सप्तशतक : ७०० गामनी ) कुल क्रमागत ध्रुववृत्ति ( ध्रुववृत्ति ) नो ते स्वामी हतो. यैौवनावस्थामां लाटदेशना राजा वत्सराजना मित्र कोंकणना कुम्कुणि राजनी राजधानी स्थानकमां जइने रह्यो हतो. अने त्यांतेने प्रश्लोक मुदित मुम्मुणिराजे सभामां कविप्रदीप एवा नामथा बोलाव्यो हतो. स्थितराज, नागार्जुनं अने मुम्मुणिराज ए त्रणे कोंकणना राजाओए सन्मान करेलु हतुं. अशोकवती कथाना कर्ता महाकवि श्वेतावराचार्य चंदनाचार्य, ख काव्यथी
x गोगिराज कीर्तिराज तथा वत्सराज माटे शके ८३६ नुं चौलुक्य त्रिलोचन पालनुं
दानपत्र जुओ.
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परंतुष्ट नागार्जुनराने आपेला खाचार्य एवा अपर नाम गळा विनयसिंह नामना शीघ्रकवि तथा रत् मिंजरी चंपू थान कर्ता भाष यना वत्ता दिगंबराचार्य इंद्रना मना आचार्य तेना मित्रो हता. आ उदयसुंदरी कथाना गुण पति रीति वगेरेनुं वर्णन थिमां कविए करेलुं छे. शापाभिभूत बाणभट्ट आ कथा यांचीने अभिनन्दी अने तेथी तेना श्रापनी मुक्ति थई. भास, कालिदास, गुण ढ्य, कुमारदास, बाण, श्रीहर्ष, वाकपतिरान, भवभूति मुंज, भोज वगेरे कविओने तेमनी कविता वास्ते आ काव्यमा वखाण्या छे.
वार्गाश्वरं हन्त भनेभिनन्दमर्थश्वरं वाकातिरानभाहे । रसेश्वरं स्तौमि च कालिदासं वाणं तु सर्वेश्वरमानतास्मि ।
बाण कविनो आदर्श कवि हतो. आ कथाना नायक शालिवाहनना वंशनो प्रतिप्ठाननो मलयवाहन राना छे; अने उदयसुंदरीनी प्राप्तिने अनुलक्षीने आ कथा रचली छे. अनंतपालना सं. १०१६ ना ताम्रपत्रमा नागार्जुन तथा तेना कनिष्ठ भ्राता भुम्माणि राजनुं नाम आवत होवाथी कविनो समय विकमना आगीयारमा शतकनो पूर्वार्ध निश्चित थाय छे. सुभद्रा परिणयने अवलंबीने मंत्री वस्तुपाले नरनारायणानंद नामनुं महाकाव्य बनावेलुं छे. वस्तुपले एक आदिनाथनु स्तोत्र बनावलं छे तेवं आ काव्यना प्रांते .गावंलु छे. परंतु ते अत्यारे उपलब्ध नथी. महान् गैनमंत्रीनी आ एकन कृतिनी प्रति उपलब्ध छे अने ते पण ब्रह्मण धर्मना विषय उपर. मलधारि विजयसिंह शिष्य हेमचंद्र, नाभेय नेमिद्विसंधान नामर्नु आदिनाथ अने नेमिनाथ संबंधी व्याश्रय काव्य नोंध लेवा लायक छ. उदयप्रभy धर्माम्युदयनामनु संघाधिपति चरित्र वस्तुपाले गिरनारना संघ काढयो ते उपर रचेलुछे प्रथम अने छेल्ला सर्गमा वस्तुपाल तथा तेना गुरु अने बीना जैनाचार्यों संबंधी ऐतिहासिक वृत्तांत छ वाकीनो भाग आदिनाथ अने नमिनाथ वगेरे तीर्थकराना चरित्रोनो छे तिलक मंजरीने कविता टुकमा पल्लीवाल कुळना लघु धनपाले करेली छे. विद्यासिंह अने वैजल देवीना पुत्र मन्मथसिंहना सूक्त रत्ना ..र नामना महाकाव्यना धर्माख्य प्रथम द्वारमा धर्मना सूक्तो संग्रहेला छे. कातन्त्र दौर्गसिंही वृत्तिना प्रयोगोना उदाहरणका भीष्मने अवलंबीने मल महाकविर प्रतिज्ञागांगेय न.मनुं महाकाव्य रचेलुं छे. मंडप दुर्गना पादशाह आमिलशाहना मंत्रिमंडने क व्यमंडन (पांडवो संबंधी ) चंपूमंडन. (पदविषयक) कादंबरी मंडन ( कादंबरीस र ), शंगारमंडन, अलंकार मंडन, संगीतमंडन, उपसर्ग मंडन अने चंद्रविजय प्रबंध ( चंद्र उपर ) एम आठ ग्रंथो रचेला छे. मंत्रिमंडन- जीवन कवि महेश्वरे कान्य मनोहरमा लखेलुं छे.
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(८)
दामोदर गुप्त, शुभलिमत काव्यमालामां जेटलुं छपायेलुं छे तेनां करतां १०० श्लोक धारे पाटण ना भंडारना ताडपत्रमाथी मळे छे. प्रतं कनां छेवटनां पानां त्रुटित होवाथी ग्रंथ पूर्ण करवामां आशर ! (० श्लोक खटे छे. छेवट ना खंड उपरथी जणाय छे के ग्रंप- १२९० श्लकनुं प्रमाण छ जैन नाटकाना संबंधमां वसंतमा गुजरातीन संस्कृत नाटक साहित्य नामना लेखमां कहेवायेलुं छे. अहींआ अन्य देशना नाटको बतावीशु कादंबरीकथासारना कर्ता अभिनंदना पिता वृत्तिकार जयतना आगमडंबर नामना नाटकमां षड्दर्शननी समीक्षा कहेली छे. साहित्य दर्पणमां त्रिपुरदाह अने समुद्रमथन नाटकेनां नामो आपेलां छे. आ वे नाटकोना कतना आ उपांत चार नाटको ताडपत्र उपर लखेला मळेला छे. कर्पूर चरित्रमाण (द्यतकर कर्पूरना पर क्रमो ) ऋक्मणीपरिणय इहामग हास्यचूडामणि प्रहसन, त्रिपुरदाह डिम, किरातार्जुनीय व्य योग अने समुद्रमथन समवकार ए छ नाटको कालिंजरना परमर्दिदेव (इ. स. ११६५-१२०३ ना अमत्य कवि ) कत्लराजनी कृतिओ छे. मुरा र अनर्घ राघव गुजरातमा घणु प्रिय थरलं मालूम पडे छे; कारण के तेना उपर मलधारी देवप्रभाचार्यनो अनघराघव रहस्यादर्श ( ग्रंथ ७५०० ) तेमना शिष्य नरचंद्राचार्यनुं मुरारि टिप्पन ( ग्रंथ २५०० ) उने तागच्छना जयचंद्रसूरिना शिप्य जिनहर्षनी अनर्घ राघववृत्ति एम त्रण ट का छे.
व्याकरणमां हमन्यास, सूत्रवृत्तिकार मलयगिरिनु शब्दानुशासन, संवत १०८० मां बुद्धिसागर आचार्ये रचेलु बुद्धिसागर व्याकरण, कातन्त्र दोगसिंही उपर गोलणना वृत्ति तथा मोक्षेश्वरनी कृवृत्त, त्रिले चन्द सनो कातन्त्र पंजिकोद्योत, बोपदेवना कविरहस्य उपर रविधर्मनी टीका, संवत् १६८७ मां रचेलो स्वोपज्ञ क्रियाकल्पलता टीका समेत साधु सुंदरनो धातुरत्नाकर ए नोंधवा लायक ग्रंथो छे.
... कौटिल्य अर्थ शास्त्रता तथा तेनः उपर योधमनी निति निर्णय नामनी टीकाना थोडांक पत्रो ताडपत्रना छे.
कथाओमा वस्तुपालनी प्रार्थनार्थी रचेलो नरचंद्रनो कथारत्न सागर १५ तरंगोमां छे..
शिवमंदिर निर्माण उपर वैरोचनीय लक्षण समुच्चय, भंडननो रूपमंडन, अने केशवनो वास्तु तिलक ए नवीन ग्रंथो छे. त्रिभुवनमल्ल सामेश्वर देवना अभिलषितार्थ चिंतामाण उर्फे मानसोल्लासमां जूदी जूदी कलाओतुं शत अध्यायमा विवेचन करलुं छे. पाउणना भंडारनी प्रत जो के अपूर्ण छे तोपण मद्रास ओरीएंटल लाइब्रटीनी मत करता
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( ९ )
आगळ जाय छे. मलधारि राजशेखरना शिष्य सुधाकरशे संवत् १३६० मां संगतिसारो र नामना ग्रंथ रचेलो छे. आ उपरांत प्रश्न चूडामणिने आजीने रचायेला ग्रंथो--चंद्रोन्मीलन भट्टलक्ष्मणनो चूडामणिस र, पार्श्वचंद्रनों हस्तकांड-मां प्रश्नाना अक्षरोनी गणतरीथी नष्ट लाभ आयु, मृत्यु, वगेरे भूत, भविष्य अने वर्तमान जाणवानी कला आपेली छे उपाध्याय मेघविजयना वर्ष प्रबोध कृषिकारो तथा व्यापारिओ ने जणवा लायक घणी बाबतोनो समावेश करेलो छे माणिकय सूरिए शकुन सारोदारमां शकुन शास्त्र संक्षेपमां कहेलं छे.
प्राकृत. भद्रेश्वरनी कथावली २४००० ग्रंथ प्रमाणनो एक महान् प्राकृत गद्य ग्रंथ छे; तेमां हमाचार्यना त्रिपछि शलाका पुरुष चरित्रनी माफक १३ महापुरुषोनां चरित्रो आपेल्लां छे. आ उपरांत महावीर स्वामियां ते हरिभद्र सूरि सुर्धाना आचार्योंनो इतिहास पण छे. ज्यारे त्रिषष्ठमां फक्त वज्र स्वाभि सुधीना आचार्येनुं वर्णन छे. आमांथी आम प्राचीन इतिहासनी घणी सामग्री मळे तेम छे. संवत् १२९१ मां लखायेला एक ताडपत्रना पुस्तकमा सिद्धसेन, पादलिप्त, मल्लवादि अने बप्पभट्टिनां प्रकृत पद्यमां चरित्रो छे. बप्पभट्टेचरित्रमां गौडवहोना कर्ता इरायने बप्पभट्टिए जैन बनाव्यो ते वात वर्णवेली छे; प्राकृत चरित्रो प्राचीन होवाथी संस्कृत करतां वबारे विश्वनीय है. कुमारपाल प्रतिबोध उर्फे हेमकुमार चरित्र संवत् १२४१ मां सिद्धराजे कवींद्र चने ता तरीके व्याहरायेा प्रसिद्ध पोरवाड कवि श्रीपाला पुत्र सिद्धपालनी वसतिमां विजयसिंह सूरिना शिष्य सोमप्रभाचार्ये ( सुमतिनाथचरित्रना कर्ता ) ८ प्रस्तावमां ( नं. ८००० ) पाटणमां रचेलं . अनेका किव कौमुदीना कर्ता अने हेमाचार्यना शिष् महेन्द्र सूरिने वांची संभळवलं होवाथी तथा कुमारपालना मृत्यु पछी फक्त ११ वर्षे रचेलुं होवाथा विश्वसनीयतानी छाप तेना उपर छे. प्रथम ४०० गाथामां पाटण तथा तेना राजाओ, कुमारपालनी वंशपरंपरा तथा हेमाचार्यनी गुरु परंपरा तथा जन्म तथा दीक्षा वृत्तांत वगेरे तथा कुमारपालनी सत्य धर्म जाणवानी इच्छा तृप्त थती न होवाथी अमात्य बाहड देवे सत्यधर्म हेमाचार्य पासेथी जाणवानुं कह्युं ते बाबत छे. बाकी तो कुमारपालने प्रतिबोध आपवाने करेली कथाओज छे.
दाक्षिण्यांक इंद्रसूरिनी शाके ८०० ना अरसामां रचायेली कुवलयमाळा एक मनोहर प्राकृत गद्य काव्य छे. आदिमां जुदी जुदी जातनी कथाओना लक्षणो आपेला छे. कुवलयमाला वास्ते हेमाचार्यना गुरु देवचंद्र शांतिनाथ चरित्रमां कहे छे के:
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( १० )
दाक्खिन्नइंदसूरिं नमामि वरवन्नभासिया सगुणा ।
कुवलयमालव कहा कुवलयमाला कहा जस्स ॥ आना संक्षेप रत्नप्रभाचार्ये संस्कृतमां करेलो छे.
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शालिवाहनना वखतमां थयेला पादलिप्ताचार्यनी तरङ्गलोला कथानों आशरे १६०० गाथानो संक्षेप मळी आवे छे. कथानी वस्तु श्रेणिकना पुत्र कोणकना समयमां कौशाम्बीमां मूकेली छे. आ कथानी रचना वगेरेनो वृत्तांत प्रबंधकोश तथा प्रभावक चरित्रमाथी मळे छे.
सीस कहवि न फुटं यमस्स पालित्तयं हरंतस्स ।
जस्स मुहनिझ्झराओ तरङ्गलोला नई वूढा || प्रभावक चरित्र. प्रसन्नगम्भीरपथा रथाङ्गमिथुनाश्रया । पुण्या पुनाति गङ्गेव गां तरङ्गवती कथा ॥
प्रतिष्ठानना शालिवाहनने नायक कल्पीने भूषणभट्टसूनुए लीलावती नामनी १८०० ग्रंथ प्रमाण १३३२ गाथाबद्ध शृंगारिक पद्यमयी कथा महाराष्ट्री मां रचेली छे. कथानी वस्तु कविनी स्त्री प्रियतमाए कहेली छे अने कविए ते कवितामां गूंथी छे: भणियं च पिययमाए रइयं मरहट्टदेसिभासाए. आ कथाना श्रवण करनार विरहथी दुःखित थता नथी. हेमाचार्यना काव्यानुशासनमा प्राकृत पद्य कथा तरीके लीलावतीनुं उदाहरण आपेलं. छे ते आ हशे .
दहत्थ कहा एसा अणुदियहु जे पढति निसुणन्ति ।
ताय पियविरहदुरकं न होइ कइयावि तणुअंगि ॥ १३३० ॥
आ उपरांत बुद्धिसागरना शिष्य धनेश्वरे संवत् १०८० मां रचेली शील उपर सुरसुंदरी कथा, २० उद्देशमय दवदंती कथा, सज्जन उपाध्यायना शिष्य महेश्वर सूरिनी २००० गाथामां झानपंचमी कथा ( भविसदत्त कहा ) महसूरिनुं सीया चरित्र वगेरे काव्यमय कथाओ छे.
१२ मा तथा १३ मा शतकमां रचायेला तीर्थकरोनां प्राकृत चरित्र काव्यो घणां छे. मानदेवना शिष्य शीलाचार्यनुं महा पुरुष चरित्र (१२८०० प्रथाग्र ) संवत् ९२१ मां रचायेलुं छे. वस्तु त्रिषष्ठिनीज छे.
वसुदेवहिंडिं नामनी लम्भकमय बृहत्कथामां कृष्णना पिता वसुदेवनुं पराक्रममय
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(११) चरित्र होइ तेमां घणी कथाओ छे. १२ मा तथा १३ मा शतकना आचार्योए भद्रबाहुवामिने सवालाख प्रमाण वसुदेवचरित्रना कर्ता तरिके स्तव्या छे.
वंदामि भद्दबाहुं मेण य अइरप्तियबहुकहाकलियं । चरियं सव्वालक्खं रइयं वसुदेवरायस्स ॥
( देवचंद्रकृत शांतिनाथ चरित्र ) वसुदेवहिंडना मे प्रतीको हमणां पाटण, खंभात, अमदावाद वगेरे स्थळोए मळे छे तेना ७१ लंभक होइ ग्रंथ प्रमाण फक्त २८००० छे. मारा सांभळवा प्रमाणे आ ग्रंथना सवालाख प्रमाणनो आशरे २००० पत्रनो प्रतीक मुशीदाबाद, कलकत्ता, अथवा अजीमगंजना कोइ बाबुने १००१ नी कीमते वेचवामां आव्यो हतो. आवो महान् ग्रन्थ नष्ट न थाय ते माटे तेनी शोधखोळ थइ नकलो करावी लेवी घटे छे.
__प्राकृत व्याकरण ग्रंथोमां दोधकार्थ ए हेमाचार्यना अष्टमाध्यायना अपभ्रंश दोहाना अर्थो छे. नरचंद्राचार्यना प्राकृतप्रबोधमां अष्टमाध्यायना आख्यातोनी रूप सिद्धि छे. विमलनो देशीनाममालोद्धार हेमाचार्यना ग्रंथनो सार छे. नंदिअट्ठ तथा पिंगलसारोद्धारमा प्राकृत छंदोनां लक्षणो आपेलां छे.
सूक्त संग्रहमा जयवल्लभनी वज्जालग्ग क्षेपक सहित, तथा तेना उपर छाया, विजयपाळना पुत्र विक्रमपालना पुत्र रुद्रपालना पुत्र म्हाइंदेवना पुत्र नलगनी सप्तशती छाया सालंकारा तथा विमलाचार्यनी लघु टीका नोंधवा लायक छे.
प्रश्न व्याकरण उर्फे जयप्राभूत नामना निमित्त शास्त्रना ग्रंथ उपर चूडामाणि, ज्योतिः तथा नाम वगरनी एम त्रण टीकाओ छे. प्रणष्ट लाभमां खोवाएली वस्तु क्यारे मळशे तेनुं ज्ञान आपेलुं छे. ठक्कर फेरुना बस्तुसारमा प्राकृतमां वास्तुशास्त्र संक्षेपमा कहेलुं छे
अपभ्रंश काव्योना सर्गोनू नाम संधि होय छे. आ संधिओ ते कडवाओना समूह छे ( सन्ध्यादौ कडवकान्ते च ध्रुवं स्यादिति ध्रुवः ध्रुवकं घत्ता वा कडवकसमूहात्मकः सन्धिस्तस्यादौ पद्धडिकायैच्छन्दोभिः कडवकम् )
पाटणना भंडारमा संधिबद्ध ग्रंथो तथा केवळ संघिओ केटलीक मळेली छे. गुज
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(१२) रातीमा जेम काव्यने रास कहे छे तेवी रीते अपभ्रंश तथा प्राकृत भाषामां रासो हता. यशो देवोपाध्यायका संवत् १७४ मां रचेला नवतर भाष्यविवरणमां माणिक्यप्रस्तारिका प्रतिबद्ध रासक नाम आवे छे. ( अनयोश्च विशेषविधिMकुटसप्तमीसन्धिबन्धमाणिक्यप्रस्तारिकाप्रतिबद्धरासकाभ्यामवसेयः )
___पाटणना भंडारमा संदेशरासक नामनोविरहिणीसंदेशविषयक प्राकृत-अपभ्रंशमां, अंतरंग रास तथा नेमि रास अपभ्रंशमां छे.
मुनिवर वरदत्तना बनावेला वज्रस्व मि चरित्रनी बे संधिओ छे. प्रथम संधिमा १२ अने बीनीमा ९ कडयां छे. कुल ग्रंथान ३०० छे. आ चरित्रना त्रण ताडपत्रो पाट गमां थे, तेम एक खंभातमा पण छे. प्रथम कड्यूँ नाचे प्रमाणे छे:
अहो जण निमुणज उ कन्नु धरिजउ बइरसाभिनुनिवरचरिउ ।। १ ॥ साहउं सुमणाहरु भवियह सुंदरु नि जिणवयणु समुद्धरिउ ॥ तुंबवननामि पुरवरु पहाणु अत्येत्थु भराहि वरगुणनिहाणु। निणभवणिहि सुंदरु किउ पवित्तु देउलविहारमंडिउ पवित्तु ॥ २ ॥ नंदनवणसरिसरवरहिं रम्म पालाहं नर तित्थु जिणंदधम्मु । तहिं नयरि अत्यि धणु नाउ सेठ्ठि जो हत्थु न उड्डइ कसु विहे ॥ ३ ॥ तः धणगिरि नामि पहाणु पुत्तु पुरमंडणु अस्यि सुगुणहिँ जुत्तु । २...वयवंसुप्भवउ सुद्धभावउ निम्मलगुणमंदिरु समय उ ॥ ४ ॥ उसंतमोहमे क्वाभिलासि आहलासु न बंधइ गेहवासि । जा कावि वरिजइ तासु वाल नवजोव्वणवरनयणविसाल ॥ ५ ॥ पडिसेहइ सो मुनि जेम नारि नियजोयणु म अयत्थ हारि । पवज लेसु निम्विन्नकामु मइ सफलु करोषणु मणुयजम्मु ॥ ६ ॥ अन्नइ पभाणिजइ सुंदरीए नियतायजणणिग्खामायणीए । हउ अवसवरित्तणि करिसु एहु महु मणइछु एहु बरु वरेहु ॥ ७॥ ( धत्ता ) एहु जइ न वरेसइ नवि परणेसइ तो मइ माइ मरेवउ । एहु नयणसुसुंदर रूवपुरंदरु अक्स नाहु करवउ ॥ ८ ॥ अंत. मुनिवरवरदत्तिं गणहरभात्त वइरसामिगणहरचरिउ । साहिज उ भावि मुंचहु पावि नि तिहुयणु नियगुणभरिउ ।।
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( १३ )
अंतरंगसंधि धर्मप्रभाचार्यना शिष्य पंडित रत्न प्रभनी अंतरंग संधिना नव अ धिकारो (९ कडवा ) मां भव्य अने अभव्यना संवाद रूपे तथा मोहसेना तथा जिनसेनाना युद्ध रुपे अंतरंग रिपुना विजयनुं वर्णन छे. आनी एक ताडपत्र तथा बोजी कागळनी प्रत बे प्रतो छे.
एम
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चउरंगसंधिना पांच कडवामां चार शरणनुं वर्णन े, धनपाल पंडितनी पंचमी कहा ( भवित्तकहा ) २२ संधिओमां छे. आदिनुं एक कडवु उदाहरण तरीके नीचे आपलं छे.
जिणसासणि सातु णिधुयपाव कलंकमलु । सम्मत्तविले निणह सुयपंचामीहि फलु ॥ पणवि पिणु जिणु तइलाय बंधू दुत्तरतरभवणिव्वूढखंधू । भव्वयणपंकयपयंगु कयकरणमोह तिमिरोहभंगु || नीमभरियमुवणंतरालु उक्कयदुक्कम्मतरुमूलजालु ॥
साउ अराउ अको अलोहु भणावलेउ । परमेसरु परमगुणप्पहाणु संपत्तु परमनिव्वुइनिहाणु अरहंतु अणंतु महंतु सिउ संकंतु सुहुमु अणाइवंतु ।
परमप्पड पंडिउ महत्थु पवर महासिरिपरमिट्टि परमकारण कयत्थु ॥
६त्ता । सो हिय धरेवि पवरमहासिंरिकुलह रहो ।
वित्थार मिले!इ कित्तणु भविसणराहिवहो ||
अंत. इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मत्थक ममोक्खाए
बुहघणपालकयाए इत्यादि
आ कथामां कार्तिक शुक्ल पंचमी ( ज्ञानपंचमी ) ना फल वर्णनरूप भविष्यदत्त राजानी कथा छे.
हेमाचा ना गुरु देवचंदनुं सुलसाख्यान १७ कडवामां छे. एह संधि पुरसध्यवसथ्य देवचंदसूरीहिं समध्यिय । इय बहुगुणभूसिउ जिणसुपसंसिउ सुलसचरिउम्मवियहं निसुणत पढ़तह भत्तिए सत्तणं दइ मोक्खु मोक्खथ्ययहं ॥ खरतर जिनदत्ताचार्यना उपदेश रसायणनी ८० गाथाओ छे.
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झ्यः जिणादसवपसरसायणु झ्य परलोइय सुकखहं भायणु ।
कपणंजलिहिं पियंति नि भन्नई तेह यंति अजरामर सम्बई ॥ ४ ॥ चर्चरी नामनी जिनवल्लभनी स्तुति पण अपभ्रंशमां छे. भावनासार प्रकरणनी ८६ गाथाओ छे. जिणसासणि लीणा चउगहरीणा मावणसार नि संभरइ ।
सुहसंतिपहाणा मुंणिपरराणा ताह गुणधुइ फुड करहिं ॥ ८६ ॥ दिगंबर योगींद्र देवनी परमात्म प्रकाश भट्ट प्रभाकरनी विज्ञप्तिथी बनावेलो छे. आ अध्यात्मिक ग्रंथ ३३० दूहामां छे.
भट्टपयाहरि विउ विमलु करेविण भाव । दिगंबर योगचंद्रनो योगसार १०८ दूहामां छे
पंडित धनपालनुं सत्यपुर मैडन महावीरोत्साह नामर्नु एक १५ गाथार्नु नानु स्तोत्र अपभ्रंशमा छे.
रखि सामि पसरंतु मोहु नेहु डुय तोडहि सुम्मदंसणि नाणु चरणु भडु कोहु विहोडहि । करि पसाउ सच्चाउरि वीरु जइ तुहूं मणि भावइ
तइ लुइ धणपालु जाउ जहि गयउ न आवइ ॥ १५ ॥
दिगंबर नयनीदनी आराधना बे विभागमा छे. प्रथम विभागमा ५६ संधि छे अने बीजामा ५८ संधिओ छे. उपलब्ध पुरतकमां प्रथममां त्रीस अने बीजामां सतावीस संधियोज मळे छे.
मुणिवरणयनंदीसण्णिबद्धे पसिद्ध सयलविहिणिहाणे एस्थ कव्वे सुभत्वे । अरिहपमुहमुत्तु वुत्तुमाराहणाए पभाणिउं फुड संधी अठ्ठावण्णं समोति ॥
ससिपालक कुल संभव पार्श्वनंदन पाहिलना पउमसिरि चरित्रमा चार संधिमा पद्मश्री सतीना शीलनुं वर्णन छे. आ कयारे रचायेलुंछे ते जणाएलं नथी परंतु प्रतीक मवत् ११९१ नो छे.
आदि. धाहिलु दिन्वादिहि कवि जंपइ अहु जणरोलु मुएविणु संपइ । निमुणह साहमि कन्नरसायणु धम्मकहाणडं पहुगुणभायणु ।।
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(१५)
अंत. ससिपालककय आसि नाडु जसु विमलु कित्ति नगि समइ स. हु । तसु निम्मल वसि समुष्भवेण पउमासेरिचरिउ, किउ घाहिलेण ॥ कविपासह नंदणु दोसविमद्दणु सूराहिं महासहि । जिणचलणह भत्तउ तोयइ पोत्तउ दिव्वदिठ्ठिनिम्मलमइहिं ॥
संदेश रासक. आ रासक प्राकृत तथा अपभ्रंशमां छे. तेमां दोहा, गाथा, रड्डा पद्धडिका, चंद्रायण अर्ध वगेरे छंदो वापरेला छे.
पञ्चासि पहूओ पुव्वसिद्धो य मिच्छदेसोत्थि । तह विसए संभूओ आरहो मीरसेणस्स || ३ || तह तणओ कुलकमलो पाइयकत्रेषु गीयविस्त अहमाण सिद्ध सन्नेहइ रासयं रइयं ॥ ४ ॥
बेकुं छे.
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पाश्च व्य देशमां म्लेच्छ देशमां मीरसेणना संबंधीनो पुत्र अहहमान नामनो हतो. तेनी गीतविषय प्राकृत काव्यने विषे प्रीतिने लीधे तेना स्नेहथो अ विरहिणी संदेश विषयक संदेश रासक रचेलु छे.
तेरमा शतकना अंते तथा चउदमाना प्रारंभ थयेला आगमिक जिनप्रभे केटलाक टुका ग्रंथो रचेला छे. केटलाक शत्रुंजय उपर रहीने बनाव्या छे.
(१) मदनरेखा संधि. ५ कडवामां मयणरेहा सतीनुं चरित्र १२९७ मां बना
एसा महासईए संधी संधी व संजमनिवस्स । जं नमिनिवरिक्षिणा सह ससक्करा खीरसंजोगा ॥ बारहसत्ता उए वारिसे आसो असुद्धछठ्ठीए । सिरिसंघपत्थणाए एयं लिहियं सुयामिहियं ॥
(२) ज्ञानप्रकाश कुलक १२५ गाथा.
सिरिंजेण पहलग्गा भव्ववग्गा समग्गा परमपयसुहाणं जायई ते निहाणं । ज्ञानप्रकाशकुलकं रचितमिदं श्रीजिनप्रभाचार्यैः ।
श्रीशत्रुंजयसत्तीर्थसेविभिर्मोहनाशाय ॥
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(३) चतुर्विध भावना कुलक ११ कडवां. उजनु कुगड्डु जिणपहि लग्गिउ मोकखकएमु विवेकिहिं नग्गिउ ।। ( ४ ) मल्लिचरित्र ५१ गाथा; मत्ताछंदमां चंद्रकंठी साांनी विज्ञप्तिथी रचेलं छे.
एगुणर्व सममल्लि जैणह चरियं इय जयठिउ । चंदकंठिसुप.वित्तिणीए विन्नत्ति विरइउ ।। चउविहसंघह देउ लच्छि सग्गअपवग्गह । निरुवसग्गअणीवमग्गवग्गसिरिजिणपह लग्गह ॥ मत्ताछंदविणिम्मियगंथमानु पन्नास ।
चरिउ गुणंतसुणतह वि भावियण पुजइ आस ।।
( ४ ) जीवानुशास्ति संधि १८ गाथा इय विविहपयारिहिं विहिअणुसारिहिं भाविहि जिणाहुमणुपरहु ।
(६) नेमिनाथरास ११ कडवां
जिणपहि लग्गिउ भावइ लीजइ निणवरआण सो वंदीन ।
नं जिणआणा निरुपमु तित्थू एउ गणहारहिं कहिउ परमस्थू ।। ११ ।। . (७) युगादिजिन चरित-कुलक २७ गाथा
इय भवभावविभावणग्गि कम्मिंधणु जा लिउ केवलनाणी जाइ मोकिख संनमु पालिउ । रिसहचरिउ संथवणु रासिप्पोरोह जो देइ
सो सिरिनिणपहलग्गउ सग्गु अपवग्गु वि लेइ ॥ २७ ॥ (८) भव्यचरित्र ४४ गाथा. . . . . .
जिणपहुमेहिउ सरणु न कोइ सुगुरु भणइ सयलु वि जीवलाइ । (९) भवियकुडंव चरित्र ३६ गाथा. छंद चतुष्पदी. द्रविडी भाषामां गवाय छे.
घउवइबंधेण इमं मवियकुडं बस्स संतियं चरियं । सेत्तुनतित्थगएणं सिरिनिणपहसूरिणा रइयं ॥ ३६ ॥
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(१७) (१०) सर्वचैत्यपरिपाटिस्वाध्याय
जिणपहसारहि जो करइ सु लहइ सिद्धिरवेमु । (११) सुभाषित कुलक ३२ गाथा (१२ ) श्रावकविधिप्रकरण ३२ गाथा
इय आगमविहि सावगइ पइ दिणु किरिया सारु ।
जाणिउ निणपहि रइ करहु निम छिन्नहु संसारु ॥ ३२ ॥ ( १३ ) धम्माधम्मविचारकुलक १८ गाथा
आगमअणुसारिहिं जिगपहसूरिहिं धम्माधम्मवियारु किउ ॥ १८ ॥ (१४ ) वयरस्वामि चरित्र ६० गाथा सं. १३१६
चंदगाच्छि देवभद्दसूरि दरक फुरइ जिणपहसूरि समगुगलरक . नाणि चरणि गुणि कित्ति समद्ध देउ वयरसामि चरिउ आणदु ॥ १८ ॥ सोहग्गमहानिहिणो गुरुणो सिरिवयरतामिणो चरिय
तेरह सोलुत्तरए रइयं सुहकारणं जयउ ॥ १९ ॥
(१५) नेमिनाथ जन्माभिषेक १० गाथा (१६) मुनिसुव्रत स्वामि स्तोत्र १३ गाथा ( १७ ) छप्पन्नदिशाकुमारिजन्माभिषेक १५ गाथा ( १८) जिन स्तुति २४ गाथा. आ उपरीत जिनप्रभy नाम आपेलुं नथी पण घj करीने जिन प्रभनांन बनावेलां केटलांक उपरनाज ताडपत्रना पुस्तकमां काव्यो छे. ( १ ) पटपंचाशदिक्कुमारिका स्तवन २५ गाथा (२) महावीर चरित्र २४ गाथा.
( ३ ) जंबु चरित्र २० गाथा धन्याश्री भाषामां गवाय छे सं. १२९९
बारसनव्वाणउए भद्दवसियपडिवगुरि समुद्धरियं
धन्नासीभासाए भणियव्वं संघभद्दकए ॥ २० ॥
श्रीजिनप्रभुमोहराजविजयोकित २१ गाथा (५ ) जिनकल्याणक ४ कडवा (१) भासरागेण (२) खंभाइथीभाषया ( ३ ) देवकृतिभाषया (४) गुड कृतीभाषया.
(१) सुकोशल चरित्र १८ गाथा.
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( १८ )
तेरदुरुत्तरवरिले सिरिवीरजिदिमाक्कल्ला |
कल्लाणं कुणह सया पढंतगुणंताण भव्वाण ॥ २॥
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( ७ ) जिन स्तुति २० गाथा (८) चाचरी स्तुति ( वेलाउली रागेण ) ३६ गाथा ( ९ ) गुरुस्तुति चाचरि ( गुर्जरीरागेण ) १५ गाथा
नर्मदा सुंदरी संधि, जिनप्रभ शिष्य ७९ गाथा सं. १३२८. तेरससयअडवीसे वरिसे सिरिणिपहुपसाएणं ।
एसा संधी विहिया जिनिंदवयणानुसारेण ॥ ७१ ॥
गौतम स्वामि चरित्र, गौतम स्वामि-जिन प्रभना शिष्य २८ गाथा संवत् १३५८ गोयमसामहिं गोयमचरियं रइयं पढमंजरीए भासाए
कत्तियअमावसाए अठ्ठावन्नस्स वरिसस ।। २८ ॥ चच्चरिउ, कर्ता सोलणु ३८ गाथा.
कर जोडे मोलणु भइ जीविउ सफलु करे । तुम्हि अवधारह धम्मियउ चच्चारेडं गाए ॥ ३८॥ दूहा मातृका १८ गाथा.
मंगलमहासिरिसरि सिवफलदाय रम्मु ।
दुहामाई अखियइ पुहविहिं निणवरधम्मु ॥ ९८ ॥ शालिभद्रका (कक्को ) कर्ता पउम ६९ गाथा.
भलि भंजणकम्मारिकुल वरिनाहु पणमेव । पउनु कहइ कक्कक्खरिहिं सालिभद्दगुण केवि ॥ अंतरंग रास जिनसूरि ९९ कडवां.
तारे जिय जिणसूरिहिं करि जिणधम्मु पमाउ विणासिउ ॥
चतुर्विंशति जिनकल्याणक १३ कडवां, स्थूलभद्रचरित्र २ कडवां, जन्माभिषेक स्तुति ५ कडवां, अवंतिसुकुमार संधि ११ कडवां.
भावना संधि. शिवदेवसूरिना प्रथम शिष्य जयदेवगणिनी भावना संधिनां ६ कडवां ( ६२ पढ़ो ) छे.
निम्मलगुणभूरिहिं सिवदिवसूरिहिं पढम् सीसु जयदेवगण | कियभावणसंधि भावसुगंधी निसुणवि भविया धरह मणि ||
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( १९ )
शीलसंधि जयशेखरसूरिशिष्यकृत ३४ गाथा. १५ मा शतकना उत्तरार्धमां. इय शीलसुसंधि भावसुअंधी जय सेहर सुरिसीसकय ।
विनिवि हियइ ठवविणु सिलधम्पि उजन करहु || ३४ ॥ उपदेशसंधि हेमसारकृत १९ गाथा.
उवएससंधि निरमलबांध हेमसार इम रिसिकर ए ।
जो पढ पढाइ सुहमणि भावइ वसुहं सिद्धिवृद्धि लइ ए ।
तपःसंधि सोमसुंदर शिष्य विशालराजसूरि शिष्यकृत ५२ गाथा. १९ मा शतकना अंतमां. प्रतीक लख्या संवत् १५०९.
सिरिसोमसुंदरगुरुपुरंदरपाय पंक्यहंसओ
सिरिविसालराया सूरिराया चंद्रगच्छवतंसओ ।
पय नमीय सीसि तासु सीसिइ एस संधी विनिम्मिआ सिवसुकख कारणदुहनिवारण तववएसि वम्मिआ ॥ ५२ ॥
केशीगोयम संधि ७० गाथा.
आ सिवाय महेश्वरकृत संयम मंजरी ३५ गाथा, मृगापुत्र कुलक ४० गाथा, वीर जिन पारण ४७ गाथा, ऋषभपंचकल्याणक १४, नवकारफल ३०, ऋषभ धवल २६, सीदासत २०, आरात्रिक न्हवणादि २० चतुर्विंशतिजिनकल्याणक ३६, लघुअजित शांति कविवीरगणिकृत 2, चतुर्विंशतिजिनप्रतिमा कोश ११, जिनचैत्यस्तवन १५ बुद्धिसूरि ( पूर्णिमा पक्षना ) स्तुति, जिनस्तुति, जिनस्तुति २० वीरविज्ञप्तिका १३, सोमसूरिकृत कल्याणकस्तोत्र, दानादिकुड़क, दंगडउ, शाकुन ३०, धर्म सूरि गुण, धर्म सूरि बारमास वगेरे परचुरण ग्रंथो छे.
१२ मा तथा १३ मा शतकना प्राकृत काव्यो - देवचंद्रसूरिकृत शांतिचरित्र वर्धमानसूरिकृत ऋषभ चरित्र वगेरे-मां केटलेक ठेकाणे अपभ्रंश भाग आवे छे. रत्न प्रभाचार्यनी उपदेश मालानी दोघट्ट वृत्तिमां ऋषभसंधि प्रभृति केटलीक संधि छे.
खंभातना ताडपत्राना भंडारमां महावीरचरित्र वगेरे त्रणचार टुका ग्रंथो अपभ्रंशमां छे.
अपभ्रंश साहित्य घणुं विशाळ होवु जोइए. परंतु दुर्लक्षथी नाश पामी गयेलु लागे छे. उपरना ग्रंथो उपरांत बृहट्टिपनिकामां सागरदत्ते स. १०७६ मां बनावेलुं जंबु
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( २० )
स्वामि चरित्र (२६९० ग्रंथाग्र ) तथा तेना उपर टिप्पन ( ११९० ग्रंथाग्र )
नोंघेलां छे.
समयाभावे अहितो ग्रंथांना नाम मात्र थोडाक उतारा साथे आपला छे. परंतु आगळ अर समयानुकूलनाए तेमां वपरायेला छंदो तथा व्याकरणना प्रयोगो विषे लखवानुं बनी शके.
जूनी गुजराती भाषाना संपूर्ण अभ्यास माटे पाटणना भंडारो जे जूना अने विश्वसनीय साधनो पूरा पाडे छे तेवां हिंदुस्ताननी बीजी कोइ भाषामां भाग्येन मळी शकशे अहींयाना जूना प्रतोकोथी विक्रमना अगीयारमा शतकथी गूजराती भाषानो इतिहास यथार्थ रीते लखी शकाशे. भंडारोमांनुं गूजराती साहित्य बहुज विशाळ छे. परंतु ते समग्रनुं अहीं विवेचन करतां बहुत विस्तार थाय एवो होवाथी फक्त १३ थी १५ मा शतक सुधीना ग्रंथो तथा केटलाक बीजा अति अगत्यना ग्रंथो तपासीशुं.
जंबुस्वामिरास- --आ रास महेंद्र सूरिना शिष्य धर्म संवत् १२६६ मां रचेलो छे. गूजराती भाषामा अत्यार सूत्री मळी आवेला रामोमां आ सौंथी जूनो छे. प्रतीक कागळ उपर होवाथी जोके असलनी भाषा संपूर्ण रीते सचवायली लागती aण प्रयोगो असल रूपमा जळवायेला छे.
नथी, तोपण
आदि
जिण चउविस पय नमेवि गुरु चलण नमेवि । जंबुस्वामहंत चरिय भविउ निसुणेवि ।। करि सानिध सरसत्तिदेवि जीय रयंक हाणउ जंबुस्वामहिं गुणगहण संखेवि वखाणउ ॥ १ ॥ जंबूदीव मरहखित्ति तिहिं नयर पहाणउ | राजगृह नामेण नयर पहुचि वखाणउ ॥ राज करइ सेणीय नरिंद नरवरहं जु सारो । तासु तण पुत्त बुद्धिमंत मंति अभय कुमारो ॥ २ ॥
अन्न देणंतरं वद्धमाण विहरंत पहूतउ ।
सेणीउ चालीउ, बंदणइ बहुभत्ति तुरंतु ॥
मार्गि वरंतु महाराज केसउ पेखेइ | भोग: रत्तउपसन्नचंद बहुतवण तवे ॥ ३ ॥
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(२१)
· अंत
वीरनिणिंदह तीर्थ केवली हुउ पाछलिउ । प्रभवउ बइसारीउ पाटि सिद्धि पहतु जंबुस्वाभि । जंबुस्वामि चरित पढइ गुणइ जे संभलइ । सिद्धि सुख्ख अणंत ते नर लीलाहिं पामिसिइ ॥ ४ ॥ महिंद सूरि गुरु सीस धम्म भणइ हो धामीउ । चिंतउ राति दिवस जे सिद्धइ उमाहियाह । बारहवरसएहिं कवितु नीपy छासठए ॥
सोलह विजाएवि दुरिय पणासउ सयलसंध ॥५॥
रेवंतगिरिरास--आ रास मंत्री वस्तुपालना गुरु विजयसेन सूरिए ४ कडवामां बनावरावेलो छे. संधर्वाना पाडाना एक ताडपत्रनी पोथीमां बीजा पुस्तको भेगु सत्तरपानानुं एक नानुं ताड पत्र हतं, तेमांना १२ पत्रमा आ रास तथा बाकीमां महेश्वरनी संयम मंजरी ( अपभ्रंश) ए बे ग्रंथो छे. दस्कत बहु उतावळथी लखेला छे. जो के लल्या संवत् आपेलो नथी परंतु १४ मा शतकना आदिमां लखायलं जणाय छे. रासनी रच्या संवत् पण आपेली नथी पण वस्तुपाले गिरनारनो संघ काढेलो ते अरसामां रचायेलो होवाथी संवत् १२८८ ना अरतामां बनावेलो हशे. आमां गिरनारनुं तथा त्यांना देवालयोना जीर्णोद्धारनुं वर्णन टुंकामां करेलुंछे. आदि परमेसर तित्थेसरह पयपंकय पणमेवि ।
भणिसु रासु रेवंतगिरे अविकदिवि सुमरेवि ॥ १ ॥ गामागरपुरवणगहणसरिसरवरिसुपएसु । देवभूमि दिसि पच्छिमह मणहरु सोरठ देसु ॥ २ ॥ जिणु तहि मंडलमंडणउ मरगयमउडमहंतु । निम्मलसामलसिहरभरे रेहइ गिरि रेवंतु ॥ ३ ॥ तसु सिरि सामिउ सामलर सोहग सुंदर सारु ।
निंबजाइ व निम्मलकुलतिल निवसइ नेमिकुमारु ।। ४ ।।
(१) परमेश्वर तीर्थकरना पद पंकजने प्रणमीने (२) अंबिकादेवीने समरीने गिरनारनो रासभणीमुं ( ३ ) सुप्रदेश ( ४ ) पश्चिमदिशामां ( ५ ) मरकतना मुकुटधी शोभतो (६) निर्मल श्याम शिखरना भारवाळो रेवंतगिरि राजे छे
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(२२)
तसु मुहदंसणु दसदिसिवि देसदेसतरु संघ । आवइ भावरसालमणउ हलि रंगतरंग ॥५॥ पोरवाडकुलमडणउ नंदणु आसाराय वस्तुपाल वरमंति तहिं तेजपालु दुइ भाय ॥ ६॥ गुरजरधरधुरिधवलवीरधवलदेवराजि बिहु बंधवि अवयारियउ सूमु दूसममाझि ॥ ७॥ नायलगच्छह मंडणउ विजयसेणउरिराउ उवऐसिहि बिहु नरपवरे धम्मि धरिउ दिढ भाउ ॥ ८॥ तेजपालि गिरिनारतले तेजलपुरु नियनामि कारिउ गढमढपवरवणु मणहरु घरि आरामि ॥ ९ ॥ तहि पुरि सोहिउ पासनिणु आसाराय विहारु । निम्मिउ नामिोह निजजणणि कुमरसरोवर फारु ॥ १०॥ ताहि नयरह पूरवदिसी उग्रसेणगढदुग्गु । आदिनिणेसरपमुहीजणमंदिरि भरिउ समग्गु ॥ ११ ॥ बाहिरिगढ दाहिणदिसिहि चउरियवेहिविसालु । लाडुकलह हियउ रडीय नडि पसु ठाइ करालु ॥ १२ ॥ तहि नयरह उत्तरदिसिहि सालव्वभसंभार । मंडण माहमंडल सयल मंडल दस उभार ॥ १३ ॥ जोइउ जोइउ भवियण पेषि गिरिहि दुयारि । दामोदरु हरिपंचमउ मुवउ रेहइ उरि ॥ १४ ॥
१७ अगुण अंजण अंबिलीय अंबाडय अंकल्लु । (७) तेना मुख दर्शन वास्ते दशे दिशामांथी भावथी रसयुक्त मनबाळा संघो देश देशांतरथी हर्षना तरंगयुकत मनथी आवे छे. (८) पोरवाड कुळना मंडण (९) बे बांधवो ए दुःसम हालमां समकाल अवतार्यों ( १०) नागेद्गच्छना मंडण विजयसेनसूरीश्वरना उपदेशथी नरप्रवर बन्ने भाइओ धर्ममां दृढ स्थापाया.
(११) पोतानी माता कुमरदेवीना नामी माटुं कुमर सरोवर बंधाव्यु ( १२) चोरीनी वेदी ( १३ ) अहींआथी रेवंतगिरिनी वनराजीनुं वर्णन शरु थाय छे.
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( २३ )
उबरु अंबरु आमलीय अगरु असोय महल्ल ॥ १५ ॥ करवर करपट करुणतर करबंदी करवीर । कुडा कडाह कयंत्र कड करब कदलि कंपीर ॥ १६ ॥ वेयलु वनलु बउल वडो वेडस वरण चिडंग । वासंती वारिणि विरह वंसियाली चण चंग ॥ १७ ॥ सीस मे सिंबल सिरस म सिंधुवारि सिरखंड । सरल सार साहार सय सागु तिगु सिणदंड ॥ १८ ॥ पल्लवफुल्लफलुल्लतिय रेहइ ताहि वणराइ । तहि उजिलतलि धम्मियह उल्लटु अंगि न माइ ॥९॥ ओलावी संघहतणीय कालमेघंतरपंथि । मेल्हविय तहिं दिढ घणीय वातगाल वरमंति ! प्रथमं कडवं ॥२०॥ दुविहि गुजरदेसे रिउरायविहंडणु कुमरपालु भूपालु जिणसाप्तणमंडणु तेण संठाविउ सुरठदंड हिवो अंबओ। सिरे सिरिमालकुलसंभवो पाज सुविशाल तिणि नठिय अंतरे धवल पुणु परव भराविय ॥ १ ॥ धनु सुधवलह भाउ निणि पाग पयासिय बारविसोत्तरवरसे जसु जास दिसि वासिय जिम जिम चडई तडि कडाण गिरनारह । तिम तिम ऊडई जण भवणसंसारह जिम जन सेउजलु अग्गि पालाट ए तिम तिम कलिमलु सयलु ओहट ए ॥ २ ॥ जिम निम वायइ वाउ तहि निझ्झरसीयलु । तिम निम भवदुहदाहो तणि तुट्टइ ।
निच्चलु कोइलफलयलो मोरकेकारवो । ( १४ ) सोरठ दंडाधिप ( १५ ) सेतुजल
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( २४ )
सुम महुरहुरुंगुजारवो !
१६
पाज चडतह सावयालायणी ।
लापारामु दिसि दीसए दाहिणी ॥ ३ ॥
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आवइ ए. जे न उजिंति घर घरइ धंधोलिया ए ।
आविही ए हीग्रह न जंति निफ्फलु जीविउ सासुतणउं ॥ १६ ॥ जीविउ ए सो जि परि धन्नु तासु संमच्छर निच्छृणु ए ।
सो परि ए मासु परि धन्नु बलि हीजइ नहि बासर ए ॥ १७ ॥ जीहि जिणु उजिलठामि सोहगसुंदरु सामलु ए । दीस तिहुयणसामी नयणसलूणउं नेमिजिणु ॥ १८ ॥ नीझरणचमर ढलति मेघाडंबर सिरि धरोई ।
तित्थ एउ रेवंद सिंहासणि जयइ नेमिजिणु ॥ १९ ॥ रंगिहि ए रसइ जो रासु सिरिविजय सेणिसूरिनिम्मविउ ए । मजिणु तूसइ तासु अंबिक पूरइ मणि रली ए ॥ २०॥ ( चतुर्थ कडवं )
नेमिनाथ चतुष्पदिका - संवत् १३१६ - १८ मां लखायेला कागळना पुस्तकमां खेली आ विनयचंद्रसूरिनी नेमिनाथ चतुष्पदिकानी ४० चोपाई छे. उदयसिंहनी धर्मविधिवृत्ति संवत् १२८६ मां शोधनार तथा कविशिक्षा वगेरेना रचनार महाकवि आचार्य विनयचंद्र रविप्रभना शिष्य हता; ज्यारे आ विनयचंद्रे सूरि रत्नसिंहना शिष्य हता.
सोहगसुंदरु घणलायन्नु सुमरवि सामिउ सामलवन्नु
सखिपति राजल चडि उत्तरिय बार मास सुणि जिम बज्जरिये ॥१॥ नेमकुमर सुमरवि गिरनारि सिद्धि राजल कन्नकुमारि । श्रावणि सरवणि कडुय मेहु गज्जइ विरहि रिझिज्जर देहु |
विज्जु झक्कर रक्खास जेव नेमिहि विणु सहि सहियइ केम् || २ | सखी भइ सामिण मन झूरि दुज्जणतणा मन वंछित पूरि गयउ म त विठ्ठ काइ अछइ अनेरा वरह सयाइ || ३ || बोलइ राजल तउ इह वयणु नत्थि नेमिसम वररयणु ।
(१६) श्रावकोनी दृष्टि
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(२५)
धरइ ते जुगहरण सवि ताव गयणि न उग्गइ दिणयर जाव ॥ ४ ॥ भाद्रवि भरिया सर पिक्खेवि सकरुण रोवइ राजलदेवि । हा एकलडी मइ निरधार किम उवेषिसि करुणासार ॥ ५॥ निम्मल केवल नाणु लहेवि सिद्धि सामिाण राजलदेवि । रयणसिंहसूरि पणमवि पाय बारइ मास भाणया मइ भाइ ॥ ४०॥ नेमिकुमरु समरवि गिरनारि सिद्धि राजल कनकुमारि । विनयचंद्रसूरिकृतश्रीनेमिनाथचतुष्पदिका ।
संवेगमातृका १३५० ना अरसामां लखायेला ताडपत्रमा त्रुटक मळेली हेोवाथा कानु नाम तथा रच्या संवत् जणायला नथी. कुल गाथा ६१ छे. प्रथम भले मींडाथी मातृका शरु थाय छे.
भले भणउ जाणउ परमत्थु दुलहु चउविह संघह सत्थु । एउ जाणेविणु लाहउ लिअउ निय विढत्थु धणु धम्मि दिउ । मीडउ भणीउ किम कवि कहइ मीडाविणु संसारु जु भमइ ।
मीडातणी अज एवंडी सक्ति मीडउ ध्यातां हुअइ ज मुक्ति ॥ २ ॥
मातृकाचउपइ पण उपरनान ताडपत्रमाथी मळे छे. कान नाम तथा रच्या संवत् आपेला नथी. अहींआ पण उअरनी पेठे बाराखडीना अक्षरो लइने उपदेश आप्यो छे.
त्रिभुवनसरणु समरि जगनाहु निम फिट्टइ भादवदुहदाहु । जिण अरि आठ करम निद्दलिय नमो जिन जिम भवि नावउ वलिय ।
आंचली । सवि अरिहंत नमेवि सिद्धे उवझाय साहु गुणभूरि । माइयं बावन अक्षर सार चउपइबंधि पठिउ सुविचार । भले भगोविणु भणीअउ भलउ तिहूयणमांहि सारु एतलउ । जिनु जिनवचनु जगह आधारु इतीउ मूकिउ अवर असारु ॥२॥ मीडउ पडिउ भवनागमा जउ समकिति लीणु आतमा ।
जिनह वयणि करिने नियु ठाइ हृदय रहवि तिहुयणनाडु ॥ ३ ॥
कछूलीरास कछूली ए आबुनी तळेटीमां गाम छे. आ रासमां कछूलीना आचार्योनो इतिहास छे. आ रास कोरिंगवड में १३६३ मां रचायेलो छे अने कछूलीना आ
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( २६ )
चार्य उदयसिंहनी धर्मविधि वृत्तिनी संवत् १४१८ मां कछूली पासे लखायेली लूगडा उपरनी प्रतना प्रांत लखेल छे.
गणवइ जो जिम दुरीउविहडणु रोलनिवारणु तिहुयणमंडणू पणमवि सामीउ पासर्जिणु । सिरिभदेसर सूरिहिं वंसो बीजीसाहह वंनिसु रासो धम्मिय रोल निवारिउ ।।
सग्गपंडउ जिम महीयाल जाणउं अठारसउ देसु वखाणउ गोउलि घन्नि रमाउलउ । अनल कुंडसंभम परमार राजु करई तहिं छे सविवार । आबूगिरिरु तहिं पवरो विमलडवसही आदिजिणंदो || अचलेसरु सिरिमा सिरिवंदो तसु तलि नयरीय वन्नीयए ।
जणमननयणह कम्मणमूली क्छूली किरिलंकविलासी सरप्रवाचि मणोहरीय - ॥ ताम्हिनयरीय तम्हि नयरीय वस बहु लोय |
चिंतामणि जिम दुच्छीयहं दीई दानु सविषेय हरिसीय 1 सच्चर सीलि ववहरइ कूडकपटु नवि तेय जाई । गलीउ जलवाडी पीइ धम्मक अणुरत । एकजीह किम वन्नी कछूली सुपवित्त ॥ वस्तु ॥ अंत निणसासाण नहचंदु सुहगुरु भवीयहं कलपतरो । तां जग जयवंत उम्हाउ जां जगि ऊगइ सहस करो । तेरत्र रासु कोटि वडि निम्पउ |
जिणहरि दिंत सुणंत मणवांछेय सवि पूरवउ ॥
थूलभद्रका स्थूलभद्रनो आ फाग खरतरगच्छना आचार्य जिनंपद्मसूरिए चैत्र मासमां रंगथी रमवा अने गावा बनावेलो छे. जिनपद्मसूरि विक्रमनी १४ मी सदीना अंतमां
थया हता.
आदि-मिय पास जिणंदपय अनु सरसइ समरेवी
थूलभद्दमुणिव भणिसु फागुबंधु गुण केवी ॥ १ ॥ अह सोह सुंदररूवतु गुणमणिभंडारो । कंचण जिम झलकंतकंति संजमसिरिहारो ॥ लिभमणिराउ जाम महियली बोहंतउ |
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(२७)
नयरराय पाडलियमांहि पहूतउ विहरंतउ ।। अंत-नंदउ सो सिरिथूलिभद्द जो जुगह पहाणो ।
मुणियउ नीण जगि मल्ल सल्लरइ वल्लहमाणो । खरतरगच्छि जिणपदमसूरिकियफागु रमेवउ । खेला नाचइ चैत्रमासि रंगिहि गाववउ ॥ २७ ॥
गौतमरास विजयभद्र ( सं. १४ १२ ) आ सस छपायेलो छे पण विकृत भाषामां. अहींआं एनी आशरे विक्रमना १५ मा शतकना उत्तरार्धमा लखायेली कागळनी प्रत उपरथी मूळ भाषाना नमुना तरीके थोडो भाग उतारेलो छे.
वीरजिणेसरचरणकमलकमलाकयवासो । पणमवि पभाणिसु सामिसालगोयमगुरुरासो । मणुतणुचरणु एकंतु करवि निसुणउ भो भवियां जिम निवसइ तुम्ह देहिगेहि गुणगण गहगहियां ॥ १ ॥ जंबुदीवि सिरिभरहखेत्रि खोणीतलमंडणु मगधदेश श्रेणीयनरेसु रिउदलबलखंडणु । घणवर गुव्वर नाम गामु जहि गुणगणलज्जा विप्पु वसइ वसुभूइ तत्थ जसु पुहवी मजा ॥ २ ॥ ताण पुत्तु सिरि इंदभूइ भूवलयपसिद्धउ चउदहविद्याविविहरूवनारीरसि विद्ध उ । विनयविवेकी विचारसार गुणगणह मनोहरु सातहाथसुप्रमाणदेह रूपिहि रंभावरु ॥ ३ ॥ नयणवयणकरचरणि जिण वि पंकन जलि पाडिय तेनिहि ताराचंदसुर आकासि भमाडीय । रूविहि मयणु अनंग करवि मेलिहउ निद्दाडिय । धीरिम मेरु गंभीरि सिन्धु चंगिम चय चाडिय ॥ ४ ॥ पिक्खवि निरुवम रूव जस्स जण जंपइ कंचिय । एकाकी काल भीत इत्थ गुण मेल्या संचिय ।
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( २८ )
अहवा निश्च पुव्वजम्मि जिणवरु इणि वंदीय ।
रंभा पउमा गउरि गंग रति अति आनंदिय ॥ ५ ॥
कमलावती रासना कर्ता विजयभद्र आ के बीजा ते नक्की थइ शके एवं नथी, प्रतीकनी भाषा १७ मा शतकनी छे.
ज्ञानपंचमी चोपाइ श्रुतपंचमीना माहात्म्य उपर भविष्यदत्तनी कथानुं वर्णन आ चोपाइमां करेलुं छे. धनपालनी पंचमी कहा ( अपभ्रंश ) अने महेश्वरसूरिनी पंचमी कहा ( प्राकृत ) नो विषय आज छे. आ चोपाइ मगध देशमां विहार करतां जिन उदयगुरुना शिष्य अने ठक्कर माल्हेना पुत्र विद्वणुए संवत् १४२३ मां रचेली छे, प्रतीकमां मूळ भाषा सारी सवाएली छे.
आदि
चिणवरसासणि आई सारु जासु न लप्भइ अंत अपारु । पढ गुणहु पूजहु निसुनेहु सियपंचमीफलु कहियउ एहु ॥ सियपंचमीफलु जाणइ लोइ जो नरु करइ सो दुहिउ न होइ । संजम मन घरि जो नरु करइ सो नरु निश्चइ दुत्तरु तरइ || २ || आँकार जिण चवीस सारदसा मिनी करउ जगीस ।
वाह हंस चडी कर वीण सो जिणसासाणी अच्छइ लीण ॥ ३ ॥ अठदलकमल उपनी नारि जेणि पयासिय वेदइ चारि । ससिहर बिंबु अमियर फुरइ नमस्कार तसु विद्धणु करइ || ४ || चिंता सायर जवि नरु परइ घरघलाले सयलइ वीसरइ । कोहु मानु माया मोहु जर झपे परियउ संदेहु ॥ ५ ॥ दानु न दिन्न मुनिवरजोगु ना तपु तपिउ न भोगेउ भोगु । सावयवरहि लियउ अवतारु अनुदिनु मनि चिंतहु नवकारु ।। ६ ।। तिन्निरयणि जो झाणहं गइ तिसु जिउन रयण कबहु जाई ॥ ७॥ भवियह मुनिवर कई सुनहु सियपंचमिफलु कहियउ रद्द | चउदसइ तेइसा सार मंडल मगध नयरविहार ॥ ८ ॥ क्रियउ कवितु हरिषे आपने बहुफल होइ पंचमी सुने कन्नु देइ करि निने लोइ बुदीप पसिद्धउ सोइ ॥ ९ ॥
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(२९)
अंत
ठक्कर माल्हेपुतु विद्धणु पभगइ सुद्धमणी हरखिहि लागउ चातु
. चउदहसइ तेवीसमए । सिय भायवइग्यासि गुरुवासरि इह उपनउ नयरविहारमझारि
पंचमिफलु इम्व गाइयउ ॥ ४६ ॥ नंदउ चउविह संधु नंदउ सिरिजिणउदयगुरो जिम्ब तारायणं चंदु जिम्ब जलनिहीं गुरुगिरिपवरो। इह सियपंचमी तेमि चिरु णंदउ संसारमहि
ते नर सिवपुरि जाहिं पढहिं गुणहिं जे संभलई ॥ ५४८ ॥ चिहुंगतिनी वेल-चिहुंगतिनी वेलनो कर्ता वस्तिग छे. रच्या संवत् आपेली नथी पण प्रतीक सं. १४६२ मां लखायेलो छे. आदि सेत्तुंन वंदिअ तीरथराउ गुरुया गणहर करउ पसाउ
वागवाणि हउं समरउं देवि चिंहुगतिगमण कहू संखेवी ॥ ४ ॥ चिंहु गतिमांहि काइ नच्छी सार दसइ दुरकतणुं भंडार
चिंटू गतितणुं तहिां नहीं कोई गंमु जिहि चित्ति एक वसइ निणधम्नु __ अंत रामतिनी छइ मू घणी टेव गुरुया संधनी नितु करु सेव
अज्ञान पणइ आसातन कीध वस्तिग लागइ श्रीसंघपाय ॥ ५ ॥ __ आ चिहुगतिवें वेल- बीजुं नाम चतुर्गति चतुष्पदी छे. बीजी प्रतमा प्रथम लीटी नीचे प्रमाणे छे.
शेन वंदिय तीरथराउ प्रभरत्ना गुरु करुं पसाउ ___ आ उपरथी कर्ताना गुरुनु नाम प्रभरत्न अथवा रत्नप्रभ हशे पण विशेष हकीकत नही आपेली होवाथी ते क्यारे थया ते कही शकाय नही.
त्रिभुवनदीपक प्रबंध-जयशेखर सूरिना त्रिभुवन दीपक प्रबंध उर्फे परमहंस प्रबंधमां जूदा जूदा छंदो-वस्तु, दुहा, चुपइ, बोली, द्रुपद, ढाल,धउल वगेरे-वापरेला छे जयशेखर मूरि सं. १४६० ना अरसामा विद्यमान हता.
आदि (धुरि दुहा रागु धनासी)ए पहिलउ परमेश्वर नमी अविकतु अविचल चित्ति
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३० )
समरिसुं समरस झीलती हंसासणि सरसत्ति ॥ १॥ मानसि सरि जां निम्मलइ करइ कतूहल हंसु तां सरसात रागइ रहइ जोगी जाणइ डंसु ॥ २ ॥ वाणी पाणि सामिणी मन सरसती संभारी
दीस दुयणदुयगमी भीडे भुयण दुयारि ॥ 3 ॥
हिव वस्तु नाभि मंडल २ मूलि जे कंदु तिणि सुत्ति जगाविय । मूलपवणुं जुत्तिहिं निरुंधिय ।
तउ चल्लिय पवणचाल अवहमग्गि ससिपाणलुद्धिय । पेखी देवी सरिस मई दिठ्ठी दसम दुयारि ।
कासि कवित सोहामणुं तेह सरसति आधारि ॥ ४ ॥ जयशेखर सूरि एक प्रख्यात ग्रंथकार हता अने तेमनो रचेलो आ प्रबंध मनोहर होय तेमां नवाइ नथी. प्रबंधनी त्रण प्रतो पाटणमां छे. परंतु जे प्रतीकमांथी उपरनुं उतारवामां आवेलुं छे ते वधारे जुनो होइ मूळ भाषा सारी जळवायेली छे.
विद्याविलास रास - पीपलगच्छना वीरप्रम सूरिना शिष्य हीराणंद सूरिए आ विद्याविलास नरेंद्रनो पवाडो सं. १४८६ मां रचेलो छे.
पहिलउं प्रणमिय पढमजिणेसर सित्तुंजय अवतार |
हाणाउरि श्रीशांतिजिणेसर उज्नाले नेमिकुमार ॥ १ ॥ जीराजाले श्री पासजिणेसर साचउरि वर्धमान |
॥ ३ ॥
कासमीरपुर सरसती सामिणि दिउ मझ नितू वरदान ॥ २ ॥ पीपलगाच्छहि गिरुआ गणहर सिरिवरिप्पह सूरि । नामिइ लीइ जास तणइ सवि पापपणास दूरि ताणापय पण माय बोलिसुं विद्याविलासह चरिय । भ हीराणंद भविया निसुणइ हीयडइ हरख धरीय ॥ विद्याविलास नारेंदपवाडउ हियडाभीतरि जाणी । अंतराय विणु करउ तुम्ह भाव घरउ आणि आरासुमा वस्तु द्रुपद, दुहा, चोपइ, देशाख, वसंत, धन्याश्री, आंचली, वगेरे छंदो तथा रागो वापरेला छे प्रतीक बहु जूनो नथी.
|| 9 ||
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आंकणी
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दशार्णभद्ररास- - हीराणंदसूरिकृत दर्शाणभद्ररास बहुज टुंको छे पिप्पलगच्छना हीराणंद सूरिनो विद्याविलास पवाडो सं. १४८६ मां रचायेलो छे.
वीरजिणेप्सर पय नमीए समरीय समरीय सरसति देवि कि दशनभद्रगुण गाइसि ए हियडल्लइ
हियडलइ हरष धरेवि कि रनिणसर पय नमीए ॥ १ ॥ त्रुटक पय नमीय वीरह दशनभद्रह चरिय रचिसुं सोहापणूं
जंबुदीवहि भरहखंडहि दशनपुरु रळियामणू दशनभद्र तिहां राज पालइ इंदना गालि जाणे ए
दशनगिरिवनि वीर पुहुता समवसरण वाणीए ॥२॥ अंत इणिपिरि जिणवर गुण थुणए नासए कसमल पूरि कि ।
बोलइ बोलइ हीराणंद सूरि कि इणिपरि जिणवर वांदतां ए ।
नेमिनाथफाग----धनदेव गणिनो आ संस्कृत प्राकृत तथा गुजराती एम त्रण भाषामय सुरंगाभिधान नेमिफाग संवत् १६०२ मां रचायेलो लागे छे.
नत्वानंतगुणात्मकं सुरंनत संसारनिस्तारकम् विश्वानंदविधायकं जिनपतिं श्रीआदिदेवं प्रभुम् । स्तुत्वा श्री सुतदेवतां जननतां निःशेषनाडयापहाम् श्रीनेमेस्तुलं करोमि सफा सुरंगा भिधम् । प्राकृत काव्य । देवी देवि नवी कवीश्वरतणी वाणी अमसिारणी विद्या सायरतारणी मल घणी हंसासणी सामिणी । चंदा दीपत जीपति सरसात मइ वीनवी वीनती बोलु नेमिकुमार कोलनी रति फागइं करी रंजती । सरसति मुझ मति देवीअ देवीअ तुं जाग साररे । नीलकमलदलसामल जिनवर वरणवू नेमिकुमाररे ॥ ३ ॥ कामित फलदातार सामी नेमिकुमार हारमनोहरु ए मुगति रमणिवरुए फाग-ज्ञान उपy जाणीय राणीय राइमइ रंगी
अंत
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(३२)
गिरिसिरि सामीय निरखीय हरखीय सा निजअंगि ॥ १॥ सामी केवल कामिनी करि धरी रानीमती नादरी सा सारी निनकान राजकुमरी मुगतिइ गइ सा वरी । जे रेवइगिरिरायऊपरि गमइ श्रीनमिपाये नमइ
ते पामइ सुखासिद्धिरिद्धिहि रमइ श्री शाश्वती भोगवइ ॥ ३ ॥ इति श्रीसुरंगाभिधो नेमिफागः संपूर्णः संवत् १५०२ वर्षे कृतो धनदेवगणिना
वस्तुपाल तेजपाल रास-आ रासना कर्तानु नाम जणावेलु नथी. बहुज नानो होवाथी तेमां वस्तुपालना फक्त धर्मकृत्योर्नु टुक वर्णन करेलुं छे. रास जनो होवाथी तेमां वस्तुपाल अने तेजपालना वस्तिग अने तेजिग एवां नामो आपेलां छे जे तेमना खरां लौकिक प्रचारना नाम होवां जोइए. चिहुंगतिनी वेलना कर्तानु नाम पण वास्तग छे.
वीर जिणेसर नमीय पाय अनइ गोयमसामी सरसाततणइ पसाउलइ ए कहिसिउ सिरनामी ॥ १ ॥ वस्तुपालतेजिगतणउ अम्हे बोलिस रासो भरतषेत्र धूरि गुजरात अनहिलपुर वासो ॥ २ ॥ अणहिलवाडउ नयर जाणि पुहुविपरसिद्वउ ।
गढमढमंदिरपोलिवावि सरवरइ समिद्वउ ॥
श्रेणिकरास-आ रासना कर्ता जणायला नथी. पण १५ शतकमां रचायेलो होवो जोइए. प्रतीक संवत् १५९६ नो छे. आदि सोहोवा सिरिविरनिणपयपंकय पणमेवि
श्रेणीउभयकुमार चरितु हउ संखेवि भणेसु ॥ १ ॥ श्रेणीउभयकुमारचरी सरसतिविणु न कहाइ
पणमइ वीटिउ वाउलओ वाणी संघपसाइ ॥२॥ 'मंगळकलस चोपाइ--आ रासना कर्ता सर्वानंद सूरि कीया गच्छना हता अने तेमणे आ रास क्यारे रच्यो ते जणातु नथी. एक सर्वानंद सूरिए सं. १३०२ मां चंद्रप्रभ चरित्र रचेलु छे जा चोपाइमां वसंत सामेरी द्रुपद वगेरे रागो वापरेला छे.
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( ३३ )
सयल मंगल सयलमंगलमूलु मुणिनाह आबुगिरि आदिनिणु पायपउम पणमेवि भाविणु कछोलीमुखमंडणु पासनाहु उरवरि धरेविण ॥ वागुवाणि सुभवयण ले अवतरी अक्षरमाल मंगलकलसुचस्ति हिव भणसिउ रलिअ रसाल ॥ १ ॥ ( दूहां ) रलिअ रसाल निसुणतां मंगलकलसचरित्त । भावआं भाविइ संभलु करीउ सुनिचल चित्तु ॥२॥ निश्चलाचत्तपसाउलइ विधन विलीजइ दूरि ।
सुलालत वाणी इम भणइ श्री सर्वानंद हि ॥३॥ पेथडरास. विक्रमना १३ शतकमां थयेला पोरवाड वंशना पेथडशाहना सुकृतो आ कर्ताना नाम वगाना रासमां संक्षेपमा वर्णवेला छे. रास १५ शताना आदिमा रचाएलो लागे छे. पेथडना विशेष वर्णन माटे सुकृतसागर कान्य जुओ. आदि विनयि वयणि वीनवउ देवि सामिाण वागेसरि ।
हंसगमाण आकाशभमाण तिहुयाण परमेसरि । वीरजिणंदह नमीय चलण चउविहु श्रीसंघिहिं । कवाडनरूख जख्खाधिरान समरीय मनरंगिहि ॥ १॥ कोडीय नयरनिवासिणीय वंदउ अंबिकदेवि । शासनदेवात मन धरीय गुरुचलण नमेवि ॥ २ ॥ रास रमेवउ जिणभवणि तालमेल ठवि पाउ
संघ तलायन रोपीउ ए सभगिरिविभगिरि बेवि ॥ ३ ॥
संघपति समरसिंहरासना कर्ता नागेंद्रगच्छना पासडसूरिना शिष्य अंबदेव .. संघपति समरसिंह उर्फ समराए केटलांक स्तवनो बनावेलां छे. संवत् १४७१ मां तेणे शव जय उपर ऋषभदेवनी मूर्ति बेसाडी हती. आ रास पण ते अरसामां रचायेलो छ भने तेमां समराना विविध कृत्यो विस्तारेलां छे. समरसिंह ओसवाळ हतो भने नेना उपर अलपखाननी महेरबानी हती. आदि पहिलउ प्रणभिउ देव आदिसरु सेत्तुजसिहरे ।
अनु अरिहंत सव्वेवि आराहउ बहुभत्तिभरे ॥
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तउ सरसति सुमरेवि सारसससिहरनिम्मलीय । जसु पयकमलपसाय मुरुखु माणइ मन रलीय ॥ २ ॥ संघपतिदेसलपृत्तु भणिसु चरिउ समरातणउ ए । धम्मियरोलुनिवारि निसुणउ श्रवणि सुहावणउ ए ॥ ३ ॥ पासडसूरिहि गणहरह नेउअगच्छनिवासो तसु सीसिहिं अंबदेवसूरिही रचियउ एहु समरारासो ।। एह रासु जो पढइ गुणइ नाचिउ जिणहरि देइ ।
श्रवणि सुणइ सो बयठउ ए तीरथजात्रफलु लेइ ॥
मुदयवत्सवीरचरित्र सदेवंत सावलिंगानी लोककथानुं आ जूनुं काव्य छ. कर्ता जैनतर भीम छे. तेना विशे कंइ विशेष जणातुं नथी. प्राकृत तथा जूनी गूजरातीमा रचायेन आ काव्यमा ६७२ गाथाओ छे. ग्रंथान १० ११ छे. कविए पाधड़ी, छप्पय, वस्तु, दोहा, चउपइ वगेरे छंदो वापरेला छे. प्रबंध सालमा शतकना आरंसे बनाक्लो लागे छे.
माइमहामाइमझे बावनवन्नम्स जो सारो । सो बिन्दु ओक्कारो ओंकारेण नमोकारो ॥ १ ॥ जिणइ रचीय निगमआगमपुराणसर भक्खराण विस्थारो। सा ब्रह्माणी वाणी पय पणमवि सुपय मग्गेसु ॥ २ ॥ गजवयण गवरिनंदण सेक्यसुहकरण असुहअवहरणो । बहुबुद्धिसिद्धिदायक गणनायक पढम पणमेसु ॥ ३ ॥ गुरु लहु अनि केवि कवियण सरससुअत्था सुछंदबंधयरा। ए कंठठाणि सव्वे करजुअलं जोडि पणिमामि ॥ ४ ॥ सिंगारहासकरुणा रुद्दो वीरो भयान वीभत्थो । अद्भुतशंत नवइ रसि जसु जंपिसु सुदयवच्छस्स ॥ ५॥ छप्पय मालवदेसमझारि नयर ऊनेणी अणोपम पहु पहुवच्छ नरिंद नारि बहुलच्छि लच्छिसम तिह सुय सुदयकुमार सबल सामलिभत्तारह । साहसि जसि पवरति प्रसिद्ध जगि जयत जूआरह खित्ततणी खित्तिय सोह कर रायरीति वीर नि विशुद्ध इम मणिइ भीम तुअ गुण थुणिसु जोइ रासि धीवर लब्ध ॥१॥
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( ३५ ) उज्जेणि अवणिमझे नयरी नयरसयलसिंगारो । तिणि पडू पहुवच्छो पत्थंतय पूरए अस्थ ।। ७ ॥ विप्पवयणि राउ रंजिउ पुच्छइ वलि अविगाति ।
कवण कलागुण तूंअतणइ कवण तुइझ कुलपित्ति ॥ १४ ॥ (वस्तु) विप्प जपइ विप्प जंपइ निसुणि नरनाह
जयवंती ज्योतिषकला कुलकम्मि अम्ह अछइ अगइ । वत्तारउ संवच्छरह नष्ट जन्म नवि चित्ति लग्गइ । जं सुरपुरि नं नरभुवणि जं जं हूइ पाआलि।
नरवर निनमंदिरथिकू तं जाणूं तिणि कालि ॥ १५ ।!
आ शिवाय जैनोए पण आ कथा कवितामां रची छे. संस्कृतमा स्नशखरना शिष्य हर्षवर्धन गणिए सदयवत्स कथा गद्यमां रचेली छे.
सागरदत्तरास दानमहात्म्य उपर रचायला आ. १३७ गाथाना रासना कर्ता सांडेरगच्छना आमदेवसू रिना शिष्य शांतिसूरि छे. प्राकृत, अपभ्रंश तथा गूजरातीमा रचायेलो आ रास खरेखर रसमय होइ तेमां गाथा, रासउ, कुंडलिओ, घात (पत्ता), अडया मालिनीरूपक, छप्पय, पाधडी ( पद्धडिका ) रासाबंध वगेरे विविध छंदो वापरेला छे.
छंदतरकलोलं वन्न नलं संतिसूरिणा महियं ।
सायरचरिअं सायरसरिसं सरसं निसामेह ॥ कतना शिष्य ईश्वरसूरिए सं. १५६१ मां ललितांग चरित्र नामनो तेवोज रास बनावेलो छे. सागरदत्त रासमाथी थोडो भाग नीचे उतारेलो छे.
तहिं राजु करइ राजा जयतु राणीजयमालातणु कंतु ।। वयरियविसविसहरपंखिराउ वयरियपंचाणणअठ्ठपाउ ॥ ७ ॥ वयरियमयमयंगलगंधहत्थि वयरियसायरसोसणअगस्थि । अलवेसरु दाने सुजाणु महिमंडले ऊगिउ अवर भाणु ॥ ८ ॥
अडिल्ल गंभिरुमगुणनिजियसायरु नियवाणत्तपवित्तदिसायरु ।
दुस्थियलोयसफलआसायरु सत्थवाहु तहिं निवसइ सायरु-॥ ९ ॥
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छप्पय
( ३६ )
मालिनीरूपक । नवने हनिहाणसमुल्लासयं हसियं तिहतिक्खरुडक्ववियखणयंतणयं । सिंगाररसालतरं अहसं अइरेहइ माणिणिजुव्वणयं तणयं ॥ ११ ॥
सवियणी सहयारुबाहु साखोवम भासइ । विउ नियंत्रह बिंबु थारु थुडु थाण पयासइ । अंगुलिअसाहंतरइ नयणवरपत्त लहकउ । नहफुल्लिहिं फुलियउ अहरमंजरी महकउ । arryओहर अंचल बेहुलसुरवरइ रसभरिय | दिट्ठइ मणु कस्स न उल्हसइ पइ वसंतसंपइ वरिय ॥
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सालंकारसमत्थं सच्छंदं सरस गुणसंजुत्तं । ललियंगकुमरचरियं ललगाललियम्ब निसुणेह ||
ललितांग चरित्र सागरदत्तरासना कर्त्ता शांतिशूरिना शिष्य ईश्वरसूरिए मंडप दुर्ग पादशाह ग्यासुदीनना पुत्र नासीरना समयमां (इ. स. १४९८ - १९१२) मलिक माफरना पट्टे थएला सोनाराय जीवनना पुत्र मंत्रिपुंजनः प्रार्थनाथी स. १५६१ मां विविध छंदोमां रचेकुं छे. सागरदत्त रासनी पेठे आ पण प्राकृत, अपभ्रंश तथा गूजरातीमां छे. काव्यमां वापरेला छंदोनां नाम छेवटे आपला छे.
१२ ॥
आम कविताना काव्यनुं वर्णन करीने तेने ललनालीलतनी साथै सरखायुं छे. सागरदत्त रास अने प्रस्तुत चरित्र खरेखर उच्चप्रतिना काव्यो होइ संस्कृत तथा प्राकृत काव्योनी साथै सरखामणीमां सारी रीते उभा रही शके तेवा छे.
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महिमहति मालवदेश घणकणयलच्छिनित्रेस ।
तिहं नयर मंडवदुग्ग अहिउ जाण कि सग्ग ॥ ६७ ॥ तिहं अतुलबल गुणवंत श्रीग्यात जयवंत । समरथ साहसधीर श्रीपातसाह निसीर ॥ ६८ ॥ सुरज सकलप्रधान गुरुरूवरयणनिधान । हिंदुआ रायवजीर श्रीपुंज मयणह वीर ।। ६९ ।। सिरिमालवंशवयंस मानिनी मानसहंस । सोनारायजीवनपुत्त बहुपुत्तपरिवारजुत्त ॥ ७० ॥ श्रीमलिकमाकरपट्टि हयगय हडबहुचट्टि ।
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( ३७ )
'श्रीपुंज पुंज नरिंद बहुकवित केरिसुछंद ॥ ७१ ॥ नवरसावलासउलोल नवगाहगेयकले ल ।
नियबुद्धि बहुअ विनाणि गुरुवम्मफल बहु जाणि ॥ ७२ ॥ इय पुण्यचरियप्रबंध ललिअंगनृपसंबंध | पहुपासचरियह चित्त उद्धरिय एह चरित्र | कुलकं ॥ ७३ ॥ दशपुरह नरमझा रि श्रीसंघतणइ आधारि ।
श्री शांतिसूरि सुसाइ दुहदुरीय दूर पलाइ ॥ ७४ ॥ जं किमवि अलियमसार गुरुवर्णविचार | कवि कविउ ईश्वरसूरि तं खमउ बहुगुण सूरि ॥ ७९ ॥ ससिर ( ६१ ) विक्रमकाल ए चरीय रचिउ रसाल । जां अरविससि मेरतां जउ गच्छ सेंडर || ७६ ।। वाचत वीरचरित विच्छरउ जगि जयकित्ति ।
तसु मणुअभत्र धन्न धन्न श्री पासनाह प्रसन्न ॥ ७७ ॥
इति श्रीललितांग नरेश्वर चरित्रं समाप्तं । तस्मिन्समाप्ते समाप्तोयं रासकचूडामणि पुण्यप्रबंवः तथात्र रास के श्रीललितांगचरित्रे प्रथमं गाथा १ दुहा २ रासाटक ३ षट्पद ४ कुंडलिया ५ रसाउला वस्तु ७ इंद्रवज्रोपेंद्रवज्रा काव्य ८ अडिल्ल ९ मडिल्ल १० काव्यार्धबोली ११ अडिल्लार्धबोली १२ सूडबोली १२ वर्णनबोली १४ यमकबोली १९ छप्पय १६ सोरठी । संवत् १९६१ बर्षे.
नंदबत्रीशी चतुष्पदी - तपगच्छना न्यानशीलना शिष्य संघकुले नंदबत्रीसी १५२ चोपइओमां संवत् १९१० ( मां रचेली छे.
तपगच्छनायक एह मुणिद जय श्रीहेमविमलसूरिंद
न्यानशील पंडित सुविचार सीस कही चूपइ उदार ॥ ५० ॥
संवत पनर सादा मझारि चैत्र हि सुदि तेरसमझारि
जेनर विदुर विशेषइ सुणइ मुनिवर संघकुल इम भणइ ॥ ५१ ॥ बिद्दलणपंचाशिकाकाव्य चोपाइ -- आ काव्य गुजरातमां मळती बिलण
पंचाशिका (पूर्वार्ध अने उत्तरार्ध) नो दूहा चोपइमां अनुवाद छे, आ चोपइनो कर्ता पण छेवटना भाग उपरथी बिहलण नामनो कोइ पंडित लागे छे रच्या संवत् आपली नथी
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( ३८ )
पण पाटणना प्रतीकनो लख्या संवत् १६५५ होइ प्रतीकनी भाषा जोता तेथी पूर्वे १९ मां शतकना आ ग्रंथ रचायेलो लागे छे.
मकरध्वज महिपति वर्णवु जेहनुं रूप अवनी अभिनवु । कुसुमबाण करी कुंजरी चडइ जात प्रयाणि धरा धडहडइ ॥ १ ॥ कोदंड कामिनीतणुं टंकार अगलि आले झाझा झंकार । पाखालि कोइलि कलरव करइ निर्मल छत्र श्वेत शिर धरइ ॥२॥ त्रिभुवनमांहि पडावइ साद छइ को सुर नर मांडइ वाद । अबला सैनि सबळ परवरियुं हीडे मन्मथ मच्छरि भरि ॥३॥ माधव मास सोहइ सामंत जासतणइ जलनिधि सुतमंत । दूतपणुं मलयानिल करइ सुरनरपन्नग आणा वरइ ॥४॥ तासतणा पय हुं अनुसरी सरसति सामिाण हडइ धरी।
पहिलं कंदर्प करी प्रणाम गिरुउ ग्रंथ रचिसि अभिराम ॥५॥ ५६ श्लोकमा बिहलण तथा शशिकलानो वृत्तांत आपेलो छे. ५७ मीथी पंचाशिकाना अर्थ शरु थाय छे.
( अद्यापि तां कनकचंपकदामगौरी ) आज अम्हारइ मनि मानिनी चिंतु चंपकसोवनवनी । गौरिदामसरिखी सार मुख अंबुज विकसित आकार ।। ५७ ॥ नाहना रोम न आवइ नयणि सुती उठी मातावयणी । संभारइ विद्या वीसरी तिम हुं समरु ए सुंदरी ॥ १८ ॥ भणइ बिलण मम वाणि एह ज्ञान तणइ रसि रातउ तेह । इति विचक्रचूडामणिश्रीविगुणपांडतविराचितबिहुलण
पंचाशिकाकाव्यचोपइ संपूर्ण । संवत् १६५५ मा लखेली पाटणना भंडारनी प्रतमा २०५ चोपाइ छे ज्यारे सं. १७३३ मां लखायेली बीनी ब्रह्मशनी प्रतमा २०९ चोपाइ छे. अने पछी शशिकलाना विरहप्रलापर्नु तथा तेणीना बिह्नण साथे परिणयनुं १२३ चौपाइमा वृत्तति छे.
कर्पूरमंजरीचउपइ--सिद्धराजना रुद्रमालनी कर्पूरमंजरी नामनी पूतळीनी
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( ३९ ) मूळ कर्पूरमंजरीना प्रेमनीः वात छे. मतितारे ( जैनेतरे ) सं. १६०५ मां. २०४ चउपइ मां आ कथा रचेली छे.
प्रथम गुणपति वीन गिवरिपुत्र उदार । लक्ष लाभ जे पुरवइ देवि सवि हुं प्रतिहार ॥ १ ॥ सेवंत्री जस मुगट भर सिंदुरि सोहइ शरीर । सिद्धबुद्धिनुं भरतार ने बुद्धिदाता वडवीर ॥ २ ॥ कास्मीरपुरनिवासनी सरसति समरु मात । जेह तणइ सुपसाउलइ बुद्धि पामि कविराय ।। ३ ॥ ते सवि हुँ आयत लही मंडिस कथा रसाल ।
रुद्रमालइ जे पूतली कपूरमंजरी सुविसाल || ५ ॥ अंत कर्पूरमंजरी कथा अभिनवी संवत् से लपंचोत्तरी कवी ।
चैत्रवदि अग्यारमि गुरुवार बेलइ कवि पंडित मतिपार ॥ ६ ॥ गूजरातीगधना नमूना पण भंडारामांथी घणा मळी आवे छे. ६५० वर्ष पहेलां आपणी भाषानुं गद्य के हतुं ते ताडपत्रना पुस्तकोमांथी बराबर जणाइ आवे छे. १६ मा तथा १७ मा शतकना गद्यना नमूना तो घणा छे. परंतु ते पहेलाना क्वाचिक होवाथी अहींआ तेवा केटलाक बतावेला छे.
संवत् १३३० मा लखायेला ताडपत्रमा आलायणाना गुनराती अर्थ आपेला छे तेमाथी थोडुक नीचे उतारेलुं छे.
___ पंचपरमेष्ठिनमस्कारु निनशासनि सारु चतुर्दशपूर्वसमुद्धारु संपादि तसकलकल्याणसंभारु विहितदुरित पहारु क्षुद्रोपद्रवपर्वतवज्र पहारु लीलादलितसंसारु सु तुम्हि अनुसरहु। निणि कारण चतुर्दशपूर्वधर चतुर्दशपूर्वसंबंधिउ ध्यानु परित्यजिउ पंचपरमेष्ठनमस्क रु स्मरहु तउ तुम्हि विशेषि मरेवउ अनइ परमेश्वरि तीर्थकरदेवि इसउ अर्थ भणियउ अछइ अनई संसार तणउ प्रतिभउ म क रसउ अनइ ऋद्धि नमस्कारु इह लोके संपादियइ।
संवत् १ ३३० वर्षे आश्विनसुदि ५ गुरावयेह आशापल्याम् तेटलान अरसामां लखायेला ताडपत्रमा अतिचारना अर्थमाथी:विनयहीणु बहुमानहींणु उपधानहीणु गुरुनिण्हव अनेराकण्हई पढयं अनेरइंकहई
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( ४० )
व्यंजनकूडु अर्थकूडु तदुभयकूडु कूडउ अक्षरु कानइ मात्रि आगलइ ओछउ देववंदणवांदणइ पाडिक्कमणइ सझ्झाउ करतां पढनां गुणतां हुयइ अर्थंकडु कहइ हुइ सूत्र अर्थु बेउ कूडां कह्यां हुइ ज्ञानोपकरण पाटी पोथी कमली संपूड सांपुडी आशातन पगु लागउ थुंकु लागउँ पढतां प्रद्वेष मच्छरु अंतराइ उहनु कीवउ हुइ तथा ज्ञानद्रव्य भक्षितु उपेक्षितु प्रज्ञापराधि विणास्थं विणासतउं उवेरूगं हुंती सक्ति सार संभाल नही कीधियइ । अनेरइ ज्ञानाचारि जु कोइ अतीचारु हूउ सुक्ष्म बादरु मनि वचनि काइ पक्षदिवसमांहि तेह सवहि मिच्छामि दुक्कडं संवत् १३६९ मां लखायेला ताडपत्रमा अतिचारना अर्थमाथी :
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मृषावादि सहसातकारि आलु अभ्याख्यानु दीघउ रहस मंत्र भेदु कीधउ मृषोपदेसु दीघउ कूडउ लेखउ लिखिउ कूडी साखि थापणि मोसउ कुणहइ सउ राडि भेडि कलहू विद्याविढि जु कोइ अतिचारु मृषावादि व्रति भव सगलाइमाहि हुइ त्रिविधि त्रिविधिमिच्छामि दुक्कडं | अदत्तादानि पिराइउं छानउं फीठुउं लीघउं दीघउं वावरिउ घरि बाहिरि खत्रि पलइ नवकार व्याख्यान संवत् १३५७ मां लखायेला कागळना पुस्तकमां नवकारना अर्थमांथी :
इणि पंचपरमेट्ठि नमस्कार महामंत्ति सुमरीतइ हुतइ ( पापतणउ ) क्षउ होयइ ईण संसारि दधिचंदनदूर्वदिक मंगलीक मणीयइ तीह मंगलिक सर्वही माहि प्रथम मंगलु एहु । इणि कारणि शुभकार्य आदि पहिलउ सुमरेवउ जिंवति कार्य एहतणइ प्रभावइ वृद्धिमंता हुयइ । यउ नमस्कारु अतीत अनागतच उवोस आदिजिनोक्तसारु सु तुम्हे विसेषहइ हिय डात इ. प्रस्ताव अर्थयुक्तु ध्येयु ध्यातव्यु गुणेवउ पढेवउंइणि नवकारि नत्रपद पांच अधिकार सहि अक्षर तीहमाहि छ भारी इकसठ्ठि लघु इसउ नमस्कारतणउं महात्म्यु ॥
गणितसार. श्रीधराचार्यनो गणितसार गुजराती अर्थ साथै आमां आपेलो छे. प्रतीक पाटणमां दफनखानना राज्यमां शिलारसाहना व्यापारमां सं. १४४९ मां मोढ ज्ञातिना कुटुंब वास्ते राजकीर्तिमिश्रे लखेल छे. संवत् १४४९ ना जूना जैनेतर गुजराती गद्यना नमूना माटे घगो उपयोगी छे. थोडोक भाग नीचे उतारेलो छे.
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शिवु भणी देवाधिदेव भट्टारकु महेश्वरु किसु जु परमेश्वर कैलासशिषरुमंडनु पार्वती हृदयरमणु विश्वनाथ जिणं विश्व नीपजाविउं तसु नमस्कारु करीउ बालावबोधनार्थ बालभणीइं अज्ञान तीहं किहिं अवबोध जाणिवातणइ अर्थि आत्मीय यशोवृद्धयर्थ श्रेयस्करणार्थ श्रीधराचार्य गणित प्रकटीकृतु ॥
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(४१) अंत सं. १४४९ वर्षे वैशाख वदि ११ रवौ श्रीमदणहिलपुरपत्तने समस्तराजावलीसमलंकृतश्रीदफनखानराज्ये मलिकश्रीशिलारसाहे व्याप्रियमाणे सति श्रीमोढज्ञातियठ० गागासुतठ० अमरसीहसुतथिरपालडूंगरवइरसिंहप्रभृतिसमस्तभ्रातृवर्गेभ्यः भ्रातृपुत्राणां पठनार्थ पितृव्यवाणारी राजकीर्तिमित्रैः सूत्रपुस्तिका लिखिता
संग्रहणी घालावबोध तपागच्छना आचार्य रत्नसिंहसूरिना शिष्य उदयसिंहना सं. १४९७ मां रचेला संग्रहणी बालावबोधनी संवत् १५४८ मां लखायेली प्रतमांथीः
अंत सदगुरुकन्हलि पूछी विशेषअर्थ- ग्रहण करिवउं । जे भव्य जीव छइ तेहनई ए संघयणिनुं विचार कहतां कर्मक्षय होइ तेहतणइ भव्यनीवइ ए विचार नोर्बु जाणिवू निम ते भव्य जीवनइं ऋद्धिवृद्धि होइ । ए बालाववोध सामान्य साधु सुश्रावक श्राविकानइ अर्थनउं लवलेश जाणिवानइ संवत् १४९७ चउदसत्ताणवइ श्रावणसुदि चउदसि शुक्रवार तिणि दिनि तपागच्छि भट्टारकश्रीरत्नसिंहसूरिनइं पंडित उदयासंहि ए बालावबांध रचिउ समस्तमांगलिकनई आर्थ होउ ॥
आक्ति को. .. अत्यार सुधी कुलंमंडन- मुग्धावबोध (सं. १४६० ) अने उदयधर्मनुं वाक्य प्रकाश ( सं .५०७ ) ए बे औक्तिको जणायला हता. परंतु बीनां त्रण प्राचीन औक्तिको भंडारोमांची मळी आवेलां छे. औक्तिको संबंधी वसंतमां में आगळ लखेलु होवाथी अहींयां पुनरावर्तन करवानी जरुर नथी. मुग्धावबोधनी आशरे ६ प्रतो भंडारमा छ, ने छपायेली आवृत्तिनी भूलो सुधारवामां उपयोगी थइ पडशे.
आक्तिक आ औक्तिकना कर्ता भट्टारक समिप्रभसूरि कीयागच्छना हता ने ते क्यारे थया ते जणायेलु नथी. एक सेमिप्रभाचार्य सं. १२४४ मां कुमारपाल प्रतिबोध तथा सुमतिनाथ चरित्र रचलं छे. बीजा शतार्थिक सामप्रभाचार्य तपागच्छमां १४ मा श. तकनाउत्तरार्धमां थया हता. तेमनी कृति सिंदुरप्रकर प्रसिद्ध छे.
प्रणम्य श्रीजिनं वारं वालानामुक्तियुक्तये । कियाकारकसंबंधसंग्राहं वच्मि किंचन ॥ १ ॥ शब्दक्रियाख्यातकृत्ताद्धताख्यसमासकाः । षट्कारकाणि संबंधो वाच्या विभक्तयोत्र च ॥ २॥
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1 ४२ )
एउ करइ त करइ इ इत्यादि हउ करउ लिउ दिउ इत्यादि तथा करावड़ लिवडावइ दिवरावइ यथा लभाडइ लभयति संपादयति उतारइ उत्तास्यति हउ कीजउ तीण कीजइ यथा देवदत्ति तइ मइ हुइ अइसुइ अइब इसइ यथा सेहि आवश्यकु पढिउ एउ सवेहि राजि जाणीइ तथा करतउ लेतउ देतउ इत्यादि तथा गुरि अणुजाणिउ चेलु व्याकरणु पढत
3.
उक्तिसंग्रह देवभद्रना शिष्य तिलक पंडिते बनावेलो छे. देवभद्र कीया गच्छना हता ते जणावलं नथी. आगभिक देवभद्र १३ मा शतकमां थएला हता.
वाचा कायेन मनसा श्रुत्वा वाचं विधीयते । बालार्थमुक्ति संस्कारः शास्त्रान्वेषणदर्पणः ॥ नमः श्रीदेवद्रेभ्यो गुरुभ्यश्च निरंतरं । येषां प्रसादमासाद्य बुधायते जडा अपि ॥ २ ॥ क्रियाकारकलिंगानि उक्तानुक्तं नरत्रयं ।
संख्या परस्मैकाद्याश्वात्मने सह विभक्तिभिः ॥ ३॥
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सर्वत्र इनंता क्रिया यथा उपाध्यायु मइ पढावइ । कचित् प्रथमाक्षरोप इन्भवति यथा देवदत्त मइ पाणिउ पावइ पापियउ साधु नारइ एवं आपइ वारइ सारइ दाहवइ ताप इत्या दनामपि । कउण कउणि वा इत्यपेक्षायां यत्र क्रियानिर्देशः स कर्ता उकारांतः कर्तृशब्दः यथा देवदत्तु करइ सोपि इकारान्तस्तदानुक्त यथा देवदत्ति पढीयई कसउ इत्यपेक्षायां कर्म कर्मणि द्वितीया कइसइ करिउ कइसइ हि कउणि करिउ करण छेहि इत्यपेक्षायां करणं करणे तृतीया.
अंत भारती भूषणमिदं समसंस्कृतप्रकृतं ।
नित्यं पठति ये तेषामस्तु स्वस्तिनिबन्धनं ॥ सरस्वत्याः पुरः स्थित्वा परित्यक्तान्यकर्मकः । स्मरेदहर्निशं यस्तु तस्यास्ति सर्वतोमुखी || यावद्धरा द्वरानितंत्रेषु क्रीडति विबुधा बुधाः । त्रिलोकी तिलकस्तावत्पठ्यनक्तिसंग्रहः ॥ इतिवृत्तित्रयसारोद्धारे
तिलकविरचितभाष्यं समाप्तं ॥
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षट्कारकना कानू नाम तथा रच्या संवत् आपेला नथी. प्रतीक अंचल गच्छना सूरि जयकीर्तिए सं. १४८५ मां लखेलो छे.
अथ षट्कारकमभिलिख्यते। यथा छ. कारक सातमु संबंध कर्ता कर्म करण संप्रदान अपादान संबंध अधिकरण। जे करइ स कर्ता जं कीजइ तं कर्म जीणइ करी क्रिया कीजइ तं करण जेह देवातणइ इच्छा. जेह रुचइ कांइ जे धरीइ कांइ तं कारक संप्रदान मेहतु अपाय विश्लेषु हुइ जेहतु भय हुइ जेहतु आदान ग्रहण हुइ तं कारक अपादामु नेहक नेह माझि जेह पासि जेह तणउ जेहतणी जेहसरइ कहिइ इयादि संबंध । गामि पाद्रि खलइ क्षेत्रि वनि पर्वति माहि बाहिरइ इत्यादौ आधारः
अंत संवत् १४८५ वर्षे फाल्गुन वदि ७ दिनि आंचलि पक्षे लिखित श्री जइकीर्तिसूरः ।।
कारकविचार प्रतीक संवत् १९४३ मां लखेलो छे षट्कारकने आ बन्ने एकज लागे छे.
अथ षट्कारकमाभिलिख्यते । यथा छ कारक सातमु संबंधु कर्ता जं कीनइ तं कर्म जीणइ करइ क्रिया की नइ त करणु जेह देवातणी इज्छा जेह रुचइ कांइ जेह धर रह कांइ त कारक संप्रदानु जेहर्नु अपाविश्लेषइ नेहर्नु आदानु ग्रहण हुइ तं कारक अपादान जेहमाझि जेहपामि जेहतणउ जेहतणी जेहरही जेहकहिं इत्यादि संबंध । गामि पाद्रि क्षेत्रि वनि पर्वति मांहि बाहिरइ इत्यादि आधार.
दामोदररचित उक्तिव्यक्ति (५० आर्या) ताडपत्र उपर छे. टीकाकारे उक्तिव्यक्तिनो अपभ्रंश भाषाओथी आच्छादित संस्कृत भाषानुं प्रकटीकरण एवो अर्थ करेलो छे.
१६ मा शतकमां रचायेला रासो ५० थी वधारे हशे. त्यारपछीना रासो तो घणाक छे. देपाल- जावडचरित्र, गुणविनयनो कर्मचंद्रवंशावलीप्रबंध, कनक कुशलनो विजयदेवमूरिरास (१६६४ ), काशीना राजा जयचंद्रनो रास, गुणविजयनो कोचरव्यवहारिरास, खरतरज्ञानराज गणिना शिष्य लब्धोदय गणिए उदयपुरना कटारिआ गोत्रना मंत्रि भागचंद्रना अनुरोधी संवत् १७०७ मां राणा जगत्सिंहना समयमां रचेलो पद्मिनीचरित्र रास, पंचदंडप्रबंध ( १५५३ ), उदयभाणवाचककृत विक्रमरास. ज शेखरना शिष्य जयप्तोमकृत अंबडकथा गद्य (प्र. १५७१ ) विनयसमुद्रतुं
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________________ (44) चरित्र (सं. 1999 ) देवशीलनी वेतालपचीशी (सं. 1619 ) अभयसोम कृ विक्रम चरित्र (सं. 1724 ) विक्रमसेनचतुष्पदि परमसागरकृत (सं. 1724 स वगेरे ग्रंथो औतिहासिक तथा लोककथानी दृष्टिए नोंधवा जेवा छे. आ प्रमाणे पाटणना भंडारोना अति अगत्यनां पुस्तको आपणे जोयां; परंतु अ उपरांत बीजां पुस्तकोमाथी पण घणी उपयोगी माहीती मळी शके छे. ते हकीकत स विस्तर रिपोर्ट जेमां पाटणना समस्त 658 ताडपत्रो तथा तेथी वधु कागळना अगत्यना संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने गूजराती ग्रंथानु सविशेष वर्णन आवशे तेमां अपाशे. ग्रंयोन अंते आपेला ग्रंथकारना इतिहास तथा हस्त लिखित पुस्तकोने प्रांते आपेली लखावनारनं तथा लखनारनी प्रशातिओमाथी घणी अतिहासिक, सामाजिक तथा देशविषयक माहीती मळे छे. पाटणना भंडारो तपासवामां डॉ ब्युलर, डॉ. भांडारकर, डॉ पीटर्सन अने प्रो. मणीलालने घणी मुश्केलीओ नडी हती; ने तेथी तेओ बधा भंडारा संपूर्ण राते जोड़ शक्या न हता; परंतु प्रवर्तक श्रीमान् कांतिविजयजी महाराजना सहानुभूतिभरेला साहाय्यथी माझं काम घणुं सरळ थयुं हतु. पाटणना भंडारो खास करीने गुजराती भाषा तथा साहित्य उपर केटलो बधो प्रकाश पाडे छ ते आपणे जोयुं अने तेथी ते भंडारोन यथार्थ रहस्य बहार पाडवाने माटे विद्याविलासी श्रीमंत महाराजा साहेबनो गूजराती साहित्य परिषदे आभार मानवो घटे छे. समाप्त