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( २८ )
अहवा निश्च पुव्वजम्मि जिणवरु इणि वंदीय ।
रंभा पउमा गउरि गंग रति अति आनंदिय ॥ ५ ॥
कमलावती रासना कर्ता विजयभद्र आ के बीजा ते नक्की थइ शके एवं नथी, प्रतीकनी भाषा १७ मा शतकनी छे.
ज्ञानपंचमी चोपाइ श्रुतपंचमीना माहात्म्य उपर भविष्यदत्तनी कथानुं वर्णन आ चोपाइमां करेलुं छे. धनपालनी पंचमी कहा ( अपभ्रंश ) अने महेश्वरसूरिनी पंचमी कहा ( प्राकृत ) नो विषय आज छे. आ चोपाइ मगध देशमां विहार करतां जिन उदयगुरुना शिष्य अने ठक्कर माल्हेना पुत्र विद्वणुए संवत् १४२३ मां रचेली छे, प्रतीकमां मूळ भाषा सारी सवाएली छे.
आदि
चिणवरसासणि आई सारु जासु न लप्भइ अंत अपारु । पढ गुणहु पूजहु निसुनेहु सियपंचमीफलु कहियउ एहु ॥ सियपंचमीफलु जाणइ लोइ जो नरु करइ सो दुहिउ न होइ । संजम मन घरि जो नरु करइ सो नरु निश्चइ दुत्तरु तरइ || २ || आँकार जिण चवीस सारदसा मिनी करउ जगीस ।
वाह हंस चडी कर वीण सो जिणसासाणी अच्छइ लीण ॥ ३ ॥ अठदलकमल उपनी नारि जेणि पयासिय वेदइ चारि । ससिहर बिंबु अमियर फुरइ नमस्कार तसु विद्धणु करइ || ४ || चिंता सायर जवि नरु परइ घरघलाले सयलइ वीसरइ । कोहु मानु माया मोहु जर झपे परियउ संदेहु ॥ ५ ॥ दानु न दिन्न मुनिवरजोगु ना तपु तपिउ न भोगेउ भोगु । सावयवरहि लियउ अवतारु अनुदिनु मनि चिंतहु नवकारु ।। ६ ।। तिन्निरयणि जो झाणहं गइ तिसु जिउन रयण कबहु जाई ॥ ७॥ भवियह मुनिवर कई सुनहु सियपंचमिफलु कहियउ रद्द | चउदसइ तेइसा सार मंडल मगध नयरविहार ॥ ८ ॥ क्रियउ कवितु हरिषे आपने बहुफल होइ पंचमी सुने कन्नु देइ करि निने लोइ बुदीप पसिद्धउ सोइ ॥ ९ ॥
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