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(२७)
नयरराय पाडलियमांहि पहूतउ विहरंतउ ।। अंत-नंदउ सो सिरिथूलिभद्द जो जुगह पहाणो ।
मुणियउ नीण जगि मल्ल सल्लरइ वल्लहमाणो । खरतरगच्छि जिणपदमसूरिकियफागु रमेवउ । खेला नाचइ चैत्रमासि रंगिहि गाववउ ॥ २७ ॥
गौतमरास विजयभद्र ( सं. १४ १२ ) आ सस छपायेलो छे पण विकृत भाषामां. अहींआं एनी आशरे विक्रमना १५ मा शतकना उत्तरार्धमा लखायेली कागळनी प्रत उपरथी मूळ भाषाना नमुना तरीके थोडो भाग उतारेलो छे.
वीरजिणेसरचरणकमलकमलाकयवासो । पणमवि पभाणिसु सामिसालगोयमगुरुरासो । मणुतणुचरणु एकंतु करवि निसुणउ भो भवियां जिम निवसइ तुम्ह देहिगेहि गुणगण गहगहियां ॥ १ ॥ जंबुदीवि सिरिभरहखेत्रि खोणीतलमंडणु मगधदेश श्रेणीयनरेसु रिउदलबलखंडणु । घणवर गुव्वर नाम गामु जहि गुणगणलज्जा विप्पु वसइ वसुभूइ तत्थ जसु पुहवी मजा ॥ २ ॥ ताण पुत्तु सिरि इंदभूइ भूवलयपसिद्धउ चउदहविद्याविविहरूवनारीरसि विद्ध उ । विनयविवेकी विचारसार गुणगणह मनोहरु सातहाथसुप्रमाणदेह रूपिहि रंभावरु ॥ ३ ॥ नयणवयणकरचरणि जिण वि पंकन जलि पाडिय तेनिहि ताराचंदसुर आकासि भमाडीय । रूविहि मयणु अनंग करवि मेलिहउ निद्दाडिय । धीरिम मेरु गंभीरि सिन्धु चंगिम चय चाडिय ॥ ४ ॥ पिक्खवि निरुवम रूव जस्स जण जंपइ कंचिय । एकाकी काल भीत इत्थ गुण मेल्या संचिय ।
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