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( २६ )
चार्य उदयसिंहनी धर्मविधि वृत्तिनी संवत् १४१८ मां कछूली पासे लखायेली लूगडा उपरनी प्रतना प्रांत लखेल छे.
गणवइ जो जिम दुरीउविहडणु रोलनिवारणु तिहुयणमंडणू पणमवि सामीउ पासर्जिणु । सिरिभदेसर सूरिहिं वंसो बीजीसाहह वंनिसु रासो धम्मिय रोल निवारिउ ।।
सग्गपंडउ जिम महीयाल जाणउं अठारसउ देसु वखाणउ गोउलि घन्नि रमाउलउ । अनल कुंडसंभम परमार राजु करई तहिं छे सविवार । आबूगिरिरु तहिं पवरो विमलडवसही आदिजिणंदो || अचलेसरु सिरिमा सिरिवंदो तसु तलि नयरीय वन्नीयए ।
जणमननयणह कम्मणमूली क्छूली किरिलंकविलासी सरप्रवाचि मणोहरीय - ॥ ताम्हिनयरीय तम्हि नयरीय वस बहु लोय |
चिंतामणि जिम दुच्छीयहं दीई दानु सविषेय हरिसीय 1 सच्चर सीलि ववहरइ कूडकपटु नवि तेय जाई । गलीउ जलवाडी पीइ धम्मक अणुरत । एकजीह किम वन्नी कछूली सुपवित्त ॥ वस्तु ॥ अंत निणसासाण नहचंदु सुहगुरु भवीयहं कलपतरो । तां जग जयवंत उम्हाउ जां जगि ऊगइ सहस करो । तेरत्र रासु कोटि वडि निम्पउ |
जिणहरि दिंत सुणंत मणवांछेय सवि पूरवउ ॥
थूलभद्रका स्थूलभद्रनो आ फाग खरतरगच्छना आचार्य जिनंपद्मसूरिए चैत्र मासमां रंगथी रमवा अने गावा बनावेलो छे. जिनपद्मसूरि विक्रमनी १४ मी सदीना अंतमां
थया हता.
आदि-मिय पास जिणंदपय अनु सरसइ समरेवी
थूलभद्दमुणिव भणिसु फागुबंधु गुण केवी ॥ १ ॥ अह सोह सुंदररूवतु गुणमणिभंडारो । कंचण जिम झलकंतकंति संजमसिरिहारो ॥ लिभमणिराउ जाम महियली बोहंतउ |
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