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( ३९ ) मूळ कर्पूरमंजरीना प्रेमनीः वात छे. मतितारे ( जैनेतरे ) सं. १६०५ मां. २०४ चउपइ मां आ कथा रचेली छे.
प्रथम गुणपति वीन गिवरिपुत्र उदार । लक्ष लाभ जे पुरवइ देवि सवि हुं प्रतिहार ॥ १ ॥ सेवंत्री जस मुगट भर सिंदुरि सोहइ शरीर । सिद्धबुद्धिनुं भरतार ने बुद्धिदाता वडवीर ॥ २ ॥ कास्मीरपुरनिवासनी सरसति समरु मात । जेह तणइ सुपसाउलइ बुद्धि पामि कविराय ।। ३ ॥ ते सवि हुँ आयत लही मंडिस कथा रसाल ।
रुद्रमालइ जे पूतली कपूरमंजरी सुविसाल || ५ ॥ अंत कर्पूरमंजरी कथा अभिनवी संवत् से लपंचोत्तरी कवी ।
चैत्रवदि अग्यारमि गुरुवार बेलइ कवि पंडित मतिपार ॥ ६ ॥ गूजरातीगधना नमूना पण भंडारामांथी घणा मळी आवे छे. ६५० वर्ष पहेलां आपणी भाषानुं गद्य के हतुं ते ताडपत्रना पुस्तकोमांथी बराबर जणाइ आवे छे. १६ मा तथा १७ मा शतकना गद्यना नमूना तो घणा छे. परंतु ते पहेलाना क्वाचिक होवाथी अहींआ तेवा केटलाक बतावेला छे.
संवत् १३३० मा लखायेला ताडपत्रमा आलायणाना गुनराती अर्थ आपेला छे तेमाथी थोडुक नीचे उतारेलुं छे.
___ पंचपरमेष्ठिनमस्कारु निनशासनि सारु चतुर्दशपूर्वसमुद्धारु संपादि तसकलकल्याणसंभारु विहितदुरित पहारु क्षुद्रोपद्रवपर्वतवज्र पहारु लीलादलितसंसारु सु तुम्हि अनुसरहु। निणि कारण चतुर्दशपूर्वधर चतुर्दशपूर्वसंबंधिउ ध्यानु परित्यजिउ पंचपरमेष्ठनमस्क रु स्मरहु तउ तुम्हि विशेषि मरेवउ अनइ परमेश्वरि तीर्थकरदेवि इसउ अर्थ भणियउ अछइ अनई संसार तणउ प्रतिभउ म क रसउ अनइ ऋद्धि नमस्कारु इह लोके संपादियइ।
संवत् १ ३३० वर्षे आश्विनसुदि ५ गुरावयेह आशापल्याम् तेटलान अरसामां लखायेला ताडपत्रमा अतिचारना अर्थमाथी:विनयहीणु बहुमानहींणु उपधानहीणु गुरुनिण्हव अनेराकण्हई पढयं अनेरइंकहई
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