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( ३८ )
पण पाटणना प्रतीकनो लख्या संवत् १६५५ होइ प्रतीकनी भाषा जोता तेथी पूर्वे १९ मां शतकना आ ग्रंथ रचायेलो लागे छे.
मकरध्वज महिपति वर्णवु जेहनुं रूप अवनी अभिनवु । कुसुमबाण करी कुंजरी चडइ जात प्रयाणि धरा धडहडइ ॥ १ ॥ कोदंड कामिनीतणुं टंकार अगलि आले झाझा झंकार । पाखालि कोइलि कलरव करइ निर्मल छत्र श्वेत शिर धरइ ॥२॥ त्रिभुवनमांहि पडावइ साद छइ को सुर नर मांडइ वाद । अबला सैनि सबळ परवरियुं हीडे मन्मथ मच्छरि भरि ॥३॥ माधव मास सोहइ सामंत जासतणइ जलनिधि सुतमंत । दूतपणुं मलयानिल करइ सुरनरपन्नग आणा वरइ ॥४॥ तासतणा पय हुं अनुसरी सरसति सामिाण हडइ धरी।
पहिलं कंदर्प करी प्रणाम गिरुउ ग्रंथ रचिसि अभिराम ॥५॥ ५६ श्लोकमा बिहलण तथा शशिकलानो वृत्तांत आपेलो छे. ५७ मीथी पंचाशिकाना अर्थ शरु थाय छे.
( अद्यापि तां कनकचंपकदामगौरी ) आज अम्हारइ मनि मानिनी चिंतु चंपकसोवनवनी । गौरिदामसरिखी सार मुख अंबुज विकसित आकार ।। ५७ ॥ नाहना रोम न आवइ नयणि सुती उठी मातावयणी । संभारइ विद्या वीसरी तिम हुं समरु ए सुंदरी ॥ १८ ॥ भणइ बिलण मम वाणि एह ज्ञान तणइ रसि रातउ तेह । इति विचक्रचूडामणिश्रीविगुणपांडतविराचितबिहुलण
पंचाशिकाकाव्यचोपइ संपूर्ण । संवत् १६५५ मा लखेली पाटणना भंडारनी प्रतमा २०५ चोपाइ छे ज्यारे सं. १७३३ मां लखायेली बीनी ब्रह्मशनी प्रतमा २०९ चोपाइ छे. अने पछी शशिकलाना विरहप्रलापर्नु तथा तेणीना बिह्नण साथे परिणयनुं १२३ चौपाइमा वृत्तति छे.
कर्पूरमंजरीचउपइ--सिद्धराजना रुद्रमालनी कर्पूरमंजरी नामनी पूतळीनी
अंत
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