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( १८ )
तेरदुरुत्तरवरिले सिरिवीरजिदिमाक्कल्ला |
कल्लाणं कुणह सया पढंतगुणंताण भव्वाण ॥ २॥
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( ७ ) जिन स्तुति २० गाथा (८) चाचरी स्तुति ( वेलाउली रागेण ) ३६ गाथा ( ९ ) गुरुस्तुति चाचरि ( गुर्जरीरागेण ) १५ गाथा
नर्मदा सुंदरी संधि, जिनप्रभ शिष्य ७९ गाथा सं. १३२८. तेरससयअडवीसे वरिसे सिरिणिपहुपसाएणं ।
एसा संधी विहिया जिनिंदवयणानुसारेण ॥ ७१ ॥
गौतम स्वामि चरित्र, गौतम स्वामि-जिन प्रभना शिष्य २८ गाथा संवत् १३५८ गोयमसामहिं गोयमचरियं रइयं पढमंजरीए भासाए
कत्तियअमावसाए अठ्ठावन्नस्स वरिसस ।। २८ ॥ चच्चरिउ, कर्ता सोलणु ३८ गाथा.
कर जोडे मोलणु भइ जीविउ सफलु करे । तुम्हि अवधारह धम्मियउ चच्चारेडं गाए ॥ ३८॥ दूहा मातृका १८ गाथा.
मंगलमहासिरिसरि सिवफलदाय रम्मु ।
दुहामाई अखियइ पुहविहिं निणवरधम्मु ॥ ९८ ॥ शालिभद्रका (कक्को ) कर्ता पउम ६९ गाथा.
भलि भंजणकम्मारिकुल वरिनाहु पणमेव । पउनु कहइ कक्कक्खरिहिं सालिभद्दगुण केवि ॥ अंतरंग रास जिनसूरि ९९ कडवां.
तारे जिय जिणसूरिहिं करि जिणधम्मु पमाउ विणासिउ ॥
चतुर्विंशति जिनकल्याणक १३ कडवां, स्थूलभद्रचरित्र २ कडवां, जन्माभिषेक स्तुति ५ कडवां, अवंतिसुकुमार संधि ११ कडवां.
भावना संधि. शिवदेवसूरिना प्रथम शिष्य जयदेवगणिनी भावना संधिनां ६ कडवां ( ६२ पढ़ो ) छे.
निम्मलगुणभूरिहिं सिवदिवसूरिहिं पढम् सीसु जयदेवगण | कियभावणसंधि भावसुगंधी निसुणवि भविया धरह मणि ||
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